शनिवार, 5 अप्रैल 2014

सियासी जंग में विरासत संभालने उतरे नेताओं के लाल

कांग्रेस परिजनों पर रही ज्यादा मेहरबान, कुछ की मजबूरी-कुछ की मजबूती
जंग में हैं करीब पांच दर्जन परिजन
ओ.पी.पाल
भारतीय राजनीति में वंशवाद की राजनीति कोई नहीं है। दशकों से चल रही राजनीति में राजनेताओं में परंपरा इस बदलते परिवेश में तो सिर चढ़कर बोल रही है। इस बार सियासी मैदान छोड़कर ऐसे कई वरिष्ठ नेताओं ने अपने शहजादों को चुनावी जंग में उतारकर राजनीतिक विरासत संभालने की जिम्मेदारी सौंपी है। अब देखना है कि नेताओं के ये लाल परिवार की विरासत संभालने के लिए क्या कमाल दिखा पाएंगे।
सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में वैसे तो करीब पांच दर्जन नेताओं के पुत्र व पुत्रियों तथा परिवार के लोग सियासत की जंग में हैं, लेकिन इस बार कुछ कद्दावर एवं वरिष्ठ राजनेताओं ने इच्छाशक्ति से सियासत का मैदान छोड़कर अपनी विरासत अपने शहजादों या परिजनों को विरासत सौंप दी है। इनमें राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी के पुत्र अभिजीत मुखर्जी भी शामिल हैं। जबकि केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने सियासी मैदान छोड़कर अपरी परंरागत सीट शिवगंगा अपने शहजादे 42 वर्षीय कार्ति चिदंबरम के लिए छोड़ दी और उन्हें कांग्रेस का टिकट दिलाकर संसद भेजने का लक्ष्य साधा। भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने भी अपने सुपुत्र जयतं सिन्हा को हजारीबाग सीट छोड़कर भाजपा के टिकट पर सियासत की जंग में उतार दिया है। भाजपा के ही टिकट पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने भी अपने लाल अभिषेक सिंह को सियासत की पारी शुरू करा दी है, जिसके लिए उन्होंने अपनी राजनंदगांव से भाजपा का टिकट दिलवा है। भाजपा के कई बार अंदर-बाहर रह चुके यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने फिर भाजपा में वापसी की है लेकिन चुनाव मैदान में न उतरकर अपने सुपुत्र राजबीर सिंह को एटा लोकसभा सीट से भाजपा का प्रत्याशी बनवा दिया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे साहिब सिंह वर्मा के निधन के बाद राजनीतिक विरासत संभालने आए उनके सुपुत्र प्रवेश वर्मा को भाजपा ने पहले दिल्ली विधानसभा में पहुंचाया और उनकी राजनीतिक ताकत को देख अब लोकसभा की जंग में उन्हें पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया है। वहीं भाजपा की राजनीति के मैनेजमेंट परोधा माने जाते रहे प्रमोद महाजन के देहांत के परिवार की राजनीतिक विरासत को जिंदा रखने के लिए राजनीतिक में सक्रिय हुई उनकी सुपुत्री पूनम महाजन राव को भाजपा ने मुंबई नॉर्थ-सेंट्रल से उम्मीदवार बनाया है। भाजपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे लोजपा प्रमुख राम विलास पासवान ने अभिनय के क्षेत्र में रहे अपने सुपुत्र चिराग पासवान को राजनीति की पाठशाला में शामिल ही नहीं किया, बल्कि पार्टी की बागडौर उन्हीं के हाथों में सौंप दी। 32 वर्षीय शहजादे चिराग पासवान को बिहार की जुमई लोकसभा सीट से सियासत की पारी खेलने का मौका दिया। बिहार की राजनीति में सक्रिय राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव ही कहां पीछे रहने वाले थे उन्होंने भी पाटलीपुत्र लोकसभा सीट से अपने हमदर्द रहे रामकृपाल को नजरअंदाज करके अपनी सुपुत्री मीसा भारती को चुनाव मैदान में उतार दिया है। कांग्रेस ने राजस्थान में झूंझनू से लंबे समय तक पार्टी के कद्दावर नेता शीशराम ओला के देहवासन के बाद उनके परिवार की राजनीतिक विरासत को बनाए रखने की दिशा में उनकी पुत्रवधु राजबाला ओला को सियासी पारी में उतारा है। हरियाणा में भी पुस्तैनी राजनीति को आगे बढ़ाते हुए चौटाला परिवार ने चौथी पीढ़ी पर दांव खेला है। पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला व उनसके बेटे भले ही जेल में हों, लेकिन राजनीतिक विरासत का रथ को आगे बढ़ाते हुए अजय चौटाला के शहजादे दुष्यंत चौटाला को लोकसभा की जंग में उतार दिया है। कांग्रेस ने असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई के सुपुत्र गौरव गोगोई को पिता व चाचा की परंपरागत सीट कलियाबार से प्रत्याशी बनाकर दांव खेला है, तो कर्नाटक की शिमोगा लोकसभा सीट पर कद्दावर नेता रहे एस बंगारप्पा की सुपुत्री गीता शिवराज कुमार चुनाव मैदान में है, जिनके पति और ससुर कन्नड़ फिल्मों के सुपर स्टारों में शुमार रहे हैं। इसी प्रकार पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे संतोष मोहन देव की बेटी सुष्मिता ने असम की सिलचर लोकसभा सीट पर सियासी जंग में परिवार की विरासत को संभाले रखने का लक्ष्य रखा है, जो वर्ष 2009 में इसी सिलचर विधानसभा सीट से राजनीति पारी में बोल्ड हो गई थी।
पहले संभाल चुके विरासत
वंशवाद की राजनीतिक में विभिन्न दलों के कद्दावर नेता रहे नेताओं की सियासत में पहचान कायम रखने की दिशा में वैसे तो पहले से ही राजनीति की डोर पकड़ चुके ऐसे कई नेताओं के पुत्र व पुत्रियां हैं जो इस लोकसभा चुनाव में भी किस्मत आजमा रहे हैं। इनमें राहुल गांधी, वरूण गांधी, दीपेन्द्र हुड्डा,ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट जितिन प्रसाद, मिलिंद देवडा, कुमार स्वामी देवगौडा, संदीप दीक्षित, वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत, प्रिया दत्त, केवल कांग्रेस और भाजपा जैसे मुख्य राजनीतिक दल ही अपने वरिष्ठ नेताओं के बेटे एवं बेटियों को टिकट नहीं दे रहे हैं बल्कि अन्य क्षेत्रीय दल भी वंशवाद की राजनीति को आगे बढ़ा रहे हैं। इनके अलावा परिजनों से जुड़े नाते-रिश्ते की डोर भी सियासत की जंग में किस्मत आजमा रहे हैं।
03Apr-2014

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