रविवार, 11 मई 2014

हॉट सीट: आजमगढ़- सियासी चक्रव्यूह में बुरे फंसे मुलायम !

विरोधियों की घेराबंदी से मुश्किल बनी सपा की राह
ओ.पी.पाल. आजमगढ़।

कुश्ती के अखाड़े से निकल सियासी दंगल में बड़े बड़े सूरमाओं को धूल चटा चुके सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव को इस बात का इल्म भी न रहा होगा कि आजमगढ़ के चुनावी दंगल में वह अपनी ही पेशबंदी में इस कदर घिर जाएंगे कि एक एक पल उन पर खासा भारी पड़ेगा। कुश्ती के अखाड़े में धोबिया पाट से बड़े बड़े पहलवानों को चित्त करने के साथ ही नेताजी ने राजनीति के दंगल में भी विरोधियों के हर दांव का तोड़ लेकर सूबे से लेकर दिल्ली तक की राजनीति में अपना अलग रसूख कायम किया। लेकिन अबकी बार नेताजी को अपने सियासी कद को बरकरार रखने के लिए न सिर्फ कड़ी मशक्कत करनी पड़ा रही है, बल्कि उनका पूरा कुनबा ही सैंफई से निकल आजमगढ़ की गलियों को नाप रहा है।
लोकसभा के चुनावी दंगल में भाजपा प्रत्याशी रमाकांत यादव को पटखनी देने के इरादे से उनके सियासी गुरू रहे सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने एम-वाई यानि मुस्लिम-यादव समीकरण के भरोसे पूर्वांचल की आजमगढ़ लोकसभा सीट पर भी दांव आजमाया है। इसी कारण उत्तर प्रदेश के पूर्वी आंचल की आजमगढ़ लोकसभा सीट हॉट सीट के रूप में देखी जा रही है। इसके बावजूद यहां मुलायम सिंह यादव के जिताऊ वाई-एम समीकरण कोर् ध्वस्त करने के लिये प्रतिद्वंद्वियों ने उनकी घेराबंदी करके मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। इनमें भाजपा प्रत्याशी रमाकांत यादव भी हैं जिन्हें मुलायम सिंह ने ही राजनीतिक के गुर सिखाकर संसद तक भेजा था, जो सपा छोड़कर बसपा के रास्ते भाजपा के कुनबे में आ गये और पिछला चुनाव भाजपा के टिकट पर ही जीता था। रमाकांत यादव व उनके भाई उमाकांत यादव की गिनती आजमगढ़ के दबंगों में शुमार है। इसलिए मुलायम के लिए यहां जीत की राह आसान नहीं लगती। राजनीतिक विशेषज्ञ मान रहे हैं कि आजमगढ़ में भाजपा व बसपा उम्मीदवारों और इन दलों की सियासी पकड़ भी मुलायम सिंह की पेरशानी का सबब बनी हुई है। इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी एवं मौजूदा सांसद रमाकांत यादव, बसपा के शाह आलम, आप के राजेश यादव के साथ मुलायम सिंह यादव की मुश्किलें सबसे ज्यादा मुस्लिम वोट बैंक पर डांका डालकर राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के अध्यक्ष मौलाना आमिद रशदी मदनी पैदा कर चुके हैं जो स्वयं सियासत की जंग में हैं।
सियासी मिजाज
उत्तर प्रदेश में बसपा और भाजपा के साथ त्रिकोणीय सियासी संघर्ष में सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की जीत और हार का फैसला तो अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन जातीय समीकरण, मुजफ्फरनगर दंगों के बाद मुसलमानों के बीच पैदा हुई अविश्वास की खाई, स्वजातीय यादव समाज में आजमगढ़ के मौजूदा सांसद और भाजपा प्रत्याशी रमाकांत यादव की गहरी सेंध के अलावा पूर्व विधायक सीपू हत्याकांड से क्षत्रिय समाज की नाराजगी ने भी मुलायम की मुश्किलों में इजाफा किया है। जहां तक इस सीट के मौजूदा सियासी मिजाज का सवाल है उसमें यहां धुवीकरण की रणनीति में भाजपा और बसपा बाजी मारते दिख रहे हैं। भाजपा नेता अमित शाह के विवादित भाषण ने भी धु्रवीकरण को हवा दी है, लेकिन मुस्लिम वोट बैंक में सपा से पहले ही बसपा प्रमुख मायावती ने दलितों के साथ मुस्लिम वोट बैंक को अपने पक्ष में प्रभावित किया है। राजनीतिक जानकार यह भी बताते हैं कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव का दो सीटों से चुनाव लड़ने का कारण अपने छोटे पुत्र प्रतीक यादव या भतीजे तेज प्रताप यादव उर्फ तेजू की आजमगढ़ में सियासी जमीन तैयार करना है। अंतिम चरण के इस चुनाव में सपा प्रमुख मुलायम सिंह का भाजपा के रमाकांत यादव व बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली से कड़ी चुनौती मिल रही है और इस त्रिकोणीय सियासी जंग में मुलायम सिंह की राह आसान नजर नहीं आती। आजमगढ़ को लेकर विवादित भाषणों का भी यहां की जनता गंभीरता से ले रही है, जहां की धरती से हाल ही में पांच आईएएस एवं 15 पीसीएस में चयनित हुए हुए युवाओं ने परचम लहराया है। ऐसे में आतंकवाद का मुद्दा उठाना किसी को गंवारा नहीं है। यही कारण माना जा रहा है कि इस बार यहां जाति-धर्म पर नहीं, बल्कि विकास को मुद्दे को ज्यादा बल दिया जा रहा है।
जातीय समीकरण
आजमगढ़ सीट पर चार लाख यादव के बाद करीब 1. 50 हजार मुस्लिम मतदाताओं का स्थान है। मुस्लिम-यादव को सपा का परम्परागत वोट माना जाता है, लेकिन पिछले तीन चुनावों के दौरान यह समीकरण ऐसा बिखरा कि कभी बसपा व कभी भाजपा ने झंडा लहराया। सवर्ण व वैश्यों को भाजपा का वोट आ रहा है। निर्णायक वोटर रहे यादव और मुस्लिमों में सेंधमारी के साथ उन्हें एकजुट करने के प्रयास भी जारी हैं। ऐसे में यहां मुसलमान वोट असमंजस की स्थिति में हैं, तो वहीं पिछड़ा वर्ग के पत्ते खुलने को तैयार नहीं हैं, जो ब्राह्मण वोट और अन्य हिंदू वोटर नरेन्द्र मोदी की हवा के रूख को भांपकर इस सीट पर निर्णायक साबित हो सकता है। जिले की गोपालपुर, सागरी, मुबारकपुर, आजमगढ़ व मेहनगर विधानसभाओं से मिलकर बनी आजमगढ़ लोकसभा सीट पर भाजपा, बसपा, सपा, आप, तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल जैसे 13 राजनीतिक दलों समेत कुल 18 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस सीट पर करीब 7.60 लाख महिलाओं समेत 17 लाख 118 मतदाताओं का जाल बना हुआ है। सबसे दिलचस्प बात है कि इस सीट में शामिल पांच विधानसभाओं में चार पर सपा और एक पर बसपा काबिज है।
कब कौन बना सांसद
आजमगढ़ लोकसभा सीट पर पिछले तीस साल से कांग्रेस जीत के लिए तरस रही है, जहां कांग्रेस के संतोष सिंह ने अंतिम बार 1984 में आखिरी बार जीत दर्ज की थी। 1989 में बसपा क रामकृष्ण, 1991 में जनतादल के चंद्रजीत ने जीत दर्ज की। यहां आपातकाल में भारतीय लोकदल के रामनरेश यादव द्वारा जीत हासिल करने के बाद जब सीट छोड़ी थी, तो 1978 के उपचुनाव में कांग्रेस की मोहसिना किदवई ने जीत दर्ज की थी। जहां तक मौजूदा सांसद रमाकांत का सवाल है उन्होंने अपने गुरू मुलायम सिंह के आशीर्वाद से 1996 में पहली जीत दर्ज कर लोकसभा का दरवाजा खटखटाया, लेकिन 1998 के चुनाव में वे बसपा के अकबर अली डंपी से परास्त हो गये थे। जबकि 1999 में उन्होंने फिर यहां सपा को जीत दिलाई, लेकिन सपा से नाराज होकर वे बसपा में चले गये और 2004 का चुनाव जीतकर बसपा का परचम लहराया। एक हत्याकांड के मामले में बसपा मुख्यमंत्री मायावती ने अपने ही सांसद को जेल भिजवाया और यहां 2008 में उपचुनाव कराकर अकबर अली डंपी को संसद में पहुंचाया। इस तरह रमाकांत यादव भाजपा का दामन थामकर पिछला चुनाव में अपनी ताकत दिखाई और लोकसभा में पहुंचे। इससे पहले 1971 तक के लोकसभा चुनाव में यहां कांग्रेस का ही परचम लहराता रहा है।
11May-2014

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