रविवार, 20 अप्रैल 2014

हॉट सीट:आगरा- किसके सिर बंधेगा सियासी ताज !

सपा-बसपा-कांग्रेस के लिए चुनौती भाजपा
ओ.पी.पाल

विश्वप्रसिद्ध ताजनगरी के रूप में पहचाने जाने वाले शहर की आगरा लोकसभा सीट पर मोदी मौजिक के चलते भाजपा के लिए अपनी सीट को बचाने की दरकार होगी। इस सीट पर कांग्रेस पिछले 34 साल से जीत का स्वाद नहीं चख पाई है, जिसने इस बार दलित वोट बैंक के भरोसे उपेन्द्रग जाटव का भाजपा को चुनौती देने के लिए सियासत की जंग में उतारा है, जबकि बसपा अपने परंपरागत वोट बैंक को बचाने के प्रयास में है। सपा ने ऐनमौके पर महिला उम्मीदवार को जंग से हटाकर उसी बिरादरी के महाराज सिंह धनगर पर दांव खेला है। अब देखना है कि इस चतुष्कोणीय सियासी जंग में किसके सिर जीत का ताज बंधता है।
आगरा लोकसभा सीट पर पिछला चुनाव भाजपा प्रत्याशी डा. रामशंकर कठेरिया ने बसपा के कुंवर चंद को पराजित करके जीता था और सपा के रामजीलाल सुमन को तीसरे पायदान पर धकेल दिया था। यह सीट 1999 व 2004 के चुनाव में फिल्म अभिनेता राज बब्बर ने सपा के टिकट पर जीती थी,लेकिन मनमुटाव के कारण राज बब्बर ने सपा छोड़कर पिछला चुनाव कांग्रेस के टिकट पर फतेहपुर सीकरी से लड़ा, लेकिन हारने पर उन्होंने फिरोजाबाद सीट पर उप चुनाव में लोकसभा में दस्तक दी। इस बार सपा व बसपा यहां भाजपा को चुनौती देने की जुगत में हैं, लेकिन नरेन्द्र मोदी की हवा के सामने भाजपा को चुनौती देना इन दलों के लिए आसान नहीं दिखता। इस सीट पर आम आदमी पार्टी ने भी अपनी जमीन तैयार करने की तैयारी कर जंग में हिस्सेदारी की है। आगरा लोकसभा सीट के नए परिसीमन से गड़बड़ाए सियासी समीकरण के कारण सभी राजनीतिक दल बेहाल हैं, केवल इस शहरी सीट पर भाजपा ने अपना प्रभाव कायम किया है। आजादी के बाद लगातार पांच बार कांग्रेस के पास रही इस सीट पर विजयी रथ आपातकाल के बाद हुए चुनाव में थमा था और उसके बाद कांग्रेस 1980 का चुनाव ही जीत पाई है, उसके बाद कांग्रेस जीत के लिए तरस गई है। 1991 व 1998 में यहां भाजपा के भगवान शंकर रावत ने अपना परचम लहराया था, उसके बाद भाजपा पिछले चुनाव में फिर काबिज हुई।
प्रत्याशी व मतदाताओं का भ्रम
आगरा लोकसभा सीट नए परिसीमन के बाद जिस तरह से सृजित की गई है उसमें एटा जिले के निधौली कलां विकास खंड तमाम वोटरों व आगारा व एटा लोकसभा सीट के प्रत्याशियों के लिए भ्रमजाल बना हुआ है। यह सिर्फ इसलिए कि विकास खंड एक होने के बावजूद भी यहां के मतदाता दो सांसदों का चुनाव अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों के लिए करते हैं। ऐसे में प्रत्याशियों के प्रचार वाहन एक-दूसरे की सीमाओं में पहुंचकर अशिक्षित ग्रामीणों के लिए भ्रम पैदा कर देते हैं। दरअसल 15वीं लोकसभा के गठन से पहले हुए नए परिसीमन में निधौली कलां को मारहरा विधानसभा का नाम मिला, तो यह विकास खंड क्षेत्र विभाजित होकर एटा व आगरा लोकसभा से जुड़ गया। 2009 के चुनाव की में भी इस तरह का भ्रम बना रहा। यहां के लोगों की माने तो निधौली ब्लाक के पांच दर्जन गांव व मजरों को आगरा लोकसभा क्षेत्र में जोड़ दिया गया। इसके अलावा अन्य क्षेत्र एटा लोकसभा का हिस्सा बन गया। निधौली कला ब्लाक ऐसा क्षेत्र है जहां के मतदाता एक नहीं दो सांसदों का निर्णय करते हैं।
ये है दलों की चिंता
निर्वाचन आयोग से लेकर राजनीतिक दलों की एक ही चिंता है कि मतदान प्रतिशत कैसे बढ़ाया जाए। आगरा लोकसभा सीट पर जनता पार्टी की लहर में कांग्रेस के प्रति आपातकाल के गुस्से वाले 1977 के चुनाव में 65.75 प्रतिशत मतदान का रिकार्ड अभी भी कायम है। इस चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ विरोधी लहर है, तो जिसे चुनाव आयोग के अभियान में इस बार इस रिकार्ड को ध्वस्त करने की दरकार होगी। उस समय बीएलडी के शम्भूनाथ चतुर्वेदी ने रिकार्ड 70 प्रतिशत वोट हासिल कर कांग्रेस के विजयी रथ को रोका था। ऐसी लहर इंदिरागांधी की हत्या की सहानुभूति में भी नहीं चल पाई, जिसके बाद हुए वर्ष 1984 के चुनाव में 54.35 प्रतिशत मतदान हुआ था। हालांकि यह 1980 से अब तक हुए लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत का रिकार्ड फिल्म अभिनेता राजबब्बर का जादू भी नहीं तोड़ सका। 1998 से तो मतदान प्रतिशत लगातार गिर रहा है। पिछले चुनाव में तो न्यूनतम 42.03 प्रतिशत ही वोट डाले जा सके थे। इसके अलावा 1980 में 53.98, 1984 में 54.35, 1989 में 42.89, 1991 में 45.61, 1996 में 43.31, 1998 में 53.92, 1999 में 51.39 तथा 2004 के चुनाव में 44.92 प्रतिशत मतदान हुआ था।
जातीय समीकरण
भारतीय लोकसतंत्र में हालांकि जातीय आंकड़े राजनीतिक दल अपने हिसाब से साधते हैं। नए परिसीमन में आगरा और एटा जिले के कुछ हिस्से को जोड़ते हुए एत्मादपुर, जलेसर, आगरा कैंट, आगरा साउथ व आगरा नोर्थ विधानसभाओं से सृजित आगरा लोकसभा सीट पर करीब आठ लाख महिलाओं समेत 17.61 लाख से ज्यादा वोटर हैं। इस सीट के इस मतदाताओं के चक्रव्यूह को भेदने के लिए भाजपा के मौजूदा सांसद डा. रामशंकर कठेरिया को चुनौती देने के लिए कांग्रेस के उपेन्द्र सिंह, सपा के महाराज सिंह धनगर, बसपा क नारायण सिंह सुमन, आप के रविन्द्र सिंह, जदयू के रमेश समेत 15 प्रत्याशी सियासत की जंग में हैं। राजनीतिक दलों के कयासों के मुताबिक तीन-तीन लाख वैश्य व दलित, 2.50 लाख मुस्लिम, दो लाख कोली, खटीक, कुशवाह व वाल्किकी 60 हजार यादव, 45 हजार जाट, 50 हजार ब्राहमण, 80 हजार राजपूत, 80 हजार बघेल के अलावा एक लाख पंजाबी मतदाताओं का जाल है, जिन्हें साधने के लिए हर दल तरह-तरह के हथकंडे अपना रहा है।
बेजोड़ इतिहास का धनी
उत्तर प्रदेश प्रान्त का एक जिÞला शहर विश्व का अजूबा ताजमहल आगरा की पहचान है और यह यमुना नदी के किनारे बसा है। इस ऐतिहासिक नगर का इतिहास मुख्य रूप से मुगल काल से जाना जाता है। ई.स. 1631 में शाहजहाँ की बेगम मुमताज की मृत्यु होने पर उसकी याद में शाहं जहां ने एक भव्य महल-नुमा मकबरा बनवाने का निर्णय लिया, जिसने ताजमहल का रूप धारण किया। हालांकि यहां के इतिहास मे पहला जिक्र आगरा का महाभारत के समय से माना जाता है, जब इसे अग्रबाण या अग्रवन के नाम से संबोधित किया जाता था। कहते हैं कि पहले यह नगर आयॅग्रह के नाम से भी जाना जाता था। तौलमी पहला ज्ञात व्यक्ति था जिसने इसे आगरा नाम से संबोधित किया। वहीं आगरा का किला एक यूनेस्को घोषित विश्व धरोहर स्थल है। यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण किला है। भारत के मुगल सम्राट बाबर, हुमायुं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां व औरंगजेब यहां रहा करते थे, व यहीं से पूरे भारत पर शासन किया करते थे।
20Apr-2014

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