मंगलवार, 25 मार्च 2014

चौबीस साल से 10 निर्दलीय भी नहीं पहुंच पाए लोकसभा !

 फ्लैशबैक:आठवीं लोकसभा में सर्वाधिक 71 प्रतिशत आजाद उम्मीदवारों ने लड़ी सियासी जंग
ओ.पी. पाल

लोकसभा में बिना किसी राजनीतिक दल के सहारे आजाद उम्मीदवार के रूप में लोकसभा में पहुंचने वाले सांसदों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है।पिछले छह लोकसभा यानि चौबीस साल से लोकसभा में निर्दलीय सांसदों की संख्या एक भी बार दहाई का अंक पार नहीं कर सकी है। भाजपा छोड़कर निर्दलीय चुनावी समर में उतरने का फैसला करने वाले जसवंत सिंह और लालमुनि चौबे सहित अन्य नेताओं को ये खबर भले ही अच्छी न लगे, मगर सच्चाई यही है।
भारतीय लोकतंत्र के महासंग्राम में सियासत करने की कोई मनाही नहीं हैं, लेकिन बीते जमाने में जब राजनीतिक दल भी गिनती के थे तो निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाते थे ओर अपने रसूख और छवि के आधार पर जीतकर लोकसभा भी पहुंचते रहे हैं, लेकिन जैसे-जैसे राजनीतिक दलों के नाम फिल्मों के नामों की तरह बढ़ते गये ऐसे ही लोकसभा में निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या घटती गई। नौबत यहां तक पहुंची की पिछले 15वीं लोकसभा के चुनाव में महज सात सांसद ही निर्दलीय रूप से निर्वाचित होकर लोकसभा में पहुंचे। 15वीं लोकसभा में निर्वाचित सात निर्दलीय सांसदों की बात करें तो बिहार से बांका से श्रीमती पुतुल कुमारी व बांका से ओमप्रकाश यादव आजाद उम्मीदवार के रूप में जीतकर संसद के द्वार तक आए। झारखंड से सिंहभूमि सीट से मधुकोडा और चतरा से इन्दर सिंह नामधारी के अलावा जम्मू-कश्मीर के लद्दाख से हसन खान, पश्चिम बंगाल की जयनगर सीट से डा. तरूण मंडल और महाराष्ट्र  की कोल्हापुर सीट से सदाशिव मांडलिक निर्दलीय रूप से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि राजनीतिक दलों की संख्या बढ़ने के बाद निर्दलीय प्रत्याशियों में कमी आई है।
99 फीसदी निर्दलयों की जमानतजब्त
पन्द्रहवीं लोकसभा के लिए सियासी जंग में राजनीतिक दलों समेत कुल कुल 8070 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, जिनमें से 3831 यानि 47 प्रतिशत प्रत्याशियों ने निर्दलीय रूप से अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन सात प्रत्याशियों का भाग्य ही लोकसभा तक पहुंचने में साथ दे सका। इस चुनाव में ९९ प्रतिशत निर्दलीय प्रत्याशियों को अपनी जमानत राशि जब्त कराने के लिए मजबूर होना पड़ा। हालांकि इनके समेत कुल 6829 उम्म्ीदवार जमानत गंवाने वालो की फेहरिस्त में शामिल रहे। जमानत जब्त कराने वाले उम्मीदवारों की सर्वाधिक तादाद उत्तर प्रदेश से थी, जहां 80 सीटों के लिए चुनाव मैदान में आए 1368 में से 1155 उम्मीदवारों की जमानते जब्त हुई थी।
दूसरी लोकसभा में रहा बेहतर प्रदर्शन
देश के पहले लोकसभा के लिए वर्ष 1952 के चुनाव में 533 में से 37 निर्दलीय सांसद लोकसभा में थे, जिससे उत्साहित दूसरी लोकसभा के लिए वर्ष १९५७ के चुनाव में ज्यादा आजाद उम्मीदवारों ने अपनी किस्मत आजमाई और 42 निर्वाचित होकर लोकसभा में दाखिल हुए। हालांकि 1962 में हुए तीसरे लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों का प्रदर्शन फ्लाप रहा, जहां लोकसभा में इन सांसदों की संख्या आधे से भी कम 20 ही रह गई। जबकि चौथी लोकसभा में निर्दलीय सांसदों की संख्या ने एक बार फिर उभार लिया और 35 आजाद उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। यही कारण था कि वर्ष 1971 के 5वें लोकसभा चुनावों में और निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या तो बढ़ी, लेकिन लोकसभा में महज 14 ही सांसद पहुंचे और 94 प्रतिशत ने अपनी जमानत राशि तक गंवा दी। छठी लोकसभा का चुनाव में तो निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या राजनीतिक दलों से भी ज्यादा थी और सातवीं लोकसभा के वर्ष 1980 में तो 61 प्रतिशत प्रत्याशियों ने निर्दलीय रूप से ही चुनाव लड़ा। आठवीं लोकसभा के चुनाव में निर्दलीयों का चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का आंकड़ा 71 प्रतिशत तक जहां पहुंचा। लेकिन नौवीं लोकसभा में 12 निर्दलीय सांसद थे उसके बाद नौबत यहां तक पहुंची कि उसके बाद लगातार छह लोकसभा चुनाव में अभी तक निर्दलीय सांसदों की संख्या दहाई का अंक हासिल नहीं कर पाई है।
25March-2014

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