बुधवार, 9 अप्रैल 2014

हॉट सीट: बिजनौर- खालिस सियासतदानों के बीच फंसी जयाप्रदा

ग्लैमर का तड़का देने के बावजूद रालोद की राह आसान नहीं
ओ.पी.पाल
महाभारत काल से स्वतंत्रता संग्राम तक के इतिहास को समेटे बिजनौर लोकसभा सीट सूबे की कुछ ऐसी सीटों में शुमार है, जहां इस बार सियासी जंग घुटे हुए राजनीतिज्ञों के बीच छिड़ी हुई है। ऐसे में ग्लैमर का तड़का देने के बावजूद रालोद के लिए जीत की तिकड़ी बनाने की राह आसान नहीं है। वहीं उत्तर प्रदेश के तीन मंडलों मुरादाबाद, मेरठ व सहारनपुर की पांच विधानसभाओं से परिसीमित की गई बिजनौर लोकसभा सीट पर सियासत एकदम अलग है, जहां राजनीतिक इतिहास किसी एक दल की बपौती बनकर नहीं रहा है।
बिजनौर लोकसभा सीट की राजनीति का ऐसा इतिहास रहा है जहां से बिना राजनीतिक दल के सहारे निर्दलीय उम्मीदवार भी लोकसभा तक पहुंचे हैं,इसलिए हिंदू-मुस्लिम की उपजातियों पर आधारित सियासत यहां किसी को रास नहीं आई। 16वीं लोकसभा के चुनाव में भाजपा को छोड़ अन्य राजनीतिक दलों ने पडोस के गंगापार जिले मुजफ्फरनगर दंगों में बिगड़े सियासी समीकरणों पर राजनीति को हवा देने का प्रयास किया और सभी की नजरें मुस्लिम वोट बैंक के ध्रुवीकरण पर लगी है। इसी समीकरण में इस बार इस सीट पर भाजपा, सपा और बसपा के त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना बनी हुई है। रालोद ने मौजूदा सांसद संजय सिंह चौहान को दरकिनार करके कांग्रेस गठजोड़ में रामपुर से दो बार से सांसद फिल्म अभिनेत्री जयाप्रदा के ग्लैमर का सहारा लेकर जीत की तिकड़ी बनाने का लक्ष्य साधा है। लेकिन सूबे की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशी के रूप में उद्योगपति, अधिवक्ता व पत्रकार शाहनवाज राना को प्रत्याशी बनाकर रालोद की तिकड़ी को रोकने का इरादा ठीक उसी तरह किया है, जिस प्रकार सपा ने 1998 के आम चुनाव में भाजपा की जीत की तिकड़ी के मंसूबे तोड़ दिये थे। शाहनवाज राना बिजनौर से बसपा के विधायक भी रह चुके हैं। राज्यसभा में सांसद होते हुए अलीगढ विवि से एमएससी राष्टÑवादी समाज पार्टी के टिकट पर मोहम्मद अदीब की नजरे मुस्लिम वोट बैंक पर हैं। वहीं पीस पार्टी के प्रत्याशी इसी राह पर हैं जो पेशे से इंजीनियर हैं। बसपा के मलूक नागर उद्योगपति हैं। परास्नातक शिक्षा प्राप्त स्थानीय विधायक कुंवर भारतेन्दु को अंतिम समय में टिकट देकर भाजपा ने मुकाबले को जटिल कर दिया है। भारतेन्दु मुजफ्फरनगर दंगों में आरोपित रहे हैं।
माया व मीरा की कर्मभूमि
बिजनौर लोकसभा सीट पर कांग्रेस छह बार जीत हासिल कर चुकी है। दो उपचुनाव भी कांगे्रस की झोली में गये हैं। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में कांग्रेस का विजयी रथ रूका था, जब जनता पार्टी के माहीलाल ने सीट कब्जाई थी। उसके बाद 1980, 1991 व 1996 के चुनाव में भाजपा के मंगलराम प्रेमी लोकसभा पहुंचे। इससे पहले 1985 के चुनाव में यहां बसपा प्रमुख कुमारी मायावती ने अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन कांग्रेस की मीरा कुमार ने जीत हासिल की, लेकिन 1989 में मायावती ने यह सीट जीतकर बसपा का परचम लहरा दिया था। 1998 के चुनाव में सपा की ओमवती ने जीत हासिल कर भाजपा की तिकड़ी रोकी थी, जिसके बाद 1999 का चुनाव में शीशराम सिंह ने जीत हासिल कर भाजपा की वापसी कराई, लेकिन उसके बाद पिछले लगातार दो बार से यहां रालोद का कब्जा है, जिसे बरकरार रखने के लिए पार्टी ने जयप्रदा के ग्लैमर का खेल खेला है। जबकि आजादी के बाद हुए पहले लगातार चार चुनाव कांग्रेस के नाम रहे थे।
मतों का चक्रव्यूह
बिजनौर लोकसभा सीट को परिसीमन के बाद जिस तरह से सृजित किया गया है, उससे इस सीट में तीन कमीश्नरी के मतदाता शामिल हो गये हैं। जिले की बिजनौर व चांदपुर के अलावा मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा और मुजफ्फरनगर की मीरापुर व पुरकाजी विधानसभा सीटों से बनी बिजनौर लोकसभा सीट 6.99 लाख महिलाओं समेत 15.33 लाख से ज्यादा मतदाताओं के चक्रव्यूह से घिरी है। इस सीट पर 12 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। मुजफ्फरनगर दंगों का असर यहां भले ही देखा जा रहा हो, लेकिन इस बार मतदाता विकास को कसौटी पर परखने के मूड में दिखाई दे रहे हैं।
बेजोड़ इतिहास की धरती
हिमालय की उपत्यका मे स्थित बिजनौर को प्राचीन काल के बेजोड़ इतिहास के बीच महाभारत काल के पात्रों का भी गौरव हासिल है। महाराजा दुष्यंत,परमप्रतापी सम्राट भरत, परमसंत ऋषि कण्व और महात्मा विदुर की कर्मभूमि के गौरव बिजनौर जिले ने साहित्य के इतिहास को भी बुलंदी पर पहुंचाया है। मसलन समीक्षक एवं संस्मरण लेखक पं. पद्मसिंह शर्मा, गजलकार दुष्यंत कुमार, फिल्म निमार्ता प्रकाश मेहरा के अलावा युवा शायर निखिल कुमार राजपूत जी की प्रथम गजल भी इसी भूमि की देन है।
90Apr-2014

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