खाली गुजरात क्यों
लोकसभा चुनाव में लीक से हट कर स्थापित होती राजनीति का विकल्प देने का दम भरने वाले वहीं सारे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, इसमें चुनावी हवा के रूख को बदला न देख केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी ने तो देश की सुरक्षा को ही दांव पर लगाने में भी कोई परहेज नहीं किया। गुजरात के एक कांग्रेसी नेता ने गुजरात राज्य में मोदी की खामियों को तलाशा, जिसमें तटीय सुरक्षा का मामला उठाया, लेकिन जब नेताजी को बताया गया कि पाक सीमा से लगने वाले तटीय इलाके आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों से भी लगते हैं फिर गुजरात का ही मामला क्यों, तो नेताजी बगले झांकते नजर आए। इन नेताजी पर सवाल उठाए गये कि सुरक्षा के मुद्दों को उजागर करके क्या कांग्रेस दुश्मनों को बताना चाहती है कि हमारी तटीय सुरक्षा कमजोर है? नेताजी पर तंज भी कसा गया कि माना गुजरात में तटीय सुरक्षा के लिए राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाए, पर इसकी जिम्मेदारी तो ज्यादा केंद्र सरकार की ही बनती है। सवाल आया कि नेताजी इस बात की तो कम से कम गुजरात सरकार को दाद दे दिजिए कि माना तटीय सीमा पर सुरक्षा प्रबंध कमजोर है, लेकिन दुश्मन तो वहां तक गुजरात सरकार ने फटकने नहीं दिया।
लोकसभा चुनाव में लीक से हट कर स्थापित होती राजनीति का विकल्प देने का दम भरने वाले वहीं सारे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, इसमें चुनावी हवा के रूख को बदला न देख केंद्र की सत्तारूढ़ पार्टी ने तो देश की सुरक्षा को ही दांव पर लगाने में भी कोई परहेज नहीं किया। गुजरात के एक कांग्रेसी नेता ने गुजरात राज्य में मोदी की खामियों को तलाशा, जिसमें तटीय सुरक्षा का मामला उठाया, लेकिन जब नेताजी को बताया गया कि पाक सीमा से लगने वाले तटीय इलाके आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों से भी लगते हैं फिर गुजरात का ही मामला क्यों, तो नेताजी बगले झांकते नजर आए। इन नेताजी पर सवाल उठाए गये कि सुरक्षा के मुद्दों को उजागर करके क्या कांग्रेस दुश्मनों को बताना चाहती है कि हमारी तटीय सुरक्षा कमजोर है? नेताजी पर तंज भी कसा गया कि माना गुजरात में तटीय सुरक्षा के लिए राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाए, पर इसकी जिम्मेदारी तो ज्यादा केंद्र सरकार की ही बनती है। सवाल आया कि नेताजी इस बात की तो कम से कम गुजरात सरकार को दाद दे दिजिए कि माना तटीय सीमा पर सुरक्षा प्रबंध कमजोर है, लेकिन दुश्मन तो वहां तक गुजरात सरकार ने फटकने नहीं दिया।
टक्कर पे टक्कर
लोकसभा चुनाव में भाजपा व
कांग्रेस के विकल्प का दम भरने वाली आम आदमी पार्टी ही तो है जिसने अदानी
और अंबानी के विरोध में गले फाड़कर खुद को बहुत क्रांतिकारी समझा।
क्रांतिकारी ही नहीं दावा भी किया कि पहली बार कोई दल इन पूंजीपतियों से
टक्कर ले रहा है। हालांकि इन हथकंडों को जनता पहले से ही खारिज करती आ रही
है। इससे पहले की भी राजनीति जहन में आती है जब गुजरे जमाने में केंद्र से
लेकर राज्यों तक कांग्रेस की तूती बोलती थी, तब जनसंघी और सोशलिस्ट गले
फाड़ते थे कि टाटा-बिड़ला की सरकार, नहीं चलेगी-नहीं चलेगी। यह बात अलग कि
तब यह पता नहीं था कि टाटा-बिड़ला क्या बला हैं? अब राजनीति के कथित
नवक्रांतिकारी वही नारा लगा रहे हैं। टाटा-बिड़ला की जगह अदानी-अंबानी ने
ले ली है यानि राजनीति का विकल्प नई बोतल में पुरानी शराब की तरह ही है।
अदानी-अंबानी के विरोध के बाद ये क्रांतिकारी नेता लोकसभा चुनाव में यह भी
कहने से पीछे नहीं चूके कि इनसे चंदा लेने में भी उनसे कोई परहेज नहीं है
यानि इसीलिए विरोध के स्वर में क्रांति के सुर बाहर आए थे।
23March-2014
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