ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
लोकसभा
चुनाव में विपक्षी सियासत में असल मुद्दे हाशिए पर जाते नजर आ रहे हैं। इस बदलती
सियासत में इस बार लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों का नारा ‘मोदी हटाओं-देश बचाओं’
प्रमुख मुद्दा बनता नजर आ रहा है। इस मुद्दे के सामने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासत
में सबसे बड़ा मुद्दा इस क्षेत्र को अलग राज्य ‘हरित प्रदेश’ और इलाहाबाद हाईकोर्ट
की बैंच स्थापित कराने का रहा है, जिसे
खासकर राष्ट्रीय लोकदल ने हर चुनावों में अपना प्रमुख मुद्दा बनाया है, लेकिन इस
बार सपा-बसपा गठबंधन के साथ चुनाव में कूदे रालोद के सामने ऐसा कोई मुद्दा नहीं
है?
पिछले
लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में रालोद का पश्चिमी उत्तर प्रदेश का पूरा किला ध्वस्त
हो गया था और पिछले करीब साढ़े तीन दशक से
इस क्षेत्र को हरित प्रदेश के रूप में अलग राज्य बनाने के मुद्दे पर रालोद सियासत करती
रही है। हालांकि उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में रालोद के चुनावी
घोषणा पत्र में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बैंच की स्थापना के मुद्दे को
शामिल जरूर किया था, लेकिन अब रालोद के मुद्दों से हरित प्रदेश का मुद्दा पूरी तरह
हाशिए पर जाता नजर आने लगा है।
दरअसल रालोद 2014 के आम चुनाव में खोई सियासी जमीन को पाने की खातिर इस बार
लोकसभा चुनाव में रालोद ने सपा-बसपा के गठबंधन में शामिल होकर केवल ‘मोदी
हटाओं-देश बचाओं’ नारे के सहारे लोकसभा तक पहुंचने का मिशन बनाया है।
रालोद का रहा मुख्य मुद्दा
पश्चिमी उत्तर
प्रदेश को ‘हरित प्रदेश’ बनाकर अलग राज्य का दर्जा देने की यह मांग कोई नई नहीं है,
बल्कि यह मांग पिछले करीब साढ़े तीन दशक पुरानी है। इसी मुख्य मुद्दे के सहारे सहारे
रालोद पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासत करता रहा है। रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह
भी खुद हरित प्रदेश की वकालत करते हुए दूसरे राज्य पुनर्गठन आयोग गठित करने की मांग
करते रहे हैं, लेकिन इस बार ऐसा काई मुद्दा उनके पास नहीं है। जहां तक रालोद के कृषि
और किसानों की समस्या जैसे मुद्दों का सवाल है उसके लिए तो भाजपा व कांग्रेस और
अन्य दल भी चुनाव मैदान में है। हालांकि यूपी में बसपा सरकार में यूपी को चार
अलग-अलग राज्य में विभाजित करने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित करके तत्कालीन
यूपीए सरकार को भेजा था, लेकिन यूपीए की केंद्र सरकार ने इस प्रस्ताव को स्वीकार
करने के बजाए वापस भेज दिया था।
हाईकोर्ट बैंच भी बड़ा मुद्दा
रालोद ने 2017
में यूपी विधानसभा चुनाव में तो सत्ता में आने पर सुशासन और प्रशासनिक सुधार के तहत
हाईकोर्ट के विकेन्द्रीकरण करने की जरूरत बताते हुए पश्चिम उत्तर प्रदेश, बुंदेलखंड
व पूर्वांचल में हाईकोर्ट बैंच की स्थापना करने का वादा अपने घोषणा पत्र में किया
था। यह मांग भी अस्सी के दशक से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अभी थमी नहीं है, जिसकी
मांग के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों अधिवक्ता शनिवार को काम नहीं करते।
राजनीतिक वजूद भी कम नहीं
देश आजाद होने
के बाद से यूपी में अब तक 22 मुख्यमंत्री बने हैं, जिनमें से चौधरी चरण सिंह, बनारसी
दास गुप्त, राम प्रकाश गुप्ता,कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, मुलायम सिंह, अखिलेश यादव
और मायावती आदित्यनाथ खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही संबन्ध रखते हैं, चौधरी नारायण
सिंह जैसे कई नेता राज्य में उप मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी भी इसी क्षेत्र से संभाल
चुके हैं, लेकिन आज तक इन मुद्दों पर अमल नहीं हो पाया।
सर्वाधिक संपन्न क्षेत्र
पश्चिमी उत्तर
प्रदेश को आंकड़ों के हिसाब से देखें तो राज्य का यह इलाका हर दृष्टि से प्रदेश के अन्य
हिस्सों से कहीं आगे है। कृषि प्रधान क्षेत्र होने के अलावा औद्योगिक प्रधान भी है।
यहां कुल 7,265 औद्योगिक इकाइयां हैं, वहीं कृषि उत्पादन भी 25.2 मीट्रिक टन प्रति
हेक्टेयर है। प्रति व्यक्ति सालाना आय 17,083 रुपये है। यह आंकड़ा प्रदेश के बाकी क्षेत्रों
के मुकाबले सबसे ज्यादा है। इस लिए उत्तर प्रदेश में यह सर्वाधिक खुशहाल इलाका माना
जाता है।
11Apr-2019
11Apr-2019
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