रविवार, 20 अप्रैल 2014

राग दरबारः-मुनियप्पा के अप्पा

कें द्रीय मंत्री हैं केएच मुनियप्पा। कर्नाटक की सियासत में जाना पहचाना दलित चेहरा। कांग्रेस के टिकट पर कोलार से लगातार जीतते रहे हैं। चुनावी सभा के दौरान मंच पर सोनिया गांधी के पैर छूने झुके तो अगले दिन सभी अखबारों के पहले पेज पर थे चरण वंदना करते मुनियप्पा। सोनिया गांधी की व्यक्तिगत रुचि के कारण वे यूपीए-1 में रेल राज्यमंत्री रहे। यूपीए-2 में प्रोन्नति देकर उन्हें भारी उद्योग का स्वतंत्र प्रभार दिया गया। पूजा-पाठ और मंदिरों में अगाध र्शद्धा इतनी कि दिल्ली के जिस मंदिर में पूजन-हवन को वे जाते रहे उसके पुजारी को मंत्रालय में कहीं न कहीं ‘सेट’ करते रहे। हर हफ्ते गुरुवार को शिरडी के साईंबाबा के दर्शन करने जाना उनकी आदतों में शुमार रहा। अंधविश्वास इतना कि वोट देने होराहल्ली स्थित अपने पोलिंग बूथ पर गए तो वास्तुशास्त्र के अनुसार पोलिंग अधिकारी को वोटिंग मशीन रखने की हिदायत दी। अधिकारी मान गए। दक्षिण मुखी मशीन को उत्तर-पूर्व दिशा की ओर मोड़ दिया। बात बड़े अधिकारियों तक पहुंची तो पोलिंग अधिकारी नप गए। मगर, मुनियप्पा के अप्पा खुश हैं कि मशीन वास्तुशास्त्र के हिसाब से रखा गया इसीलिए उनकी जीत फिर से निश्चित है।
मोदी बनाम इंदिरा
लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की लहर है या नहीं, इस बारे में हर किसी का अपना मत हो सकता है। ऐसा ही 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी की लहर में था। उस समय भी तमाम विरोधी दल इंदिरा गांधी पर उसी प्रकार हमले कर रहे थे। जैसे इस चुनाव में मोदी के खिलाफ लामबंदी करते दिख रहे हैं। ऐसी लहर इस बार देखने को मिल रही है, जहां इसे कुछ को महसूस कर रहे हैं तो कुछ इसे मीडिया प्रायोजित प्रचार मान रहे हैं। लेकिन एक बात साफ है कि इस बार के संसदीय चुनाव के केंद्र में सिर्फ और सिर्फ नरेंद्र मोदी हैं। एक तरफ हिंदुस्तान की सारी सियासी ताकतें तो दूसरी तरफ मोदी। समर्थक और विरोधी दोनों अपनी जीत पक्की करने को मोदी राग अलाप रहे हैं। कुछ ऐसा ही 1971 के आम चुनाव में था जहां जनसंघी, सोशलिस्ट, पीलू मोदी की पार्टी वाले स्वतंत्र, बूढ़ी कांग्रेस के नेता सब इंदिरा जी के पीछे पड़े थे। उस समय इंदिरा जी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था तो विरोधियों का नारा इंदिरा हटाओ था। फर्क इतना है कि इस बार के चुनाव में कांग्रेस की जगह भाजपा है और इंदिरा गांधी की जगह नरेंद्र मोदी। यह कहावत भी है कि जब ताकतवर के विरोध में सब एकजुट हुए तो इंदिरा की तरह फिलहाल मोदी ही ताकतवर लग रहे हैं।
किताब में नया क्या
यह लोक भी तुम्हारा, वह लोक भी तुम्हारा, पर छू नहीं सकते अधिकार है हमारा। हाल ही में पत्रकार संजय बारू और पूर्व कोयला सचिव पारेख की किताबों से जो खुलासे हुए हैं उसमें कांग्रेस की त्यागमूर्ति श्रीमती सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाकर इसी कहावत को चरितार्थ किया है। संजय बारू भले ही पीएमओ के लिए अब विश्वसनीय न रहे हों पर जनता उनके लिखे को सौ फीसदी सत्य मानकर चल रही है। हालांकि बारू की किताब आने से पहले ही देश में बच्चे-बच्चे की जुबान पर यह जुमला आम रहा है कि मनमोहन सिंह उन्हीं फैसलों को लागू करते हैं जिसे कांग्रेस प्रमुख पसंद करती है यानि मनमोहन दस जनपथ के रिमोर्ट कंट्रोल से सरकार चलाते आ रहे हैं। भले ही कांग्रेस युवराज उन्हें कभी कभी बकवास भी क्यों न घोषित कर दें। मसलन ऐसे में बारू की किताब में रहस्योद्घाटन जैसा कुछ नहीं है। वही सब लिखा है जो पूरा देश पहले से ही जानता है।
किसके हैं गीत
भाजपा को जीत का परचम लहराने के लिए एक अदद जोश से भरे गीत की जरूरत थी। गीत के साथ सुरीला मगर जोश से भरे संगीत की जरूरत थी। गीत और संगीत की व्यवस्था की गई। मशहूर गीतकार प्रसून जोशी ने गीत तैयार किए। जिसे आवाज दी सुखविंदर ने। जोश से भरा गीत-संगीत बनते ही सियासी शमां में छा गया। सौगंध मुझे इस मिट्टी की.। अचानक अहमदाबाद का एक 26 साल का नवयुवक कुलदीप सिंह जाडेजा नमूदार होता है। दावा करता है कि 24 लाइनों का यह गीत नरेंद्र मोदी के लिए उसने लिखा था। जिसे पोस्ट से भेजा गया था। उसी गीत के बोल को इधर-उधर कर आवाज दी गई है। गत 25 मार्च को अपना दावा पुख्ता करने के लिए जडेजा ने अपनी गीत को यू-ट्यूब पर पोस्ट कर दिया। अब तक 3 लाख लोगों ने उसके गीत को देखा और सुना है। मगर, न तो भाजपा की ओर से और न ही प्रसून जोशी की ओर से इस विवाद पर कोई जवाब आया है। जाडेजा को उम्मीद है कि उसने जिस उम्मीद से गीत को लिखा था, वह लक्ष्य तो पूरा हो गया मगर उसका नाम बेनाम नहीं होना चाहिए।
बर्खास्त होंगे सांसद
संसद के इतिहास में यह पहली बार होगा कि कोई राज्यसभा सांसद अपनी मियाद पूरी करने से पहले से अध्यक्ष की ओर से बर्खास्त किया जाएगा। डीएमके से सांसद टीएम सेल्वगणपति पर बर्खास्तगी की तलवार लटक रही है। सीबीआई की चेन्नई कोर्ट ने 1995-96 के मशहूर क्रिमेशन-शेड-स्कैम में सेल्वगणति को दोषी करार दिया है। तब वे तत्कालीन जयललिता सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। बाद में पाला बदलकर सूबाई सियासत में जयललिता के धुर विरोधी माने जाने वाले डीएमके सुप्रीमो करुणानिधि के साथ हो लिए। करुणानिधि में उन्हें वर्ष 2008 में पहली बार राज्यसभा भेजा थे। ऊपरी संसद में अपनी दूसरी पारी खेल रहे वरिष्ठ तमिल नेता को ये इल्म भी न होगा कि दो दशक पुराने केस में वे बुरी तरह उलझ सकते हैं। बतौर सांसद उनका कार्यकाल वैसे तो वर्ष 2019 तक है, मगर कोर्ट ने उन्हें दोषी करार दिया है इसीलिए या तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना होगा या फिर वे राज्यसभा से बर्खास्त किए जाएंगे। मुख्यमंत्री जयललिता ने राज्यसभा अध्यक्ष उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी को पत्र लिखकर सेल्वगणपति को बर्खास्त करने की मांग की है।
20apr-2014

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें