शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

हॉट सीट: फिरोजाबाद- मनिहारों के गढ़ में होगी दिलचस्प सियासी जंग !

प्रो. एसपी सिंह बघेल सभी के लिए बने बड़ी चुनौती
ओ.पी.पाल

उत्तर प्रदेश में खनखनाती कांच की चूड़ियों के उद्योग के लिए प्रसिद्ध शहर की फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर इस बार दिलचस्प मुकाबला होने की संभावना है, जहां पिछले चुनाव और फिर उप चुनाव दोनों में बसपा के टिकट पर पिछड़े प्रो. एसपी सिंह बघेल इस बार भाजपा के टिकट पर सपा के अक्षय यादव, कांग्रेस के अक्षय यादव तथा बसपा के विश्वदीप के लिए सियासी जंग में एक बड़ी चुनौती बने हुए हैं।
सपा शासित यूपी में फिरोजाबाद लोकसभा सीट को मुलायम सिंह यादव ने प्रतिष्ठा का सवाल बनाया हुआ है, जहां इस परिवार के राज्यसभा सांसद रामगोपाल यादव के सुपुत्र अक्षय कुमार को सियासी मैदान में उतारा है। वर्ष 2009 के आम चुनाव में इस सीट पर सूबे के मुख्यमंत्री और सपा प्रमुख मुलायम सिंह के शहजादे अखिलेश यादव ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े प्रो. एसपी सिंह बघेल को करीब सात हजार से ज्यादा मतों से हराया था,लेकिन बाद में कन्नौज लोकसभा सीट से भी अखिलेश जीते और इस सीट को छोड़ दिया, जिसके कारण यहां की जनता को उप चुनाव झेलने के लिए मजबूर होना पड़ा। उप चुनाव में अपनी विरासत को धर्मपत्नी डिंपल यादव को सौंपने के इरादे से चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन यहां सपा छोड़कर आए कांग्रेस ने फिल्म अभिनेता राज बब्बर को टिकट दिया और बसपा ने फिर एसपी सिंह बघेल को उतारकर सपा से हिसाब चूकता करने का लक्ष्य रखा। इस उप चुनाव मुलायम परिवार की बहू को रास नहीं आया और वह कांग्रेस के राज बब्बर से नौ हजार से ज्यादा वोटों से हारी और बघेल तीसरे नंबर पर खिसक आए। बसपा ने बघेल को राज्यसभा भेज दिया, चूंकि फिरोजाबाद बघेल की रणभूमि रही है इसलिए राज्यसभा सदस्य होते हुए उन्होंने पिछले दो चुनाव में मिली हार का बदला चूकता करने के लिए लोकसभा चुनाव की जंग में उतरना पड़ा। भले ही उन्हें बसपा का साथ छोड़कर भाजपा का दामन थामना पड़ा है। भाजपा के उम्मीदवार के रूप में एसपी बघेल इस चुनाव में अन्य सभी दलों के लिए एक बड़ी चुनौती माने जा रहे हैं। यहां राम लहर में भाजपा की लगातार तीन चुनाव में लगी जीत की तिकड़ी को पार्टी को बघेल के सहारे आगे बढ़ने की उम्मीद लगी हुई है।
चुनावी इतिहास
फिरोजाबाद लोकसभा सीट पर वर्ष 2009 में फिल्म अभिनेता से राजनेता बने राज बब्बर के ग्लैमर के बल पर कांग्रेस ने 25 साल बाद वापसी की थी, इससे पहले इस सीट पर कांग्रेस को वर्ष में गंगाराम ने जीत दिलाई थी। इस सीट पर 1957 में निर्दलीय ब्रजराज, 1967 में एसएसपी के एससी लाल, 1971 में कांग्रेस के छत्रपति अंबेश ने झंडा बुलंद किया था। आपात काल के बाद भारतीय लोकदल के टिकट पर रामजीलाल सुमन जीते तो में फिर निर्दलीय राजेश कुमार सिंह ने जीत हासिल की। 1989 में रामजीलाल सुमन ने जनता दल के टिकट पर फिर से सीट कब्जाई, लेकिन उसके बाद लगातार तीन चुनाव में प्रभु दयाल कथेरिया ने जीत हासिल करके भाजपा की तिकड़ी लगाई। 1999 व 2004 में सपा के टिकट पर रामजीलाल सुमन लोकसभा पहुंचे। दरअसल फिरोजाबाद लोकसभा सीट 2008 के परिसीमन के बाद भौगोलिक और राजनीतिक परिस्थितियों को बहुत बदल चुकी है, जिसके कारण राजनीतिक दलों को सिरे से राजनीति तय करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
चक्रव्यूह में फंसे 15 उम्मीदवार
फीरोजशाह तुगलक द्वारा बसाए गये फिरोजाबाद की इस सीट को परिसीमन के बाद टुंडला, जसराना, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद व सिरजागंज विधानसभाओं से सृजित किया गया है, जहां भाजपा के प्रो. एसपी सिंह बघेल, कांग्रेस के अतुल चतुर्वेदी, सपा के अक्षय यादव व बसपा के ठा. विश्वजीत सिह के अलावा आप क राकेश यादव सियासी जंग में हैं, जहां लोकदल, शिवसेना, मुस्लिम लीग, पीस पार्टी समेत 13 दलों के प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। इन उम्मीदवारों के सामने 7.21 लाख महिलाओं समेत 16.09 लाख मतदाताओं का चक्रव्यूह भेदने के लिए है।
इतिहास भी ऐतिहासिक
भारत में सबसे अधिक काँच की चूड़ियाँ, सजावट की काँच की वस्तुएँ, वैज्ञानिक उपकरण, बल्ब आदि बनाये जाते हैं। फिरोजाबाद में चूड़ियों का व्यवसाय मुख्यता: होता है। घरों के अन्दर महिलाएँ भी चूडियों पर पॉलिश लगाकर रोजगार अर्जित कर लेती हैं। इस शहर के अधिकांश लोग काँच के किसी न किसी सामान के निर्माण से जुड़े उद्यम में लगे हैं। सबसे अधिक काँच की चूड़ियों का निर्माण इसी शहर में होता है।
18Apr-2014

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