फ्लैशबैक: पिछले 15 आम चुनाव में कभी नहीं पड़ा 64 फिसदी से ज्यादा वोट
ओ.पी. पाल
ओ.पी. पाल
सोलहवीं लोकसभा के लिए जिस प्रकार से सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए राजनीतिक दलों पर शिकंजा कसता रहा है। वहीं चुनाव आयोग मतदाताओं को जागरूक करने के लिए लगतार अभियान चला रहा है, तो सियासत के इस महासंग्राम रूपी हवन कुंड में खासकर नए और युवा वोटर आहुति डालने में पीछे रहने वाला नहीं है। चुनाव आयोग के अभियान और इस बदलते राजनीतिक परिदृश्य के बीच ऐसी संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस बार वोटर पिछली पन्द्रह लोकसभा के चुनाव में हुए मतदान के सभी रिकार्ड ध्वस्त करेगा।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सियासी महासंग्राम में सोलहवीं लोकसभा के गठन के उत्सव जारी है और पिछले कुछ सालों में चुनावी प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण बदालव के साथ सुप्रीम कोर्ट का भी दखल सामने आया है। अभी तक के चुनावों में हमेशा सवाल उठते रहे हैं कि आखिर देश का अधिकांश हिस्सा अपने मूल अधिकार का इस्तेमाल करके लोकतंत्र के उत्सवों में हिस्सा क्यों नहीं लेता,जिसके कारण अभी तक एक भी बार आम चुनाव में वोट का प्रतिशत 64 प्रतिशत के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाया है। वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जिस प्रकार वोटरों ने जिस गुस्से का इजहार करके वोट करके मतदान प्रतिशत को 63.56 तक पहुंचाया था वह अभी तक रिकार्ड मतदान है। हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि देश में लोकसभा के गठन के बाद अभी तक बनती आई सरकारों को देश की 15 प्रतिशत से कुछ ज्यादा लोगों का ही समर्थन मिलता नजर आया है। चुनाव प्रक्रिया में आए बदलाव के तहत बैलट पेपरों के स्थान पर आई इलेक्ट्रॉनिक्स वोटिंग मशीनों ने मतदाताओं के रूझान में जान फूंकी है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पिछले साल ही इस वोटिंग मशीन में नोटा यानि कोई पसंद नहीं है का बटन भी विद्यमान हो गया है। ऐसे में नेताओं से मोहभंग रखने वाले मतदाता भी नोटा बटन का उपयोग करने के लिए मतदान केंद्रों पर जाने लगे हैं। ऐसे में संभावना बढ़ गई है कि इस बार लोकसभा चुनाव में मतदान करने वालों की तादाद बढ़कर सामने आएगी। वैसे भी 2.32 करोड़ से ज्यादा मतदाता इस बार पहली बार वोट की चोट करने के लिए सामने आ गया है।
आठवीं लोस में था सर्वाधिक मतदान
देश की आजादी के बाद अभी तक हुए 15 लोकसभा चुनाव के मतदान के रूझान पर नजर डालें तो वर्ष 1984-85 में आठवीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव के दौरान सर्वाधिक 63.56 प्रतिशत मतदान किया गया था, जिसमें में महिलाओं का मतदान प्रशत भी सर्वाधिक 58.60 रहा। इसके बाद वर्ष १९८९ में नौवीं लोकसभा की 529 सीटों के लिए हुए मतदान में 61.95 प्रतिशत और 1998 में 12वी लोकसभा के 61.97 प्रतिशत लोगों ने वोट डाला। जबकि इससे पहले वर्ष 1967 में चौथी लोकसभा की 520 सीटों के लिए हुए चुनाव में 61.33 फीसदी मत पड़े थे। वहीं आपातकाल के कारण 1977 के चुनाव में भी वोटरों ने ६० प्रतिशत से ज्यादा वोट करके सत्ता परिवर्तन किया था। इनके अलावा अन्य किसी भी आम चुनाव में वोटिंग 60 प्रतिशत के आंकड़े को नहीं छू पाई। प्रथम चुनाव के दौरान 1952 में 364 सीटों के लिए 44.84 प्रतिशत मतदान किया गया था, तो पिछले चुनाव में 15वीं लोकसभा के चुनाव में 58.73 प्रतिशत वोट डाले गये थे। देश की दूसरी लोकसभा के गठन के लिए 1957 में 490 सीटों के लिए चुनाव हुआ था। 1962 में 494 सीटों पर 55.42 प्रतिशत के अलावा 1971 में 55.29 प्रतिशत, 1980 में 56.92 प्रतिशत, 1991-92 में 56.93 प्रतिशत, 1996 में 57.94 और चौदवीं लोकसभा के लिए वर्ष 2004 में 57.65 प्रतिशत वोट ही डाले जा सके थे।
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सियासी महासंग्राम में सोलहवीं लोकसभा के गठन के उत्सव जारी है और पिछले कुछ सालों में चुनावी प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण बदालव के साथ सुप्रीम कोर्ट का भी दखल सामने आया है। अभी तक के चुनावों में हमेशा सवाल उठते रहे हैं कि आखिर देश का अधिकांश हिस्सा अपने मूल अधिकार का इस्तेमाल करके लोकतंत्र के उत्सवों में हिस्सा क्यों नहीं लेता,जिसके कारण अभी तक एक भी बार आम चुनाव में वोट का प्रतिशत 64 प्रतिशत के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाया है। वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जिस प्रकार वोटरों ने जिस गुस्से का इजहार करके वोट करके मतदान प्रतिशत को 63.56 तक पहुंचाया था वह अभी तक रिकार्ड मतदान है। हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि देश में लोकसभा के गठन के बाद अभी तक बनती आई सरकारों को देश की 15 प्रतिशत से कुछ ज्यादा लोगों का ही समर्थन मिलता नजर आया है। चुनाव प्रक्रिया में आए बदलाव के तहत बैलट पेपरों के स्थान पर आई इलेक्ट्रॉनिक्स वोटिंग मशीनों ने मतदाताओं के रूझान में जान फूंकी है और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद पिछले साल ही इस वोटिंग मशीन में नोटा यानि कोई पसंद नहीं है का बटन भी विद्यमान हो गया है। ऐसे में नेताओं से मोहभंग रखने वाले मतदाता भी नोटा बटन का उपयोग करने के लिए मतदान केंद्रों पर जाने लगे हैं। ऐसे में संभावना बढ़ गई है कि इस बार लोकसभा चुनाव में मतदान करने वालों की तादाद बढ़कर सामने आएगी। वैसे भी 2.32 करोड़ से ज्यादा मतदाता इस बार पहली बार वोट की चोट करने के लिए सामने आ गया है।
आठवीं लोस में था सर्वाधिक मतदान
देश की आजादी के बाद अभी तक हुए 15 लोकसभा चुनाव के मतदान के रूझान पर नजर डालें तो वर्ष 1984-85 में आठवीं लोकसभा के लिए हुए आम चुनाव के दौरान सर्वाधिक 63.56 प्रतिशत मतदान किया गया था, जिसमें में महिलाओं का मतदान प्रशत भी सर्वाधिक 58.60 रहा। इसके बाद वर्ष १९८९ में नौवीं लोकसभा की 529 सीटों के लिए हुए मतदान में 61.95 प्रतिशत और 1998 में 12वी लोकसभा के 61.97 प्रतिशत लोगों ने वोट डाला। जबकि इससे पहले वर्ष 1967 में चौथी लोकसभा की 520 सीटों के लिए हुए चुनाव में 61.33 फीसदी मत पड़े थे। वहीं आपातकाल के कारण 1977 के चुनाव में भी वोटरों ने ६० प्रतिशत से ज्यादा वोट करके सत्ता परिवर्तन किया था। इनके अलावा अन्य किसी भी आम चुनाव में वोटिंग 60 प्रतिशत के आंकड़े को नहीं छू पाई। प्रथम चुनाव के दौरान 1952 में 364 सीटों के लिए 44.84 प्रतिशत मतदान किया गया था, तो पिछले चुनाव में 15वीं लोकसभा के चुनाव में 58.73 प्रतिशत वोट डाले गये थे। देश की दूसरी लोकसभा के गठन के लिए 1957 में 490 सीटों के लिए चुनाव हुआ था। 1962 में 494 सीटों पर 55.42 प्रतिशत के अलावा 1971 में 55.29 प्रतिशत, 1980 में 56.92 प्रतिशत, 1991-92 में 56.93 प्रतिशत, 1996 में 57.94 और चौदवीं लोकसभा के लिए वर्ष 2004 में 57.65 प्रतिशत वोट ही डाले जा सके थे।
26March-2014
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