भारतीय
चुनावी इतिहास में लोकतंत्र के महासंग्राम में हिस्सेदारी करने वाले
राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों की संख्या भले ही निरंतर बढ़ रही हो, लेकिन
इस चुनावी दौर में नतीजों के बाद सरकारी खजाने में इजाफा होने का सिलसिला
जारी है। मसलन लोकसभा की निर्धारित सीटों के लिए प्रत्याशियों की संख्या
जैसे-जैसे बढ़ती है तो जमानत जब्त कराने वाले प्रत्याशियों की संख्या में
बढ़ोतरी होना स्वाभाविक है। ग्यारहवीं लोकसभा में जमानत जब्त कराने वाले
सर्वाधिक प्रत्याशियों का अभी तक रिकार्ड कायम है।
लोकसभा चुनावों की बात करें तो पिछले 15 चुनावी समर में ग्यारहवीं लोकसभा के नतीजे आने के बाद जो रिकार्ड सामने आया था उसमें 12688 प्रत्याशियों यानि 91 प्रतिशत लोगों को अपनी जमानत राशि जब्त कराने के लिए मजबूर होना पड़ा था। जबकि इस लोकसभा चुनाव में सियासी जंग लड़ने वाले प्रत्याशियों की संख्या 13952 अभी तक चुनावी रिकार्ड में दर्ज है। जमानत जब्त कराने वालों में 1817 में 897 प्रत्याशी तो राष्ट्रीय दलों के ही शामिल हैं, जबकि क्षेत्रीय एवं गैर पंजीकृत दलों के जमानत जब्त कराने वाले प्रत्याशियों की संख्या 11791 रहे। आजाद भारत के चुनावी इतिहास में यह ऐसा पहला चुनाव था, जिसमें चुनावी महासंग्राम में हिस्सा लेने वालों की संख्या दस हजार पार पहुंची थी और प्रत्येक सीट पर प्रत्याशियों की औसतन संख्या भी 25.69 के रिकार्ड आंकड़े को छू गई थी। इसके अलावा इससे पहले 1991-92 के चुनाव में भी जमानत जब्त कराने वाले प्रत्याशियों का प्रतिशत तो 86प्रतिशत ही था, लेकिन चुनाव लड़ने वाले केवल 8749 प्रत्याशी ही मैदान में थे। चुनाव नतीजों के बाद 7539 प्रत्याशियों ने अपनी जमानत राशि जब्त कराई थी। जमानत जब्त कराने वाले इन प्रत्याशियों में 840 राष्ट्रीय दलों के उम्मीदवार भी शामिल थे। भारत के निर्वाचन आयोग के नियमों के अनुसार यदि कोई प्रत्याशी मतदान के कुल वैध मतों के कम से कम छठे भाग के बराबर मत प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाता तो उसकी जमानत राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है। ऐसे में सरकारी खजाने में भी इजाफा होता रहा है।
जमानत बचाने की चाह
लोकसभा चुनाव में एक सीट से एक ही प्रत्याशी का निर्वाचन होना है। चुनाव में कौन जीतता है और कौन दूसरे या तीसरे नंबर पर रहता है के अलावा नजरें इसी पर रहती हैं कि किस-किस उम्मीदवार की जमानत बची है। चुनाव हारने वाले प्रत्याशी भी यही दुआएं मनाते हैं कि नहीं जीते तो कम से कम किसी तरह उसकी जमानत बच जाए, यही उनके लिए गर्व की बात होगी। जमानत राशि जब्त होने पर कोई भी प्रत्याशी जनता के बीच जाने से कतराने लगता है और वैसे भी ऐसी स्थिति को अपमानजनक समझा जाता है।
कब कितने प्रत्याशियों ने गंवाई जमानत
वर्ष 1952- 40 प्रतिशत
वर्ष 1957- 33 प्रतिशत
वर्ष 1962- 43 प्रतिशत
वर्ष 1967- 51 प्रतिशत
वर्ष 1971- 61 प्रतिशत
वर्ष 1977- 56 प्रतिशत
वर्ष 1980- 74 प्रतिशत
वर्ष 1984- 80 प्रतिशत
वर्ष 1989- 81 प्रतिशत
वर्ष 1991- 86 प्रतिशत
वर्ष 1996- 91 प्रतिशत
वर्ष 1998- 73 प्रतिशत
वर्ष 1999- 73 प्रतिशत
वर्ष 2004- 78 प्रतिशत
वर्ष 2009- 85 प्रतिशत
लोकसभा चुनावों की बात करें तो पिछले 15 चुनावी समर में ग्यारहवीं लोकसभा के नतीजे आने के बाद जो रिकार्ड सामने आया था उसमें 12688 प्रत्याशियों यानि 91 प्रतिशत लोगों को अपनी जमानत राशि जब्त कराने के लिए मजबूर होना पड़ा था। जबकि इस लोकसभा चुनाव में सियासी जंग लड़ने वाले प्रत्याशियों की संख्या 13952 अभी तक चुनावी रिकार्ड में दर्ज है। जमानत जब्त कराने वालों में 1817 में 897 प्रत्याशी तो राष्ट्रीय दलों के ही शामिल हैं, जबकि क्षेत्रीय एवं गैर पंजीकृत दलों के जमानत जब्त कराने वाले प्रत्याशियों की संख्या 11791 रहे। आजाद भारत के चुनावी इतिहास में यह ऐसा पहला चुनाव था, जिसमें चुनावी महासंग्राम में हिस्सा लेने वालों की संख्या दस हजार पार पहुंची थी और प्रत्येक सीट पर प्रत्याशियों की औसतन संख्या भी 25.69 के रिकार्ड आंकड़े को छू गई थी। इसके अलावा इससे पहले 1991-92 के चुनाव में भी जमानत जब्त कराने वाले प्रत्याशियों का प्रतिशत तो 86प्रतिशत ही था, लेकिन चुनाव लड़ने वाले केवल 8749 प्रत्याशी ही मैदान में थे। चुनाव नतीजों के बाद 7539 प्रत्याशियों ने अपनी जमानत राशि जब्त कराई थी। जमानत जब्त कराने वाले इन प्रत्याशियों में 840 राष्ट्रीय दलों के उम्मीदवार भी शामिल थे। भारत के निर्वाचन आयोग के नियमों के अनुसार यदि कोई प्रत्याशी मतदान के कुल वैध मतों के कम से कम छठे भाग के बराबर मत प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाता तो उसकी जमानत राशि सरकारी खजाने में जमा हो जाती है। ऐसे में सरकारी खजाने में भी इजाफा होता रहा है।
जमानत बचाने की चाह
लोकसभा चुनाव में एक सीट से एक ही प्रत्याशी का निर्वाचन होना है। चुनाव में कौन जीतता है और कौन दूसरे या तीसरे नंबर पर रहता है के अलावा नजरें इसी पर रहती हैं कि किस-किस उम्मीदवार की जमानत बची है। चुनाव हारने वाले प्रत्याशी भी यही दुआएं मनाते हैं कि नहीं जीते तो कम से कम किसी तरह उसकी जमानत बच जाए, यही उनके लिए गर्व की बात होगी। जमानत राशि जब्त होने पर कोई भी प्रत्याशी जनता के बीच जाने से कतराने लगता है और वैसे भी ऐसी स्थिति को अपमानजनक समझा जाता है।
कब कितने प्रत्याशियों ने गंवाई जमानत
वर्ष 1952- 40 प्रतिशत
वर्ष 1957- 33 प्रतिशत
वर्ष 1962- 43 प्रतिशत
वर्ष 1967- 51 प्रतिशत
वर्ष 1971- 61 प्रतिशत
वर्ष 1977- 56 प्रतिशत
वर्ष 1980- 74 प्रतिशत
वर्ष 1984- 80 प्रतिशत
वर्ष 1989- 81 प्रतिशत
वर्ष 1991- 86 प्रतिशत
वर्ष 1996- 91 प्रतिशत
वर्ष 1998- 73 प्रतिशत
वर्ष 1999- 73 प्रतिशत
वर्ष 2004- 78 प्रतिशत
वर्ष 2009- 85 प्रतिशत
पिछले
15 आम चुनावों के
कुल प्रत्याशियों
और जमानत जब्ती
के प्रत्याशियों
का ब्योरा
_____________________________________________________________________________________________
वर्ष
|
प्रत्याशी
|
जमानत
जब्त
|
प्रतिशत
|
राष्ट्रीय
दल
|
प्रतिशत
|
अन्य
|
प्रतिशत
|
||
प्रत्याशी
|
जमानत
जब्त
|
प्रत्याशी
|
जमानत
जब्त
|
||||||
1952
|
1874
|
745
|
40
|
1217
|
344
|
28
|
657
|
401
|
61
|
1957
|
1519
|
494
|
33
|
919
|
130
|
14
|
600
|
364
|
61
|
1962
|
1985
|
856
|
43
|
1269
|
362
|
29
|
716
|
494
|
69
|
1967
|
2369
|
1203
|
51
|
1342
|
390
|
29
|
1027
|
813
|
79
|
1971
|
2784
|
1707
|
61
|
1223
|
359
|
29
|
1561
|
1348
|
86
|
1977
|
2439
|
1356
|
56
|
1060
|
100
|
9
|
1379
|
1256
|
91
|
1980
|
4629
|
3417
|
74
|
1541
|
444
|
29
|
3088
|
2973
|
96
|
1984-85
|
5492
|
4382
|
80
|
1307
|
387
|
30
|
4185
|
3995
|
95
|
1989
|
6160
|
5003
|
81
|
1378
|
421
|
31
|
4782
|
4582
|
96
|
1991-92
|
8749
|
7539
|
86
|
1855
|
840
|
45
|
6894
|
6699
|
97
|
1996
|
13952
|
12688
|
91
|
1817
|
897
|
49
|
12135
|
11791
|
97
|
1998
|
4750
|
3486
|
73
|
1493
|
637
|
43
|
3257
|
2849
|
87
|
1999
|
4648
|
3400
|
73
|
1299
|
437
|
34
|
3349
|
2963
|
88
|
2004
|
5435
|
4218
|
78
|
1351
|
541
|
40
|
4084
|
3677
|
90
|
2009
|
8070
|
6829
|
85
|
1623
|
779
|
48
|
6447
|
6050
|
94
|
15March-2014
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