शनिवार, 26 अप्रैल 2014

हॉट सीट : टोंक सवाई माधोपुर- भाजपा के गढ़ में फंसी अजहर की सियासी पारी!

ओ.पी. पाल
राजस्थान की टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट में शामिल सभी आठों विधानसभा सीटें भाजपा के कब्जे में हैं। ऐसे में मुरादाबाद का रण छोड़कर भाजपा के इस राजनीतिक गढ़ में कांग्रेस के लिए पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजरूद्दीन की सियासत की दूसरी पारी फंसती दिखाई दे रही है। अजहर के लिए इस सीट पर चुनावी राह इसलिए भी आसान नहीं दिख रही है, क्योंकि सूबे में कांग्रेस शासन के बावजूद पिछले आम चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर केंद्र में मंत्री बने नमोनरायण मीणा मात्र 317 मतों के अंतर से बामुश्किल लोकसभा पहुंच पाए थे। संसदीय क्षेत्र के मिजाज का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है  कि कुल आठ विधानसभा वाले इस क्षेत्र में सभी विधायक भाजपा के हैं।
रणथम्भौर बाघ परियोजना के लिए मशहूर सवाई माधोपुर जिले और तहजीब और राजस्थान की नवाबों की नगरी टोंक को मिलाकर नए परिसीमन में सृजित की गई टोंक-सवाई माधोपुर संसदीय सीट पर 24 अप्रैल को होने वाली सियासी जंग में कांग्रेस ने भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान रहे क्रिकेटर मोहम्मद अजहरूद्दीन का उतारा है, जिन्होंने पिछला चुनाव मुरादाबाद लोकसभा सीट से सियासत की पहली पारी जीती थी। मीणा, गुर्जर और मुस्लिम बाहुल्य इस संसदीय सीट से कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी ने जातिगत समीकरणों को साधने के लिए पैराशूट प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। भले ही अजहर इस सीट पर कांग्रेसियों के बाहरी होने के ताने सुनकर यह कहते हों कि भारत में कहीं से भी चुनाव लड़कर बाहरी उम्मीदवार नहीं हो सकता, लेकिन पैराशूट से उतारे जाने वाले अजहर ही नहीं है, भाजपा ने भी पैराशूट से गुर्जर नेता सुखबीर सिंह जौनपुरिया पर सियासी दांव आजमाया है। विधाानसभा चुनावों की तरह इस सीट पर भाजपा व कांग्रेस के बीच ही टक्कर मानी जा रही थी, लेकिन सूबे में राजनीतिक पहचान बनाने वाले किरोड़ी लाल मीणा ने अपने भाई जगमोहन मीणा को राजपा का प्रत्याशी बनाकर सियासी जंग को त्रिकोणीय बना दिया है। हालांकि करीब छह माह पहले ही राजस्थान विधानसभा चुनाव में इस लोकसभा सीट में निहित सभी आठ सीटों पर भाजपा ने जीत का परचम लहराकर इसे अपनी पार्टी का गढ़ बना दिया है। पिछले आम चुनाव में कांग्रेस के नमोनारायण मीणा भाजपा के किरोडी सिंह बैंसला से मात्र 317 वोट ज्यादा लेकर लोकसभा पहुंचे थे। इस बार वह दौसा लोकसभा सीट से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
लोकसभा सीट का सफर
टोंक-सवाई माधोपुर संसदीय सीट के अस्तित्व में आने पर पहला चुनाव 2009 में कांग्रेस के नमोनारायण मीणा ने जीता, जिन्होंने 14वीं लोकसभा का चुनाव टोंक लोकसभा सीट से जीता था। इससे पहले टोंक व सवाई माधोपुर संसदीय सीटों पर कांग्रेस ने जीती, उसके बाद दोनों सीटों पर स्वतंत्र पार्टी के उम्मीदवारों ने परचम लहराया था। 1971 में टोंक पर कांग्रेस तो सवाई माधोपुर सीट कांग्रेस ने कब्जाई। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में दोनों सीटों पर जनता पार्टी ने कब्जा जमाया, तो उसके बाद दों आम चुनाव में इन सीटों पर फिर कांग्रेस जीतकर आई। वर्ष 1989 में दोनों सीटों को जनता पार्टी ने फिर कांग्रेस के जबडे से निकाली। जबकि 1991 के चुनाव में इन दोनों सीटों पर भाजपा का तो 1996 के चुनाव में एक भाजपा व एक कांग्रेस के पास गई। 1998 के चुनाव में फिर दोनों सीटों पर कांग्रेस का परचम लहराया। तो 1999 में इन दोनों सीटों पर भाजपा के प्रत्याशी जीत कर आए। 2004 के चुनाव में इन सीटों पर फिर कांग्रेस जीतकर आई।
मतदाताओं का चक्रव्यूह
टोंक जिले की चार मालपुरा, निवाई, टोंक व देवली-उनियारा तथा सवाई माधोपुर जिले की गंगापुर, बामनवास, सवाई माधोपुर व खंडार विधानसभओं से 2008 के परिसीमन में सृजित टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा सीट पर करीब आठ लाख महिलाओं समेत 17.10 लाख मतदाओं का जाल बिछा हुआ है,जिसे भेदने के लिए इस सीट पर भाजपा, कांग्रेस, राजपा, बसपा, तृणमूल कांग्रेस, लोकदल, आप एनपीपी,जेएमबीपी जैसे दलों समेत इस चरण के चुनाव में सबसे ज्यादा 22 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस सीट पर मीणा बिरादरी के अलावा अगडी जातियो के वोट बैंक पर अच्छा प्रभाव रखने वाले मक्खन लाल मीणा भी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इस चुनावी मुकाबले को प्रभावित करते दिख रहे हैँ।
चुनावी मिजाज
टोंक-सवाई माधोपुर संसदीय सीट पर इस बार कांग्रेस ने क्रिकेटर मो. अजहरूद्दीन को टिकट देकर स्थानीय कांग्रेसियों का विरोध भी मोल ले लिया है,जहां मोहम्मद अजहरूद्दीन को बाहरी उम्मीदवार करार देते हुए कांग्रेस के पूर्व विधायक समेत अन्य पदाधिकारियों का खुला विरोध भी झेलना पड़ रहा है,लेकिन इस विरोध का कांग्रेस आलाकमान पर कोई विशेष असर नहीं पड़ा। यही नहीं भाजपा के भी कांग्रेस के कदमों पर चलते हुए टोंक-सवाई माधोपुर संसदीय क्षेत्र सें गुर्जर मतों को साधने के इरादे से बाहरी उम्मीदवार सुखबीर सिंह जौनपुरिया को भी अंदरूनी खींचतान का शिकार होना पड़ रहा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के नमोनारायण मीणा से मामूली मतों से हारे कर्नल किरोडी सिंह बैंसला हालांकि अब कांग्रेस की नाव में सवार हैं। राजनीतिज्ञ पंडितों का मानना है कि कर्नल किरोडी सिंह बैंसला जौनपुरिया की जीत की राह में रोड़ा बनने का प्रयास कर रहे हैं। कर्नल का गुर्जर मतों पर काफी प्रभाव है और राजस्थान में चले गुर्जर आरक्षण आन्दोलन के दौरान बैंसला और जौनपुरिया के रिश्तों में छत्तीस का आंकड़ा रहा है। भाजपा प्रत्याशी सुखबीर सिंह जौनपुरिया मूलरूप से हरियाणा के हैं और तीन साल पहले उस समय चर्चाओं में आए जब उन्होंने बेटी की शादी में शाही खर्च करके सुर्खियां बटोरी। यही नहीं उनहोंने पिछला चुनाव भी लड़ा था लेकिन सियासी रंग पटरी पर नहीं चढ़ पाया था।
24Apr-2014

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