मंगलवार, 11 मार्च 2014

अमर के सहारे कई सियासी निशाने साधेंगे अजित!

जाट आरक्षण के बाद ठाकुर वोट बैंक पर नजर
मिशन-2017 पर भी लगी हैं रालोद की निगाहें
ओ.पी.पाल

सपा से निष्कासित अमर सिंह व जयप्रदा को रालोद में शामिल करके चौधरी अजित सिंह की नजरें जहां लोकसभा चुनाव में जाटों के अलावा ठाकुर वोट बैंक पर भी टिक गई हैं, वहीं रालोद के निशाने पर 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव भी हैं जिसमें अमर के सहारे पूर्वी उत्तर प्रदेश तक अपनी सियासी जमीन तय करने की तैयारी हो सके। हालांकि इससे पहले सपा की रणनीतियों और दंगों के कारण खिसकती सियासी जमीन को वापस हासिल करने में लोकसभा चुनाव से पहले रालोद को जाट आरक्षण के रूप में एक तिनके का सहारा मिल चुका है।
जाट आरक्षण लागू कराने का सेहरा अपने सिर बांध चुके रालोद प्रमुख अजित सिंह खासकर अपने सियासी गढ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में बिखरे जाट वोट बैंक को संवारने में कुछ हद तक कामयाब बताए जा रहे हैं, लेकिन सत्तारूढ़ सपा की रणनीतियों और मुजफ्फरनगर व आसपास के दंगों के कारण जाट-मुस्लिम गढ़जोड़ के टूटे समीकरण को संजोना अभी दूर के ढ़ोल सुहावने वाली कहावत के समान है। ऐसे में मुस्लिम वोट बैंक की भरपाई के लिए ठाकुर वोट बैंक पर निशाना साधने के लिए अमर सिंह को अपने साथ लाने के लिए रालोद का सियासी दावं माना जा रहा है। वहीं पूर्वी यूपी से ताल्लुक रखने वाले अमर सिंह के बहाने रालोद की नजरें 2017 के विधानसभा चुनाव में सत्ता हासिल करने पर भी हैं, जिसके लिए रालोद की सभी रैलियों  में लोकसभा चुनाव पर कम, बल्कि 2017 मिशन पर ज्यादा हवा देने का काम किया जा रहा है। 2017 मिशन के लिए रालोद को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बजाए समूचे सूबे में राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिए अमर सिंह की तरह केई ठोर-ठिकाने तलाशने होंगे। जहां तक अमर सिंह के पूर्वी यूपी में राजनीतिक प्रभाव का सवाल है उसके लिए सपा से निष्कासित होने के बाद अपनी अलग पार्टी लोकमंच बनाकर उन्होंने जयाप्रदा के साथ एक हजार किमी की पद यात्रा की भी रालोद पर छाप छोड़ने का प्रयास किया है। अजित के साथ अमर सिंह ने सुर में सुर मिलाते हुए हरित प्रदेश के साथ पूर्वांचल एवं बुंदेलखंड जैसे राज्यों के गठन की वकालत तक की है।
ग्लैमर चैंजर बने अमर
राजनीति में सक्रिय फिल्मी अभिनेत्री जयाप्रदा पहले सपा का सियासी ग्लैमर रही हैं तो स्वयं की पार्टी लोकमंच में अमर सिंह के लिए ग्लैमर ज्यादा रास नहीं आया और लोकमंच के बैनर तले कई दर्जन प्रत्याशियों को चुनावों में मुहं की खानी पड़ी, तो बस अमर-जयाप्रदा ही अकेले नजर आने लगे तो ऐसे में अमर सिंह के लिए ग्लैमर चेंज करना भी जरूरी था। कांग्रेस को यह ग्लैमर रास आता नहीं दिखा तो रालोद में ही सही। इस बार चैंजिंग के बाद यह ग्लैमर रालोद की सियासत का हिस्सा बन गया है, जिसका सियासी लाभ भी रालोद को पूरी तरह से मिलने की उम्मीद है। सब कुछ ठीकठाक रहा तो रालोद के मिशन-2017 में इस सियासी ग्लैमर का दायरा भी बढ़ सकता है, जिसमें अमर सिंह पहले से माहिर माने जाते रहे हैं। रालोद ने इस ग्लैंमर चैंज में इस बात की भी परवाह नहीं की है कि यूपीए का नेतृत्व कर रही कांग्रेस ने उसके लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ लोकसभा सीटें छोड़ी हैं, जिनमें से एक-एक सीट अमर सिंह व जयाप्रदा को देने के बाद छह सीटों पर रालोद चुनाव लड़ेगा। रालोद के एक नेता का तो यहां तक कहना था कि रालोद में भी तो कुछ ग्लैमर दिखाई देना चाहिए। इसलिए रालोद ने अपने सियासी लाभ के लिए अमर सिंह के विवादित रहे पिछले राजनीतिक इतिहास की परवाह तक नहीं की।
ऐसे सुर्खियों में रहे अमर
अमर सिंह फिल्मी उद्योग में अपनी गहरी पैठ रखते हैं और अमिताभ बच्चन से उनकी पुरानी मित्रता था, जिन्होंने बच्चन की कंपनी एबीसीएल के फेल होने पर उनकी आर्थिक मदद भी की तो दोनों के बीच इतनी नजदीकियां बढ़ी की, अमिताभ बच्चन भी अमर सिंह की पार्टी यानि समाजवादी पार्टी को सहयोग देने में कसर नहीं छोड़ी। यहां तक कि जया बच्चन को सपा में शामिल कराकर उन्हें संसद भिजवाने का श्रेय भी अमर सिंह को ही है। लेकिन अमर सिंह की गतिविधियों के कारण बच्चन परिवार ने उनसे कन्नी काटना शुरू कर दिया, जिनके कारण अमिताभ को कानूनी पचड़े तक में पड़ना पड़ा और जया बच्चन को भी सदस्यता तक गंवानी पड़ी। परमाणु करार पर लोकसभा में नोट के बदले वोट में भी अमर सिंह की भूमिका कम नहीं रही, हालांकि वह इस मामले में अन्य सांसदों की तरह बरी हो गये हैं। इस मामले में उन्हें तिहाड़ की भी हवा खानी पड़ी। यही नहीं बटला हाउस कांड, बसपा सांसदों के अपहरण और फोन टेपिंग जैसे कई मामलों एवं जुबानी जंग में अमर सिंह सुर्खियों में रहे हैं।
11March-2014

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