शुक्रवार, 28 मार्च 2014

पश्चिमी यूपी: गफलत में हैं सियासी जंग के योद्धा !

मतदाताओं से अभी नहीं हटी खामोशी की चादर
ग्लैमर के तड़के से भी बढ़ी पार्टियों की मुश्किलें
ओ.पी. पाल

लोकसभा चुनाव के महासंग्राम का बिगुल बजते ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की दस लोकसभा सीटों पर भाजपा, कांग्रेस-रालोद, सपा, बसपा के उम्मीदवारों की प्रतिष्ठा दांव पर है। दंगों के कारण बिगड़े सियासी समीकरणों को समेटने के मामले में शायद इन सीटों पर चुनावी जंग में उतरे सभी दलों के प्रत्याशी गफलत में हैं। इसी गफलत का कारण माना जा रहा है कि कांग्रेस-रालोद ने भाजपा के रथ को रोकने के लिए फिल्मी सितारों पर भी दावं खेला है, जिन्हें अपने दलों के नेताओं से भी दो-चार होना पड़ रहा है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को रालोद अपना राजनीति गढ़ मानता रहा है, लेकिन पिछले दिनों मुजफ्फरनगर व आसपास के दंगों ने उसके सियासी समीकरण को बिगाड़ दिया था, जिन्हें संभालने के लिए रालोद प्रमुख को यूपीए सरकार से जाट आरक्षण की मंजूरी दिलाने का सहारा लेना पड़ा, लेकिन रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह जाट आरक्षण के मोहरे से भी अभी तक जाट-मुस्लिम गठजोड़ को पुनर्जिवित नहीं कर पाए हैं। यही कारण है कि उन्हें स्वयं अपनी बागपत लोकसभा सीट पर अग्नि परीक्षा देना पड़ रहा है, जहां उनका मुकाबला भाजपा के सत्यपाल सिंह से होना है। जबकि अजित को बसपा ने प्रशांत चौधरी व सपा ने विधायक गुलाम मोहम्मद से भी दो-चार होना पड़ सकता है। जहां तक मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट का सवाल हैं, वहां भाजपा ने जाट प्रत्याशी के रूप में संजीव बालियान को उतारा है, जहां कांग्रेस को अपना प्रत्याशी बदलकर वैश्य समाज से ताल्लुक रखने वाले नगरपालिका चेयरमैन पंकज अग्रवाल को उम्मीदवार बनाना पड़ा है। जबकि बसपा ने मौजूदा सांसद कादिर राणा को मुस्लिम-दलित गठजोड़ के सहारे फिर मौका दिया है, जबकि सपा ने यूपी में पूर्व मंत्री रहे वीरेन्द्र सिंह गर्जुर पर दांव खेला है, लेकिन दंगों की आंच ठंडी न होने के कारण इस सीट का चुनाव निश्चित रूप से धु्रवीकरण पर होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। मेरठ में भाजपा ने अपने मौजूदा सांसद राजेन्द्र अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया है, जो कांग्रेस ने पैराशूट से फिल्मी अदाकारा नगमा को सियासी जंग में उतार दिया है, जिससे टिकट की लाइन में लगे अपनों से ही दो-चार होना पड़ रहा है। जबकि सपा प्रत्याशी शाहिद मंजूर व बसपा प्रत्याशी हाजी शाहिद अखलाक इस मुकाबले में आने की जुगत में है। गाजियाबाद में भाजपा के वीके सिंह को चुनौती देने क लिए कांग्रेस ने सांसद एवं फिल्म कलाकर रहे राज बब्बर को सियासी जंग में उतारा है, जहां बसपा के मुकुंद उपाध्याय और सपा के सूदन रावत से कहीं ज्यादा आम आदमी पार्टी की शाजिया इल्मी मुकाबले में बने रहने की जुगत में हैं। जबकि बिजनौर लोकसभा सीट पर रालोद ने रामपुर से सांसद रही जयाप्रदा को प्रत्याशी बनाकर ग्लैमर का तड़का लगाने का प्रयास किया है, लेकिन मौजूदा रालोद सांसद संजय सिंह चौहान का टिकट कटने से रालोद को उसके समर्थकों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जबकि भाजपा ने कमजोर माने गये राजेन्द्र सिंह के स्थान पर बिजनौर के विधायक और दंगों में चर्चित रहे भारतेंदु सिंह को प्रत्याशी बनाकर कांग्रेस-रालोद के लिए सिरदर्द पैदा कर दिया है। जबकि बसपा प्रत्याशी मलूक नागर भी मजबूती के साथ चुनाव लड़ रहे हैं तो सपा के टिकट पर शाहनवाज राणा सियासत की जंग में चुनावी गणित की कसौटी पर हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की हॉट सीटों में गिनी जाने वाली शामली जिले की कैराना लोकसभा सीट पर भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता और यूपी में मंत्री रह चुके बाबू हुकुम सिंह को चुनाव मैदान में उतारकर दंगों से बिगड़े समीकरण पर दांव खेला है। जहां भाजपा के मुकाबले में रालोद प्रत्याशी करतार सिंह भड़ाना गुर्जर जाति के वोटबैंक में सेंध लगाकर कांग्रेस गठजोड़ के साथ जीतने की फिराक में है। इनके अलावा दस अप्रैल को बुलंदशहर, गौतमबुद्धनगर, सहारनपुर व अलीगढ़ संसदीय सीटों पर चुनाव होना है, जहां सभी दल ताल ठोक रहे हैं। ऐसी स्थिति में वैसे तो सभी दल अपनी-अपनी जीत के दावे ठोकते हुए हर हथकंडे अपना रहे हैं, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अभी तस्वीर धुंधली ही है।
फिर हरे हुए दंगों के घाव
सुप्रीम कोर्ट के बुधवार को एक निर्णय में मुजफ्फनगर दंगों के लिए सपा की यूपी सरकार को जिम्मेदार बताया है। कोर्ट की इस टिप्पणी से लोकसभा के शुरू हुए महासंग्राम के बाद ठंडी होती जा रही आंच को फिर हवा मिली है और सपा के खिलाफ प्रमुख दल इसे चुनावों में जनता के बीच मुद्दा बनाने में कोई चूक नहीं करेंगे। इससे पहले दंगा पीड़ितों ने यहां तक ऐलान कर दिया है कि वे चुनाव का बहिष्कार करेंगे, लेकिन ज्यादातर दल उनकी मान-मन्नौवल में जुटे हुए हैं।
27March-2014

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