बुधवार, 16 अप्रैल 2014

हॉट सीट:मुरादाबाद-अजहर की रुखसती से भाजपा की उम्मीदों को लगे पंख


भाजपा को खाता खोलने की है दरकार
ओ.पी.पाल

उत्तर प्रदेश में पीतलनगरी के नाम से मशहूर मुरादाबाद संसदीय सीट पर लोकसभा चुनाव की सियासी जंग में भाजपा के लिए अपना खाता खोलने की दरकार है, जो किसी चुनौती से कम नहीं है। सूबे की सबसे बड़ी मुस्लिम बाहुल्य लोकसभा सीट पर बहुष्कोणीय मुकाबला माना जार रहा है। हालांकि मोहम्मद अजरूद्दीन को जिताने के बाद सबक ले चुके मुरादाबाद वासियों को कांग्रेस व बसपा के बाहरी प्रत्याशियों के अपेक्षा स्थानीय प्रत्याशियों को तरजीह देने की मुहिम चला रहे हैं, जिसके कारण भाजपा और सपा के बीच सीधा मुकाबला होने की संभावना है।
मुरादाबाद मंडल मुख्यालय की इस लोकसभा सीट पर भाजपा ने पिछले चुनाव में कांग्रेस के पैराशूट प्रत्याशी के रूप में सियासी जंग में कूदे क्रिकेटर मोहम्मद अजहरूद्दीन के सामने उप विजेता रहे कुंवर सर्वेश कुमार सिंह पर एक बार फिर दांव खेला है। जबकि कांग्रेस ने मुस्लिम वोट बैंक के सहारे भाजपा को इस सीट पर खाता खोलने से रोकने की रणनीति के तहत रामपुर लोकसभा सीट पर लगातार दो बार फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा से मात खाती आई नूरबानो को अपना प्रत्याशी बनाया है। बसपा की नजरें भी मुस्लिम वोट बैंक पर हैं तो उसने मेरठ के हाजी याकूब को चुनाव मैदान में उतारा है,  जबकि सत्तारूढ़ सपा ने स्थानीय नेता एच़ टी़ हसन को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर इन दलों के प्रत्याशियों समेत कुल 18 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिसमें छह प्रत्याशी मुस्लिम हैं। जहां तक मुख्य चुनावी मुकाबले का सवाल है उसमें भाजपा, कांग्रेस, सपा व बसपा के बीच सियासत की जंग होनी है, हालांकि इस मुकाबले में आम आदमी पार्टी न भी स्थानीय विमल कुमार को उतारकर शामिल होने का प्रयास किया है।
मुस्लिम सांसदों को रास आई सीट
मुरादाबाद मंडल की बराहपुर, कांठ, ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद नगर व मुरादाबाद ग्रामीण विधानसभाओं को मिलाकर बनाई गई मुरादाबाद लोकसभा सीट पर 18 उम्मीदवारों के सामने करीब 17.21 लाख मतदाताओं का चक्रव्यूह भेदने के लिए है, जिसमें 7.85 लाख से ज्यादा महिलाएं हैं। इस लोकसभा सीट पर अभी तक हुए 15 लोकसभा चुनाव में दस बार मुस्लिम प्रत्याशियों को लोकसभा में जाने का मौका मिला है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के मोहम्मद अजरूद्दीन से पहले 2004 का चुनाव सपा के सफीकुर्रहमान बर्क के खाते में गया था, जो इससे पहले 1996 व 1998 में भी सपा को काबिज कर चुके थे। इस सीट पर सबसे ज्यादा जीत का स्वाद गुलाम मोहम्मद खान 1977 में भारतीय लोकदल, 1980 में जनता पार्टी(एस) के अलावा 1989 व 1991 में जनता दल के टिकट पर जीते। जहां तक कांग्रेस का सवाल है अजहर के अलावा प्रथम दो चुनाव और 1984 में इस सीट पर कब्जा कर चुकी है, लेकिन 1971 में जनसंघ के बाद भाजपा और बसपा यहां अपने पैर नहीं जमा सकी।
सियासी जंग का मिजाज
लोकसभा चुनाव की तस्वीर के बारे में स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार भुवनचंद्र का कहना है कि बसपा, सपा और कांग्रेस के साथ पीस पार्टी द्वारा मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा करने से इस बार भाजपा के प्रत्याशी कुंवर सर्वेश सिंह का पलड़ा भारी है। इसका कारण बताते हुए उनका कहना है कि चूंकि मुस्लिम मतों का विभाजन होना तय है इसलिए इस बार बदलाव की बयार में वोट बैंक का धु्रवीकरण होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता, जिसका सीधा लाभ भाजपा का मिल सकता है। कांग्रेस की बेगम नूर बानो और बसपा के हाजी याकूब कुरैशी को बाहरी माना जा रहा है, जिसका सबक यहां की जनता मोहम्मद अजरूद्दीन को जिताकर सीख चुकी है जो पांच साल में एक भी बार यहां की सुध लेने नहीं आये। इसलिए भाजपा और सपा के स्थानीय प्रत्याशियों को इस बार मुख्य मुकाबले में माना जा रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में सर्वेश सिंह ने कांग्रेस के अजहरुद्दीन से करीब साठ हजार मतो से मात खाई थी। इस बार मुस्लिम वोट बैंक विभाजित हुआ तो यह सीट भाजपा की झोली में जा सकती है।
ऐसा है मुरादाबाद का इतिहास
उत्तर प्रदेश में पीतल हस्तशिल्प के निर्यात के लिए पीतलनगरी के रूप में मुरादाबाद राम गंगा नदी के तट पर विश्व में प्रसिद्ध है। मुरादाबाद शहर की स्थापना मुगल शासक शाहजहाँ के पुत्र मुराद बख्श ने की थी। जिसके नाम पर ही इस जगह का नाम मुरादाबाद पड़ गया। रामगंगा और गंगा यहाँ की दो प्रमुख नदियाँ हैं। मुरादाबाद विशेष रूप से प्राचीन समय की हस्तकला, पीतल के उत्पादों पर की रचनात्मकता और हॉर्न हैंडीक्राफ्ट के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध है। मुरादाबाद स्थित मुख्य बाजार पीतल मंडी है। इस जगह पर कई सौ छोटी और बड़ी दुकानें है जहां तांबा और कांसा की ब्रिकी की जाती है।
15Apr-2014

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