गुरुवार, 6 मार्च 2014

लोकसभा चुनाव: रेड कॉरीडोर में लोकतंत्र का रेड कारपेट !

कड़े सुरक्षा बंदोबस्त के साथ होगा मतदान
चुनावों के दौरान नक्सली हमले का अंदेशा
ओ.पी.पाल
लोकसभा चुनाव के ऐलान में चुनाव आयोग ने नौ चरणों में से पहले तीन चरणों में छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार के अलावा पूर्वोत्तर राज्यों की उन संसदीय सीटों के लिए चुनाव कराने का फैसला किया है, जो ज्यादा नक्सली हिंसा से प्रभावित रहे हैं। विशेषज्ञों की राय में चुनाव आयोग का यह फैसला नक्सली चुनौती से निपटने में बेहतर साबित हो सकता है, जिसमें सुरक्षा बलों की तैनाती भी आसान रहेगी।
केन्द्र ने बिहार, झारखंड और छत्तीसगढ राज्यों की सरकारों को सतर्क करते हुए अंदेशा जताया है कि लोकसभा चुनावों के दौरान नक्सलियों के हमले हो सकते हैं, इसलिए सुरक्षा चौकसी के साथ सतर्कता बरतना जरूरी है। खुफिया विभाग की नजरों में ऐसे राज्यों में 33 जिलों को अत्यधिक नक्सली हिंसा प्रभावित माना गया है, इनमें छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश व महाराष्ट के जिले भी शामिल हैं। नक्सली चुनौती से निपटने की रणनीति को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव कराने के लिए जारी कार्यक्रम में खासकर पहले तीन चरणों में नक्सल प्रभावित इलाकों में चुनाव कराने का ऐलान किया है। इससे पहले विधानसभा चुनाव में चुनाव आयोग का प्रायोगिक फैसला सफल रहा और छत्तीसगढ़ के बस्तर जैसे इलाके में
मतदाताओं ने जमकर अपने मताधिकार का प्रयोग किया। उसी प्रयोग के बूते पर लोकसभा चुनाव में भी आयोग ने इसी तरह का चुनावी कार्यक्रम बनाया है।
इसलिए रहेगी सतर्कता
गौरतलब है कि पिछले दो लोकसभा चुनाव 2004 और 2009 के अलावा 2008, 2009, 2010 और 2013 में इन राज्यों में अलग-अलग समय में हुए विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा जानें गई थीं। इसके अलावा झारखंड में सिर्फ 2013 में हिंसा की 383 घटनाएं हुईं, जिसमें 150 नागरिक और जवान मारे गए। छत्तीसगढ़ में 353 ऐसी घटनाओं में 110 लोगों ने जान गंवाई। इसी तरह बिहार में 69 लोगों ने 176 घटनाओं में जान गंवाई। पिछली घटनाओं को देखते ही गृहमंत्रालय को भी अलर्ट जारी करना पड़ा है। खुफिया तंत्र की सूचनाओं पर केंद्र सरकार ने झारखंड में माओवादी हिंसा से बुरी तरह प्रभावित 13 जिलों की पहचान की है। छत्तीसगढ में ऐसे अत्यंत संवेदनशील आठ जिले हैं जबकि बिहार में पांच नक्सलियों द्वारा हिंसा की अधिक घटनाओं को देखते हुए केंद्र सरकार पहले ही चुनाव आयोग से माओवादी हिंसा प्रभावित 26 जिलों और सात अन्य जिलों में पहले चरण के तहत ही मतदान कराने का अनुरोध कर चुकी थी, ताकि अधिक से अधिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सके।
चुनाव आयोग का बेहतर फैसला
सुरक्षा विशेषज्ञ प्रशांत दीक्षित का चुनाव आयोग के इस फैसले को राजनीतिक और आम वोटर की सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेहतर निर्णय करार दिया है। दीक्षित का मानना है कि चुनाव आयोग का नक्सली इलाकों में चुनाव कराने के पीछे यह भी सोच रही होगी कि हमारे सुरक्षाकर्मी ताजातरीन होंगे, जिन्हें पहली बार की तैनाती में अधिक सतर्कता बरतने में आसानी होगी। उन्होंने कहा कि बस्तर जैसे इलाके में चुनाव पूर्व की बड़ी नक्सली घटना के बावजूद शांतिपूर्ण चुनाव कराकर आयोग ने यह साबित किया था कि हर चुनौती से निपटने के लिए ठोस रणनीति की जरूरत है। उसी रणनीति के तहत लोकसभा चुनाव में ऐसे इलाकों को पहले लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अपनाने का फैसला बेहतर हो सकता है। राजनीतिक विशेषज्ञ आनंद प्रधान का कहना है कि हालांकि राजनीतिक माहौल ऐसा नहीं है जिसे नक्सलवाद की चुनौती हो, लेकिन चुनाव आयोग और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह राजनीतिक गतिविधियों और चुनाव प्रक्रिया में सुरक्षा के खतरे को आड़े न आने दिया जाए। चुनाव आयोग की सुरक्षित माहौल में चुनाव कराने की योजना में यह भी ध्यान देना जरूरी है कि अत्याधिक सुरक्षा में चुनाव के दौरान होने वाली राजनीतिक गतिविधियों प्रभावित न हों और मतदाताओं में भी इसका खौेफ न बनें। प्रधान मानते हैं कि चुनाव आयोग लगातार नक्सल प्रभावित इलाकों में जिस प्रकार सरकार और संबन्धित प्रशासनिक व सुरक्षा अधिकारियों के साथ विचार विमर्श करता रहा है, तो नक्सल प्रभावित इलाकों में पहले चुनाव कराना उसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
06March-2014

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