मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

उत्तर प्रदेश: जातियों में ही सिमटा दलों का सियासी दांव

 दशकों से अपनाया जाता रहा है जातिगत समीकरणों का गणित
ओ.पी.पाल

राजनीतिक दलों के लिए जातीय समीकरणों का तकाजा कोई नया नहीं है यह दशकों से राजनीतिक दलों के लिए सियासत का निर्णायक आधार बनता जा रहा है। खासकर उत्तर प्रदेश जैसे हिंदी भाषी सूबे में इस बार के लोकसभा चुनाव भी ज्यादातर बड़े दलों ने उम्मीदवारों को सियासत की जंग में उतारने के लिए भी इस जातिगत समीकरण को अपना आधार बनाया है।
राजनीतिक विश्लेषक भी मान चुके हैं कि भारतीय राजनीति में खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश जैसे हिंदी भाषी राज्यों में चुनावों के नतीजों में जातीय समीकरण अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं और निभाएंगे भी। जहां तक सबसे ज्यादा 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश का सवाल है यहां 16वीं लोकसभा की सियासी जंग की नैया पार लगाने के लिए अमुमन सभी राजनीतिक दलों ने जातीय समीकरणों के गणित का गुना-भाग करके प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है। उत्तर प्रदेश में पिछड़े वर्ग की जातियों की चुनावों में खास भूमिका रही है और मोदी भी इसी वर्ग से ताल्लुक रखते हैं तो भाजपा ने इस जातीय समीकरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए सियासी रणनीति बनाई है। पिछड़ी जातियों में खासकर यादव, निषाद, लोधी, कुर्मी, कश्यप,जाट, गुर्जर, कुशवाहा, मौर्य, शाक्य, साहू का राजनीति में ज्यादा असर है तो वहीं अनुसूचित जातियों में जाटव, पासी, खटीक, वाल्मीकि आदि जातियों के आधार पर भी राजनीति पटरी पर दौड़ रही है। लोकसभा चुनाव की रणनीतियां भी ज्यादातर दलों ने इसी आधार पर तैयार की हैं जिसमें भाजपा ने 80 में से 20 से 25 टिकट अति पिछड़ों को देकर सामाजिक समीकरणों को साधने का प्रयास किया है। सपा, बसपा, भाजपा व कांग्रेस के अभी तक घोषित उम्मीदवारों पर नजर डाली जाए तो पिछड़े वर्ग को सर्वाधिक टिकट भाजपा ने ही दिया है। अति पिछड़ों में भाजपा ने जहां 12 टिकट दिये है, वहीं पिछड़ों का नेता बनने बनने की दुहाई देने वाले मुलायम सिंह यादव ने केवल ऐसे पांच टिकट दिये हैं। जबकि बसपा ने सात और कांग्रेस ने 5 पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों पर किस्मत आजमाई है।
प्रत्याशियों के जातीय संतुलन में जुटे दल
भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 15 ब्राह्मण, 12 राजपूत, एक यादव, चार कुर्मी, चार जाट, दो गुर्जर, दो साहू, तीन निषाद, एक पाल, एक भूमिहार, एक राजभर,एक कुशवाह, एक सैनी, पांच लोधी, एक गिरी, एक वैश्य, दो दलित, छह पासी, तीन खटीक के अलावा एक-एक प्रत्याशी कोरी, खरवार, धानुक, मल्लाह जाति से घोषित किया है। इसी प्रकार सपा ने भी अपने 78 उम्मीदवारों के चयन में जातीय समीकरणों को आधार बनाया है, जिसमें 14 मुस्लिम, 5 ब्राह्मण, 12 राजपूत, 12 यादव, 8 कुर्मी, 2 जाट, 2 भूमिहार, 6 पासी, 3 बाल्मीकि, 1-1 चैरसिया, निषाद, कुशवाहा-मौर्य, वैश्य, खटिक, कोरी, धानुक, कोल, धनगर, लोधी को उम्मीदवार बनाया है। वहीं बसपा ने भी सामाजिक समीकरणों के आधार सर्वसमाज की रणनीति अपनाई है। बसपा ने यूपी के 80 उम्मीदवारों में 21 ब्राह्मणों को चुनाव के मैदान में उतारा है, जबकि 3 बाल्मीकि, 19 मुस्लिम, आठ राजपूत, 15 पिछड़ा वर्ग, एक यादव व चार कुर्मी, दो जाट, एक गूजर, एक जायसवाल, एक गुप्ता, एक चौहान, तीन निषाद, तीन कुशवाहा-मौर्य, दो गोसाई, दो वैश्य, एक खत्री, आठ दलित, छह पासी के अलावा एक-एक कोरी, बेलदार व मल्लाह को उम्मीदवार बनाया है। ऐसे में यूपी में अपनी जमीन को मजबूत करने में जुटी कांग्रेस ने भी इन समीकरणों से अछूती नहीं रही। कांग्रेस ने अभी तक घोषित उम्मीदवारों में नौ मुस्लिम, 10 ब्राह्मण, 6 राजपूत, 2 कुर्मी, 2 जायसवाल, 2 निषाद-बिन्द, एक पाल, 2 कुशवाहा-मौर्य, 2 खत्री, 3 दलित, 4 पासी, 5 खटिक, 2 धानुक, 2 धोबी, 1 वाल्मीकि को उम्मीदवारी दी है।
भाजपा ने कराया था सर्वे
भाजपा की सामाजिक न्याय समिति-2001 की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट पर भरोसा करें तो उत्तर प्रदेश में हिन्दु-मुस्लिम सामान्य वर्ग की आबादी 20.95 प्रतिशत है, जिसमें 6 प्रतिशत से अधिक शेख, सैय्यद, मिलकी, पठान, मुगल की आबादी है। जबकि अनुसूचित जाति की आबादी 24.94 तथा अनुसूचित जनजातियों की आबादी 0.06 प्रतिशत दर्शाई गई थी। अनुसूचित जाति की आबादी में 55.38 प्रतिशत यानी लगभग 13.5 प्रतिशत आबादी दलित-जाटव पासी 15.91, खटीक 1.82, वाल्मीकि 2.96, धानुक 1.57, धोबी 6.50 गोड़ 1.25, 1 कोल 1.13 तथा कोरी 5.38 प्रतिशत होने का दावा इस रिपोर्ट में शामिल रहा हैं। इस रिपोर्ट के आधार पर यूपी में कुल ग्रामीण जनसंख्या 139976220 में 3490966 अनुसूचित जाति, 75660063 अन्य पिछड़ा वर्ग, 81198 एसटी तथा 29325293 संख्या सामान्य वर्ग की हिन्दु-मुस्लिम जातियों की है। हिन्दु सवर्ण जातियों में राजपूत, ब्राह्मण, कायस्थ, भूमिहार, खत्री, वैश्य आदि सम्मिलित हैं।
यूपी में फैला जातीय समीकरण
उत्तर प्रदेश में आधे से भी ज्यादा आबादी ओबीसी की है यानि सर्वाधिक 54. 50 प्रतिशत अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी चुनावों में निर्णायक भूमिका अदा करने में सक्षम है। इसमें अत्यंत पिछड़ी जाति 33.34 प्रतिशत, अति पिछड़ा जाति 10.94 तथा यादव जैसी पिछडी जाति की आबादी 10.22 प्रतिशत है। पिछड़े वर्ग की विशाल आबादी को वर्गीकृत किया जाए तो यादव-19.40, निषाद-बिन्द-कश्यप 12.91, कुर्मी 7.46, लोधी-कसान 5.48, पाल 4.43,मोमिन अंसार-4.15, तेली-साहू-4.02, जाट-3.61, प्रजापति 3.41, काछी-कुशवाहा-शाक्य-3.25, नाई-हज्जाम 3.01, राजगौड़ 2.44, विश्वकर्मा 2.37,चौहान 2.33, मुरांव-मौर्य 2.00, लोहार-सैफी 1.80, गूजर 1.70, कोरी 1.66, माली-सैनी 1.44 भुर्जी-कांदू 1.44, चौरसिया 0.71, जायसवाल 0.56,सोनार 0.55, बंजारा 0.52, गोसाई 0.46, अर्कवंशी 0.41 प्रतिशत की आबादी में हैं। इसके बाद अनुसूचित जाति वर्ग की 24.94 प्रतिशत की आबादी आती है, बाकी जातियों में वैश्य, ब्राह्मण, राजपूत और अन्य स्वर्ण जातियों का तानाबाना बुना हुआ है।

01April-2014

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