धुरंधरों के बीच भंवरजाल में फंसे नीरज शेखर
ओ.पी. पाल. बलिया।
पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की कर्मभूमि रही बलिया लोकसभा सीट पर आजादी से आज तक भाजपा अपना भगवा और बसपा अपना नीला झंडा नहीं लहरा पाई है। सोलहवीं लोकसभा के लिए मोदी मैजिक के सहारे भाजपा तथा दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़ की रणनीति के साथ बसपा पिता की विरासत संभाले सपा प्रत्याशी नीरज शेखर को कड़ी चुनौती देने के लिए सियासी जंग को दिलचस्प मोड़ देने में जुटी है। जबकि कांग्रेस अपनी तीस साल पुरानी सियासी जमीन तलाशने का प्रयास कर रही है।
उत्तर प्रदेश की बलिया लोकसभा क्षेत्र की देश की राजनीति में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चन्द्रशेखर की सियासत के रंग भरने वाली नीति के कारण एक अलग ही पहचान बनी हुई है। इस लोकसभा सीट की खासियतें गिनी जाएं तो उनमें 15 लोकसभा के लिए 16 बार चुनाव हुआ, लेकिन भजपा और बसपा यहां अपनी एक बार भी राजनीतिक बिसात तैयार नहीं कर पाई है। पिता के निधन के बाद उनकी परंपरागत सीट पदर सियासी विरासत संभालने वाले नीरज शेखर भले ही यहां से दो बार लोकसभा पहुंचे हों, लेकिन इस बार कांग्रेस विरोधी लहर और यूपी में सपा सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ बनते माहौल के बीच भाजपा, बसपा, कांग्रेस, कौमी एकता दल व आम आदमी पार्टी की सियासत के भंवरजाल में फंसते दिख रहे हैं। कारण साफ है इन सभी दलों ने यहां दमदार उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा प्रत्याशी एंव पूर्व मंत्री भरत सिंह, बसपा ने इंजीनियर वीरेन्द्र कुमार पाठक, कांग्रेस ने स्व. कल्पनाथ राय की पत्नी डा. सुधा राय, कौमी एकता दल ने गाजीपुर के पूर्व सांसद अफजाल अंसारी और आप ने सेवानिवृत सेना के अधिकारी कर्नल भरत सिंह को चुनाव मैदान में उतार कर सियासी रंग को सतरंगी कर दिया है। इस सीट के उम्मीदवारों के राजनीतिक जीवन पर नजर डालें तो भाजपा उम्मीदवार भरत सिंह बैरिया विधारनसभा सीट से तीन बार विधायक रहे और राज्य सरकार में मंत्री भी बने। बसपा उम्मीदवार वीरेन्द्र कुमार पाठक जिले के प्रभावशाली कांग्रेसी नेता और बच्चा पाठक के भतीजे हैं। जबकि कांग्रेस की डा. सुधा राय पूर्वांचल में विकास पुरुष के नाम से पहचाने गये कांग्रेसी दिग्गज स्व. कल्पनाथ राय की पत्नी हैं, जो कांग्रेस महिला शाखा की राष्ट्रीय अध्यक्ष के होने के घोसी लोकसभा सीट से भी चुनाव भी लड़ चुकी हैं। कौमी एकता दल के अफजाल अंसारी पूर्वांचल के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी के भाई और मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से पांच बार विधायक व गाजीपुर से एक बार सांसद रह चुके हैं। इसी प्रकार आप के उम्मीदवार कर्नल भरत सिंह सेना के सेवानिवृत अधिकारी हैं और इसी सीट से बसपा के टिकट से चुनाव भी लड़ चुके हैं।
विरासत बचाने की चुनौती
भाजपा प्रत्याशी भरत सिंह को मोदी मैजिक के सहारे यहां कमल खिलाने की उम्मीद है, तो बसपा को ब्राह्मण चेहरे के रूप में वीरेन्द्र सिंह पाठक को दलित-मुस्लिम गठजोड के साथ सियासी बिसात बिछाने का पूरा भरोसा है। चन्द्रशेखर की सियासी एवं कर्मभूमि पर पिछले तीस साल से जीत को तरस रही कांग्रेस ने भूमिहार चेहरे के रूप में डा. सुधा राय पर दांव खेला है। अपनी सियासी जमीन तलाशने के लिए कौमी एकता दल के टिकट पर बाहुबली मुख्तार अंसारी भी अपने भाई अफजाल अंसारी की बदौलत शेखर परिवार के तिलिस्म को तोड़ने की रणनीति है। ऐसे में पिता की विरासत को संभालने के साथ जीत की तिकड़ी लगाने के इरादे से सत्तारूढ़ सपा के टिकट पर सियासी जंग में हैँ, लेकिन इस बार उनकी राह में चौतरफा कांटे ही कांटे नजर आ रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो उसे चुनौती देने आए अन्य सभी दलों के प्रत्याशियों को राजनीति के धुरंधर कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। सोलहवीं लोकसभा की जंग में इस बार यहां 11 राजनीतिक दलों समेत 15 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमाने के लिए चुनाव मैदान में संघर्ष कर रहे हैं।
मतदाताआ का अधिकार
बलिया जिले की तीन बलिया नगर, बैरिया, फेफना और गाजीपुर जिले की दो मोहम्मदाबाद व जहूराबाद विधानसभाओं को जोड़कर बनाई गई बलिया लोकसभा सीट करीब 7.60 लाख महिलाओं समेत 16 लाख 92 हजार 179 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना है। सभी विधानसभा क्षेत्रों में तीन-तीन लाख से ज्यादा मतदाता अपने अधिकार का प्रयोग करेंगे। मतदाताओं के इस जाल को तोड़ने के लिए इस बार प्रमुख दलों समेत ज्यादातर प्रत्याशी संसदीय क्षेत्र के पिछडे विकास को मुद्दा बनाकर सपा प्रत्याशी व मौजूदा सांसद नीरज शेखर की घेराबंदी करने में जुटे हैं।
चन्द्रशेखर का रहा दबदबा
देश में पहले चुनाव में ज्यादातर लोकसभा सीटों पर कांग्रेस ने परचम लहराया था, लेकिन बलिया सीट ऐसी रही जिसने 1952 के पहले चुनाव में पं. मदन मोहन मालवीय के पुत्र गोविंद मालवीय को खारिज करके निर्दलीय मुरली मनोहर को संसद में भेजा था। हालांकि दूसरे 1957 के चुनाव में राधामोहन सिंह को जिताकर कांग्रेस ने हिसाब चुकता कर लिया था, लेकिन 1962 के चुनाव में फिर मुरली मनोहर ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की और कांग्रेस की जीत का यह सिलसिला 1971 तक लगातार चला, जिसमें 1967 व 1971 में चंद्रिका लाल लोकसभा पहुंचे। इसके बाद जयप्रकाश नारायण की क्रांति ने सियासी माहौल को बदला, जहां की सत्ता चन्द्रशेखर ने संभाले रखी। 1977 व 1980 के चुनाव में चन्द्र शेखर जनता पार्टी के टिकट पर लगातार दो बार जीते, लेकिन कांग्रेस की सहानुभूति लहर में यहां कांग्रेस के जगन्नाथ चौधरी ने परचम लहराया। इसके बाद आज तक कांग्रेस वापसी नहीं कर सकी और यह सीट चन्द्रशेखर की सियासत की कर्मभूमि के रूप में सामने आई, जिन्होंने उसके बाद मरते दम तक इस सीट का समाजवादी जनता पार्टी के रूप में नेतृत्व किया, जो प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। चन्द्रशेखर के निधन के बाद 2007 के उपचुनाव में पिता की विरासत उनके कनिष्क पुत्र नीरज शेखर ने संभाली और सपा के टिकट से जीते, जिन्होंने पिछला चुनाव भी सपा के टिकट पर जीतकर लोकसभा में दस्तक दी थी।
ओ.पी. पाल. बलिया।
पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की कर्मभूमि रही बलिया लोकसभा सीट पर आजादी से आज तक भाजपा अपना भगवा और बसपा अपना नीला झंडा नहीं लहरा पाई है। सोलहवीं लोकसभा के लिए मोदी मैजिक के सहारे भाजपा तथा दलित-ब्राह्मण-मुस्लिम गठजोड़ की रणनीति के साथ बसपा पिता की विरासत संभाले सपा प्रत्याशी नीरज शेखर को कड़ी चुनौती देने के लिए सियासी जंग को दिलचस्प मोड़ देने में जुटी है। जबकि कांग्रेस अपनी तीस साल पुरानी सियासी जमीन तलाशने का प्रयास कर रही है।
उत्तर प्रदेश की बलिया लोकसभा क्षेत्र की देश की राजनीति में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चन्द्रशेखर की सियासत के रंग भरने वाली नीति के कारण एक अलग ही पहचान बनी हुई है। इस लोकसभा सीट की खासियतें गिनी जाएं तो उनमें 15 लोकसभा के लिए 16 बार चुनाव हुआ, लेकिन भजपा और बसपा यहां अपनी एक बार भी राजनीतिक बिसात तैयार नहीं कर पाई है। पिता के निधन के बाद उनकी परंपरागत सीट पदर सियासी विरासत संभालने वाले नीरज शेखर भले ही यहां से दो बार लोकसभा पहुंचे हों, लेकिन इस बार कांग्रेस विरोधी लहर और यूपी में सपा सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ बनते माहौल के बीच भाजपा, बसपा, कांग्रेस, कौमी एकता दल व आम आदमी पार्टी की सियासत के भंवरजाल में फंसते दिख रहे हैं। कारण साफ है इन सभी दलों ने यहां दमदार उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है। भाजपा प्रत्याशी एंव पूर्व मंत्री भरत सिंह, बसपा ने इंजीनियर वीरेन्द्र कुमार पाठक, कांग्रेस ने स्व. कल्पनाथ राय की पत्नी डा. सुधा राय, कौमी एकता दल ने गाजीपुर के पूर्व सांसद अफजाल अंसारी और आप ने सेवानिवृत सेना के अधिकारी कर्नल भरत सिंह को चुनाव मैदान में उतार कर सियासी रंग को सतरंगी कर दिया है। इस सीट के उम्मीदवारों के राजनीतिक जीवन पर नजर डालें तो भाजपा उम्मीदवार भरत सिंह बैरिया विधारनसभा सीट से तीन बार विधायक रहे और राज्य सरकार में मंत्री भी बने। बसपा उम्मीदवार वीरेन्द्र कुमार पाठक जिले के प्रभावशाली कांग्रेसी नेता और बच्चा पाठक के भतीजे हैं। जबकि कांग्रेस की डा. सुधा राय पूर्वांचल में विकास पुरुष के नाम से पहचाने गये कांग्रेसी दिग्गज स्व. कल्पनाथ राय की पत्नी हैं, जो कांग्रेस महिला शाखा की राष्ट्रीय अध्यक्ष के होने के घोसी लोकसभा सीट से भी चुनाव भी लड़ चुकी हैं। कौमी एकता दल के अफजाल अंसारी पूर्वांचल के बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी के भाई और मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट से पांच बार विधायक व गाजीपुर से एक बार सांसद रह चुके हैं। इसी प्रकार आप के उम्मीदवार कर्नल भरत सिंह सेना के सेवानिवृत अधिकारी हैं और इसी सीट से बसपा के टिकट से चुनाव भी लड़ चुके हैं।
विरासत बचाने की चुनौती
भाजपा प्रत्याशी भरत सिंह को मोदी मैजिक के सहारे यहां कमल खिलाने की उम्मीद है, तो बसपा को ब्राह्मण चेहरे के रूप में वीरेन्द्र सिंह पाठक को दलित-मुस्लिम गठजोड के साथ सियासी बिसात बिछाने का पूरा भरोसा है। चन्द्रशेखर की सियासी एवं कर्मभूमि पर पिछले तीस साल से जीत को तरस रही कांग्रेस ने भूमिहार चेहरे के रूप में डा. सुधा राय पर दांव खेला है। अपनी सियासी जमीन तलाशने के लिए कौमी एकता दल के टिकट पर बाहुबली मुख्तार अंसारी भी अपने भाई अफजाल अंसारी की बदौलत शेखर परिवार के तिलिस्म को तोड़ने की रणनीति है। ऐसे में पिता की विरासत को संभालने के साथ जीत की तिकड़ी लगाने के इरादे से सत्तारूढ़ सपा के टिकट पर सियासी जंग में हैँ, लेकिन इस बार उनकी राह में चौतरफा कांटे ही कांटे नजर आ रहे हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो उसे चुनौती देने आए अन्य सभी दलों के प्रत्याशियों को राजनीति के धुरंधर कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए। सोलहवीं लोकसभा की जंग में इस बार यहां 11 राजनीतिक दलों समेत 15 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमाने के लिए चुनाव मैदान में संघर्ष कर रहे हैं।
मतदाताआ का अधिकार
बलिया जिले की तीन बलिया नगर, बैरिया, फेफना और गाजीपुर जिले की दो मोहम्मदाबाद व जहूराबाद विधानसभाओं को जोड़कर बनाई गई बलिया लोकसभा सीट करीब 7.60 लाख महिलाओं समेत 16 लाख 92 हजार 179 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना है। सभी विधानसभा क्षेत्रों में तीन-तीन लाख से ज्यादा मतदाता अपने अधिकार का प्रयोग करेंगे। मतदाताओं के इस जाल को तोड़ने के लिए इस बार प्रमुख दलों समेत ज्यादातर प्रत्याशी संसदीय क्षेत्र के पिछडे विकास को मुद्दा बनाकर सपा प्रत्याशी व मौजूदा सांसद नीरज शेखर की घेराबंदी करने में जुटे हैं।
चन्द्रशेखर का रहा दबदबा
देश में पहले चुनाव में ज्यादातर लोकसभा सीटों पर कांग्रेस ने परचम लहराया था, लेकिन बलिया सीट ऐसी रही जिसने 1952 के पहले चुनाव में पं. मदन मोहन मालवीय के पुत्र गोविंद मालवीय को खारिज करके निर्दलीय मुरली मनोहर को संसद में भेजा था। हालांकि दूसरे 1957 के चुनाव में राधामोहन सिंह को जिताकर कांग्रेस ने हिसाब चुकता कर लिया था, लेकिन 1962 के चुनाव में फिर मुरली मनोहर ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की और कांग्रेस की जीत का यह सिलसिला 1971 तक लगातार चला, जिसमें 1967 व 1971 में चंद्रिका लाल लोकसभा पहुंचे। इसके बाद जयप्रकाश नारायण की क्रांति ने सियासी माहौल को बदला, जहां की सत्ता चन्द्रशेखर ने संभाले रखी। 1977 व 1980 के चुनाव में चन्द्र शेखर जनता पार्टी के टिकट पर लगातार दो बार जीते, लेकिन कांग्रेस की सहानुभूति लहर में यहां कांग्रेस के जगन्नाथ चौधरी ने परचम लहराया। इसके बाद आज तक कांग्रेस वापसी नहीं कर सकी और यह सीट चन्द्रशेखर की सियासत की कर्मभूमि के रूप में सामने आई, जिन्होंने उसके बाद मरते दम तक इस सीट का समाजवादी जनता पार्टी के रूप में नेतृत्व किया, जो प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे। चन्द्रशेखर के निधन के बाद 2007 के उपचुनाव में पिता की विरासत उनके कनिष्क पुत्र नीरज शेखर ने संभाली और सपा के टिकट से जीते, जिन्होंने पिछला चुनाव भी सपा के टिकट पर जीतकर लोकसभा में दस्तक दी थी।
10May-2014
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