गुरुवार, 1 मई 2014

हॉट सीट: हरिद्वार दिलचस्प जंग में कसौटी पर है भाजपा व कांग्रेस की प्रतिष्ठा !

ओ.पी. पाल. हरिद्वार।
उत्तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट पर वैसे तो लहर का असर नहीं होता, लेकिन मोदी मैजिक के सहारे पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक भाजपा व सूबे के मुख्यमंत्री हरीश रावत की धर्मपत्नी रेणुका रावत कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर में आम आदमी पार्टी के टिकट से पूर्व पुलिस महानिदेशक रह चुकी कंचन चौधरी के अलावा सपा की अनिता सैनी व बसपा के मो. इस्लाम ने सियासी जंग को दिलचस्प मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है।
उत्तराखंड राज्य वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद पृथक राज्य के रूप में अस्तित्व में इस बार लोकसभा का तीसरा चुनाव देख रहा है। इस सूबे का हरिद्वार शहर धार्मिक नगरी में शुमार है, तो इसी सीट की सियासत में संतो का दखल किसी से छिपा नहीं है। वहीं इस सच को भी नकारा नहीं जा सकता कि पहाड़ी और मैदानी इलाकों की 14 विधानसभा सीटों से सृजित हरिद्वार लोकसभा सीट पर मुस्लिम मतदाता भी निर्णायक भूमिका निभाते रहे है। खासकर दंगों की दस्तक दे चुके मुजफ्फरनगर से सटे रुड़की, मंगलौर, झबरेड़ा, लक्सर, खानपुर, कलियर, भगवानपुर और ज्वालापुर विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस मुस्लिम वोटरों के ध्रुवीकरण पर कांग्रेस की नजरें हैं, लेकिन बसपा के हाजी मो. इस्लाम और सपा प्रत्याशी अनिता सैनी ने भी सैनी-मुस्लिम गठजोड़ को साधने की रणनीति से सियासी जंग में हैं। भाजपा व कांग्रेस की परेशानी का सबसे ज्यादा सबब उत्तराखंड की पुलिस महानिदेशक रह चुकी कंचन चौधरी का मैदान में आम आदमी पार्टी के टिकट पर उतरने से बना हुआ है।
चुनावी इतिहास
हरिद्वार की सियासत का इतिहास तो अभी तक इसी बात का गवाह रहा है कि इस सीट के नतीजें कभी लहरों में बहकर नहीं आए हैं। उत्तर प्रदेश से अलग होने के बाद यहां पहला लोकसभा चुनाव 2004 में हुआ तो सपा के प्रत्याशी राजेन्द्र कुमार बाड़ी ने परचम लहराया था। जबकि पिछले 2009 के चुनाव में कांग्रेस के हरीश रावत ने जीत हासिल की थी, जो फिलहाल सूबे के मुख्यमंत्री पद पर विराजमान है। कांग्रेस ने हरीश रावत के घर में इस सीट को बरकरार रखने के इरादे से उनकी धर्मपत्नी रेणुका रावत को चुनाव मैदान में उतारा है। इससे पहले जब यह सीट उत्तर प्रदेश का हिस्सा थी तो 1951 से 1971 तक कांग्रेस के सुंदरलाल परचम लहराते रहे। आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव में इस सीट पर भारतीय लोकदल के भगवान दास ने जीत दर्ज की थी। जबकि 1980 के चुनाव में जनता दल(एस) जगपाल सिंह और उसके बाद 1884 में सुंदरलाल व 1989 में फिर जगपाल सिंह ने इस सीट पर कांग्रेस का परचम लहराया। वर्ष 1991 में भाजपा के राम सिंह सैनी, तो उसके बाद 1996, 1998 व 1999 में हरपाल सिंह साथी ने भाजपा की तिकड़ी बनाई थी।
पहाड़ और मैदान का समन्वय
उत्तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट में पहाड़ और मैदान का समन्वय साफ नजर आता है, जिसमें शामिल 14 विधानसभाओं में देहरादून जिले की डोईवाला, धर्मपुर व ऋषिकेश विधानसभ शामिल हैं, तो हरिद्वार जिले की हरिद्वार शहर, हरिद्वार ग्रामीण, ज्वालापुर, रुड़की, मंगलौर, झबरेड़ा, लक्सर, खानपुर, कलियर, भगवानपुर, लंढौरा विधानसभाएं शामिल हैं। हरिद्वार सीट पर 16 लाख 42 हजार 848 मतदाताओं का जाल बना हुआ है, जिसे भेदने के लिए इस सीट पर 13 राजनीतिक दलों समेत कुल 24 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस सीट पर कर्मचारियों के पोस्टल बैलेट पर 136 वोट पहले ही कैद हो चुके हैं, जिन्हें मतगणना में शामिल किया जाएगा।
सियासी मिजाज
लोकसभा चुनाव की चमक में उत्तराखंड के राजनीतिक भविष्य को लेकर भाजपा व कांग्रेस के सामने मुख्य रूप से दो सवाल सामने है, जिसमें एक कि चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस का क्या होगा? दूसरा यह कि चुनाव के बाद सूबे की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा? कांग्रेस की निगाहें मुख्यमंत्री हरीश रावत पर टिकी हैं, जो दोहरे दबाव को झेलने के लिए मजबूर हैं।
01May-2014

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