सोमवार, 3 मार्च 2014

संसदीय लोकतंत्र के हवन में ‘स्वाहा’ हुए अरबों !

15वीं लोकसभा में स्वाह हुई 55 अरब की रकम!
पांच साल में हंगामे की भेंट चढ़ी 900 घंटों की कार्यवाही
ओ.पी.पाल

भारतीय संसद के इतिहास में 15वीं लोकसभा का कार्यकाल को अप्रिय घटनाओं के रूप में याद रखा जाएगा, जिसमें काम कम और हंगामा ज्यादा हुआ है। आम जनता की अपेक्षाओं से दूर रही 15वीं लोकसभा की 357 दिनों की बैठकों में 900 घंटे का समय तो हंगामा ही बरपता रहा और इन पांच सालों में संसद सत्रों के दौरान देश की करीब पचपन अरब से भी ज्यादा रकम को स्वाह कर दिया गया।
भारतीय लोकतंत्र की सर्वोच्च पंचायत कही जाने वाली भारतीय संसद की गरिमा पिछले पांच साल के दौरान जितनी तार-तार हुई है ऐसा इससे पहले कभी संसद में देखने को नहीं मिला। 15वीं लोकसभा के कार्यकाल के विश्लेषण से यह तथ्य सामने आए हैं कि आम जनता में यही संदेश गया है कि जनप्रतिनिधि उनकी अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे और राजनीतिक फायदे के लिए हंगामे में ज्यादा व्यस्त रहे हैं। 15वीं लोकसभा के दौरान 15 सत्र बुलाए गये, जिसमें 357 बैठकों का आयोजन किया गया, सबसे ज्यादा 35 बैठकें दसवें सत्र के दौरान तय की गई, लेकिन 187.36 घंटे ही कार्यवाही चली और 48.42 घंटे हंगामे और शोरशराबे की ही भेंट चढ़ गये। दुर्भाग्यपूर्ण तो इस लोकसभा का छठा सत्र यानि वर्ष 2010 का शीतकालीन सत्र में 2जी स्पेक्ट्रम पर जेपीसी की मांग पर लगभग 23 दिनों की बैठकें हंगामे की ही भेंट चढ़ गई यानि केवल 7.35 घंटे ही बामुश्किल हंगामें के बीच ही काम हो पाया और भारतीय संसद के इतिहास में 124.40 घंटे की बर्बादी हुई। पन्द्रहवीं लोकसभा के सभी सत्रों में हंगामे और शोरशराबे के कारण बर्बाद समय की बात करें तो 889.56 घंटे कामकाज ही नहीं हो सका, जो आजाद भारत में संसदीय इतिहास की सबसे बड़ी समय की बर्बादी मानी जा रही है। संसदीय सूत्रों के अनुसार संसद सत्र की एक दिन की बैठक में एक सदन में करीब 7.68 करोड़ रुपये का खर्च आता है, यानि दोनों सदनों में 15 करोड़ से भी ज्यादा का खर्च बैठता है। इस हिसाब से मूल्यांकन किया जाए तो 357 दिन की बैठकों पर लोकसभा में 2741.76 करोड़ रुपये का खर्चा हुआ और इतना ही खर्चा राज्यसभा की बैठकों पर होने का अनुमान है। इस तरह पिछले पांच साल के दौरान संसद सत्रो के आयोजन पर 54.84 अरब रुपये का खर्चा होने का अनुमान लगाया गया है।
आठवीं लोकसभा से लें सबकभारतीय संसद के पिछले 25 साल की बात करें तो आठवीं लोकसभा ने निर्धारित 2910 घंटे की बजाय 3223 घंटे काम किया और उसका कार्य निष्पादन का 111 प्रतिशत रहा, जो आते आते पन्द्रहवीं लोकसभा में 1316.22 घंटे रह गया, जिसके अलावा इस दौरान 889.56 घंटे का सयम हंगामे की भेंट चढ़ गया। यानि कार्य निष्पादन रहा। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि 15वीं लोकसभा में कार्य निष्पादन की क्षमता में कितनी तेजी से गिरावट आई है, यानि यह प्रतिशत 60 फिसदी से भी कम आंकी जा रही है। जबकि 13वीं और 14वीं लोकसभा का कार्य निष्पादन प्रतिशत क्रमश: 91 और 87 फीसदी रहा है।
बट्टे खाते में करोड़ो की रकम
संसद के सूत्रों के अनुसार एक अनुमान के अनुसार संसद सत्र के दौरान 2.50 लाख रुपये खर्च होता है। इस अनुमान के अनुसार विश्लेषण करने से पता चलता है कि 15वीं लोकसभा में हंगामे के कारण बर्बाद हुए 900 घंटे के समय के कारण 22.50 करोड़ रुपये तो बट्टे खाते में चले जाते हैं। राज्यसभा में लोकसभा की अपेक्षा कम समय की बर्बादी हुई, लेकिन ज्यादा अंतर नहीं है इसलिए इस रकम को दो गुना कर लिया जाए तो 40 करोड़ रुपये की रकम बट्टे खाते की भेंट मानी जानी चाहिए।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
1-पन्द्रहवीं लोकसभा के कार्यकाल ने जिस तरह से संसदीय गरिमा को तार-तार किया है उससे भारतीय संविधान की प्रस्तावना आहात होती है, जिसमें भारत के संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र होने की बात कही गयी है। संसद एक राजनीतिक संस्था है और राजनीतिक विमर्श के लिए राजनीतिक हितों की विभिन्नताओं को समझना बहुत जरूरी है। ऐसे समय में जब राष्ट्रीय दलों का फरमान ऊपर से नीचे तक नहीं चल सकता, वहां विविधता को समझने से ही कठिन राजनीतिक हालात के उत्तर मिल पायेंगे।
-सुभाष कश्यप (लोकसभा के पूर्व महासचिव)
2-हमारे संसदीय इतिहास में पन्द्रहवीं लोक सभा की कार्यवाही के दौरान मिर्च स्प्रे तथा अन्य कई अशोभनीय घटनाएं घटीं, जिसके कारण संसदीय कार्यवाहियों में व्यवधानों तथा स्थगनों के कारण सदन के बहुमूल्य समय की हानि हुई। यह हमारा दायित्व था सदन का कामकाज शत-प्रतिशत हो, इसकी विश्वसनीयता में गिरावट नहीं आये, लेकिन कई अप्रत्याशित और अवांछित घटनाओं ने सदन के निर्बाध संचालन और कामकाज को पंगु करके रख दिया जो संसदीय लोकतंत्रीय प्रणाली के हितैषियों के लिए भी पीड़ा दायक है। -श्रीमती मीरा कुमार (लोकसभा अध्यक्ष)
03March-2014

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