सोमवार, 31 मार्च 2014

हॉट सीट-मथुरा :ड्रीमगर्ल के ग्लैमर ने तोड़े सियासत के नाते-रिश्ते!

जयंत चौधरी की राह नहीं रह गई आसान
ओ.पी.पाल

लोकसभा चुनाव की सियासी जंग में कान्हा की मथुरा लोकसभा सीट भी बनारस से कमतर नहीं है। भाजपा प्रत्याशी के रूप में ड्रीम गर्ल हेमामालिनी के ग्लैमर के सामने जातीय समीकरण, सियासी नाते-रिश्तेदार अपने ही भ्रमजाल में उलझते नजर आ रहे हैं। यही कारण है कि इस बार मथुरा लोकसभा सीट से निवर्तमान सांसद रालोद प्रत्याशी जयंत चौधरी की राह आसान नहीं।
उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी के रूप में मथुरा का अपना एक अलग सियासी महत्व है। जाट बाहुल्य मथुरा लोकसभा सीट पर भाजपा के टिकट पर जाट परिवार की बहू हेमामालिनी को चुनाव मैदान में उतारने से रालोद प्रत्याशी जयंत चौधरी के लिए मुश्किलें पैदा होती नजर आ रही हैं। 15वीं लोकसभा का चुनाव जयंत चौधरी जाट-ब्राह्मण गठजोड़ में राजपूत व अन्य जातियों के सहयोग से आसानी से निकाल ले गए थे। इस बार हेमा मालिनी के सियासी जंग में कूदने से यह जातियों का तानाबाना टूटता नजर आ रहा है। ड्रीम गर्ल के सियासी जादू ने अन्य दलों के प्रत्याशियों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। वैसे भी मथुरा में धार्मिक आयोजनों से हेमा मालिनी का नाता पहले से जुड़ा रहा है। उनका दावा है कि इस बार वह ब्रज भूमि की सेवा के लिए सियासत के मैदान में है। हालांकि मथुरा-वृंदावन, मांट, छाता, गोवर्धन व बलदेव विधानसभाओं को मिलाकर बनी मथुरा लोकसभा सीट पर प्रमुख जंग भाजपा की हेमा मालिनी और रालोद के जयंत चौधरी के बीच ही होनी है। लेकिन बसपा के योगेश द्विवेदी, सपा के चंदन सिंह जातिगत समीकरण के भरोसे पर अपनी जीत के समीकरण फिट करने में जुटे हैं।
वोटरों का चक्रव्यूह
16 लाख 25 हजार मतदाताओं के चक्रव्यूह से घिरी इस लोकसभा सीट पर सवा सात लाख महिला वोटरों की अच्छी खासी धमक हैं। जातिगत समीकरण की दृष्टि से देखा जाए तो सर्वाधिक करीब 3.50 लाख जाट, तीन लाख ब्राह्मण, 2.75 लाख राजपूत, 2.50 लाख ओबीसी, 1.75 लाख वैश्य और करीब सवा-सवा लाख से कुछ ज्यादा मुस्लिम व दलित मतदाता इस सीट की इबारत लिखते आए हैं। रालोद प्रत्याशी जयंत चौधरी जाट बाहुल इलाके को अपना गढ़ बनाना चाहते हैं, लेकिन जिस तरह से हेमा मालिनी के चुनाव प्रचार में फिल्म कलाकार धर्मेन्द और सनी व बॉबी दओल को बुलाने की मांग चौतरफा उठ रही है तो जातीय समीकरण का भ्रम तो टूटना ही है। भाजपा प्रत्रूाशी हेमा मालिनी के चुनाव प्रचार में धर्मेन्द का शामिल होना तय है। इस सीट पर 24 अप्रैल को चुनाव होना है।
यमुना की सबसे बड़ी पीड़ा
मथुरा से भाजपा प्रत्याशी घोषित होने के बाद जैसे ही हेमा मालिनी ने मथुरा की धरती पर कदम रखा तो इस इलाके के लोगों की यमुना की पीड़ा उनके सामने फूटकर सामने आई। तो उन्होंने यमुना प्रदूषण मुद्दे पर ब्रज की प्राचीन धरोहर, कुंड, सरोवर एवं वनों का सौंदर्यकरण व संरक्षण को तरजीह देने का संकल्प किया। इसके लिए उन्होंने राज्यसभा सांसद निधि से जूहू बीच को प्रदूषण मुक्त कराने का उदाहरण भी दिया। दरअसल उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीट मथुरा से कान्हा का जो रिश्ता है, उसी तरह का रिश्ता यमुना से भी रहा है जो इस लोकसभा सीट के चार विधानसभा क्षेत्रों बलदेव, मथुरा, छाता और मांट से सटकर बहती है, केवल गोवर्धन ही यमुना नदी से अलग है। यमुना का मुद्दा चुनाव में इसलिए उभरा है कि आध्यात्म के इतिहास में कान्हा ने तो कालिया नाग को नाथ कर यमुना को जहरीला होने से बचा लिया, लेकिन सियासत की जंग जीत चुके रहनुमाओं ने यमुना के प्रदूषण की समस्या का छुआ तक नहीं है।
ब्रज के मुख्य मुद्दे
लोकसभा चुनाव में ब्रजभूमि मथुरा के लोगों की सबसे बड़ी पीड़ा यमुना प्रदूषण की है, जिसके कारण 80 प्रतिशत इलाके में शुद्धपेय जल की समस्या बनी हुई है। बुनियादी सुविधाओं के अलावा सड़कों का निर्माण जैसे विकास के मुद्दे भी शामिल है। भाजपा की प्रत्याशी हेमामालिनी ने इन मुद्दों को जहन में रखते हुए चुनाव प्रचार को हवा दे दी है और वहीं उन्होंने लोगों को भरोसा दिलाया है कि भाजपा के सत्ता में आने पर मथुरा को राष्टÑीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में शामिल कराया जाएगा।
मुकाम तक नहीं पहुंच पाए जयंत
यमुना नदी के प्रदूषण की पीड़ा झेल रहे मथुरा के आम लोगों की ओर से यमुना को 1983 से ही जीवन देने की लड़ाई लड़ रहे बृज लाइफ लाइन वेलफेयर के महेन्द्र नाथ चतुवेर्दी की माने तो यूपी, दिल्ली और हरियाणा राज्य में यमुना के किनारे वाले क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसदों और उनकी पार्टी केअध्यक्षों समेत अब तक कुल 242 लोगों को 30 से 35 पृष्ठों वाले प्रार्थना पत्र देकर उसमें नदी की दुर्दशा का ब्योरा दिया जाता रहा है, लेकिन किसी ने जवाब देने तक की जहमत नहीं उठाई। हालांकि यमुना के मुद्दे पर रालोद सांसद जयंत चौधरी ने लोकसभा में एक निजी बिल जरूर पेश किया, लेकिन केंद्र की यूपीए सरकार ने इस निजी बिल को रद्दी की टोकरी ही दिखाई जिसके कारण जयंत भी इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाए।
31March-2014

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