बुधवार, 16 अप्रैल 2014

हॉट सीट:बरेली- किसका झुमका गिरेगा बरेली के बाजार में ?

वापसी को बेताब संतोष गंगवार
ओ.पी.पाल

महाभारत काल की अद्वितीय विरासत के रूप में पहचानी जाने वाली बरेली लोकसभा सीट का सियासी इतिहास भले ही कैसा रहा हो, लेकिन भाजपा की ओर से पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने बरेली के मांझे की डोर गुजरात की पतंग से जोड़ने के संदेश ने चुनाव को दिलचस्प मोड़ पर पहुंचा दिया। यही कारण है कि बरेली को अपनी सियासी रणभूमि बना चुके भाजपा के संतोष गंगवार इस बार यहां से फिर से वापसी करने को बेताब हैं, जिनके विजयी रथ को पिछले आम चुनाव में कांग्रेस के प्रवीन ऐरन ने रोक दिया था।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गिनी जाने वाली बरेली लोकसभा सीट का इतिहास ऐसा है जिसमें भाजपा नेता संतोष गंगवार भी निरंतर अपनी जीत दर्ज कराने वालों की फेहरिस्त में शामिल हैं। फिल्मी गीत बरेली के बाजार में झुमका गिरा रे..के नाम से पहचानी जा रही बरेली लोकसभा क्षेत्र से लगातार छह बार अपने नाम जीत दर्ज करा चुके संतोष गंगवार ‘मोदी है नाम-कमल है निशान’ का नारा देकर भाजपा की परंपरागत सीट को फिर से कांग्रेस के जबड़े से छीनने की जुगत में है। गंगवार की सियासी नैया को पार लगाने के इरादे से ही नरेन्द्र मोदी ने उनके समर्थन में की रैली में बरेली के इतिहास और परंपरा तक छुआ। मोदी का यह संदेश यहां के लोगों के दिलों तक इसलिए भी पहुंचा कि उन्होंने बरेली के प्रसिद्ध मांझा उद्योग को गुजरात के पतंग उद्योग से जोड़ने की बात से गंगवार को संजीवनी दी। हालांकि गंगवार पिछला चुनाव ज्यादा अंतर से नहीं हारे थे और उन्हें भरोसा है कि वे इस बार अपनी वापसी करने में कामयाब हो जांएंगे। अटल सरकार में पेट्रोलियम मंत्री रहे संतोष गंगवार की बरेली में व्यक्ति छवि भी उनके लिए खेवनहार का काम करती दिख रही है। इनका मुख्य मुकाबला कांग्रेस के प्रवीन ऐरन से ही है। प्रवीन ऐरन भी अपनी सीट को बचाने के लिए हर हथकंडे अपनाने में पीछे नहीं है। जबकि सपा की आइशा इस्लाम और बसपा के मैनेजमेंट गुरू माने जाने वाले उमेश गौत्तम इस मुकाबले में आने की जुगत में हैं। जबकि आप ने भी सुनील कुमार पर दावं खेला है, जहां कुल 14 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
बसपा को तौकिर का सहारा
बरेली लोकसभा सीट पर चूंकि सपा व बसपा समेत छह मुस्लिम प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं, इसलिए बसपा को दलित-मुस्लिम गठजोड़ बनाए रखने के लिए उमेश गौत्तम ने मुस्लिम वोटों के धु्रवीकरण की गरज से आइएमसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना तौकीर रजा खां का सहारा लिया है। यहां के वरिष्ठ पत्रकार सीपी सिंह का कहना है कि इसके बावजूद मुस्लिम वोटों का विभाजन तय है और मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर तौकिर रजा विवादों में आए है तो जाहिर सी बात है कि मुस्लिमों के वोट बैंक पर तौकिर की अपील का प्रभाव होने वाला नहीं है, जिसका फायदा सीधे भाजपा को मिलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
सीट का इतिहास
बरेली लोकसभा सीट के इतिहास की बात करें तो भाजपा और उसके अनुसांगिक संगठन भारतीय जनसंघ का डंका ज्यादा बजा है, आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी के राममूर्ति की जीत भी इसी का हिस्सा मानी जा सकती है। आजादी के पहले दो चुनावों में कांग्रेस के सतीश चंद्रा जीते, लेकिन 1962 व 1967 में इस सीट पर भारतीय जनसंघ का कब्जा रहा, जिसके बाद 1971 में फिर इस सीट को कांग्रेस के सतीश चंद्रा और 1980 व 1984 में बेगम आबिदा अहमद ने जीत हासिल कर कांग्रेस का परचम लहराया। इसके बाद लगातार हुए छह लोकसभा चुनाव में भाजपा के संतोष गंगवार ने विजय रथ चलाकर इसे अपनी कर्मभूमि का रूप दे दिया, लेकिन वर्ष 2009 का पिछला चुनाव गंगवार कांग्रेस के प्रवीन ऐरन से मात्र 1.32 प्रतिशत मतों से परास्त हो गये थे, जो इस बार बदला चूकता करने की फिराक में हैं। बरेली मंडल की मीरगंज, भोजीपुरा, नवाबगंज, बरेली शहर व बरेली कैंट विधानसभाओं को मिलाकर बनी बरेली लोकसभा सीट पर इस बार 16.05 लाख मतदातओं का चक्रव्यूह है, जिसमें करीब 7.25 लाख महिलाओं की भूमिका निर्णायक रहने वाली है।
16Apr-2014

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