रविवार, 13 अप्रैल 2014

लोकसभा चुनाव :मुद्दों पर हावी है जुबानी जंग!

नेताओं के प्रचार में नदारद है घोषणापत्र के मुद्दे
हरिभूमि ब्यूरो

16वीं लोकसभा के लिए हो रहे सियासी महासंग्राम में इस बार जुबानी जंग ज्यादा हावी है, यही कारण है कि राजनीतिक दलों के नेता अपने चुनाव प्रचार के दौरान सभाओं में अपने घोषणा पत्र के मुद्दों को जनता के बीच पहुंचाने में पूरी तरह से पिछड़े हुए हैं।
लोकसभा चुनाव में एक-दूसरे दलों की पोल खोलने और आरोप-प्रत्यारोप लगाने की जुबानी जंग में चुनावी सभाओं या चुनाव प्रचार के दौरान देश और जनता के सामने पिछले चुनावों की अपेक्षा इस बार के लोकसभा चुनाव प्रचार में भ्रष्टाचार, सुशासन, महिला सुरक्षा और युवाओं को रोजगार जैसे मुद्दे मुहं बाए खड़े हैं, जिसके लिए चुनाव के दौरान जनता इस आस की बाट जोह रही है कि कौन सा दल और उनके नेता इन मुद्दों पर क्या कहते हैँ, लेकिन इस बार के चुनाव प्रचार में कोई भी दल ऐसे ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा करता नजर नहीं आ रहा है। हालांकि भाजपा, कांग्रेस और अन्य दलों ने इन मुद्दों का अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया है, लेकिन उनका प्रचार करने के मुकाबले सभी दल और उनके नेता एक अपने भाषणों में एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं। मसलन एक दूसरे दलों व उनके नेताओं पर आरोप-प्रत्यारोप और निजी जिंदगी की जड़े कुरदने में लगे हैं। ऐसा लगने लगा है कि जैसे यह सियासत की जंग नहीं बल्कि बदजुबानी जंग हो रही है। ऐसा भी नहीं है आरोप लगने पर संबन्धित दल एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव आयोग में भी जाने से कोई परहेज नहीं कर रहे हैं और चुनाव आयोग इन नेताओं की बदजुबानी की जांच करने में ही ज्यादा उलझा हुआ है। चुनाव आयोग को बदजुबानी वाले बयानों पर कुछ नेताओं पर तो चुनाव प्रचार करने पर भी प्रतिबंध लगाना पड़ा है, लेकिन राजनीतिक दलों को सियासी जंग की नैया पार लगाने की होड़ में चुनाव आचार संहिता की कोई परवाह नहीं है। राजनीतिक जानकारों की माने तो इस बार के चुनाव में नेताओं की बदजुबानी ने संविधान की सभी सीमाएं लांघ दी हैं जो इस लोकतांत्रिक प्रणाली या देशहित में नहीं हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि केंद्र की सत्ता हथियाने की होड़ में ज्यादातर राजनीतिक दल एक-दूसरे दलों के बड़े नेताओं को उनके निजी चिट्ठे खोलकर उन्हें जनता की अदालत में खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि चुनाव में उन्हें राजनीतिक लाभ न मिल सके। ऐसा भी नहीं है कि राजनीतिक दलों ने जनता के मिजाज को भांपकर चुनावी घोषणा पत्र में मुद्दों को शामिल न किया हो। मुद्दों को सभी ने उठाया है लेकिन सवाल है कि मुद्दों के बजाए जुबानी जंग में चुनाव प्रचार का समय जाया करने का काम ज्यादा हो रहा है।
13Apr-2014

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