रविवार, 13 अप्रैल 2014

राग दरबार :नकवी की चुटकी

धर्मनिरपेक्षता के रक्षक
लोकसभा चुनाव में तीसरे विकल्प की ताल ठोककर पीएम बनने का ख्वाब देख रहे मुलायम सिंह से बड़ा सुक्युलर भला कौन हो सकता है, जिन्होंने खासकर दुराचारियों को संदेश देने का प्रयास किया कि यदि वे पीएम बने तो कानून बदलकर बलात्कारियों को माफ कर देंगे। राजनीतिक गलियारों में रेपिस्टों को फांसी की सजा देने की खिलाफत करते नजर आए सपा प्रमख के इस बयान पर राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि पहले से ही महिलाओं के आरक्षाण का विरोधी और मुस्लिमों के हितैषी होेने का दावा करने वाली सपा ने हिंदु-मुस्लिम एकता को कुछ इस तरह मजबूत करने का दम भरने को प्रयास किया है, जिसमें संविधान संशोधन के तात्पर्य है कि एक वर्ग के रेपिस्टों को भले ही फांसी हो, लेकिन जिस धर्म की पुस्तक में काफिरों की औरतो पर जुल्म ढ़ाना जायज है उन मासूमों को फांसी नहीं होनी चाहिए। इन्हें तो केवल धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करने की सियासत करनी है महिलाओं की इज्जत तो इनके लिए आती जाती बला है।
नतीजा हुए बेनतीजा
लोकसभा के तीसरे चरण में खासकर दिल्ली, हरियाणा, यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश आदि सूबे की सीटों पर हुए रिकार्ड मतदान पर सभी राजनीतिक दल अपने पक्ष में मतदान मानकर इतने प्रफ्फुलित हैं कि यह कहने में कोई परहेज नहीं कर रहे कि यह बदलाव की बयार है और उनकी भारी जीत का संकेत है। कहीं ऐसा न हो मतदान का रिकार्ड ऐसे दावों करने वाले दलों के लिए उलटा दांव न पड़ जाए। दरअसल चुनाव में बदलाव की बयार तो सब दल महसूस कर रहे हैं लेकिन इस तरह के बयान से ऐसे राजनीतिक दल अगले चरणों में होने वाले चुनाव के लिए माहौल तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं। राजनीतिक दलों के नेताओं के इतना खुश होने पर चर्चा यही है कि कम से कम चुनाव के नतीजों का इंतजार तो कर लिजिए।
सेक्युलर और लामबंदी
लोकसभा चुनाव में यह पहली बार देखने को मिल रहा है कि भाजपा की ओर से पीएम के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की घेराबंदी करने के लिए पूरे हिंदुस्तान के राजनीतिक दल सेक्युलरिज्म के नाम पर एकजुट हो रहे हैं। इन दलों को अपनी हार-जीत की चिंता कम, मोदी के पीएम की रेस तक जाने वाले रथ को रोकने की ज्यादा है। तभी तो कांग्रेस-रालोद, सपा, बसपा और आम आदमी पार्टी जैसे सबके सब दल मोदी को गरियाने में रात-दिन एक किये हुए हैं। ऐसे में मुसलिमों की हालत तो एक अनार सौ बीमार जैसी हो गयी है, जिन्हें इस्तेमाल करने के लिए इन दलों में अपनी उम्मीद कायम रखने के लिए भी नजरें हैं। लेकिन लोकतंत्र के इस महासंग्राम में तो जनता को जनादेश देना है, ऐसे में सारे सेक्युलर सूरमाओं के चक्रव्यूह क्या किसी की हार-जीत को रोक पाएगा या आज तक रोक पाए हैं।
13Apr-2014

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