गुरुवार, 8 मई 2014

हॉट सीट: घोसी-भाजपा के सामने कमल खिलाने की चुनौती !

हरिनारायण राजभर और दारा सिंह चौहान में दिलचस्प सियासी जंग 
ओ.पी.पाल
पूर्वांचल में भूमिहारों का गढ़ मानी जाने वाली उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की घोसी लोकसभा सीट पर आजादी के बाद से अब तक भाजपा अपनी सियासी जमीन तैयार नहीं कर सकी है। मोदी मैजिक के भरोसे भाजपा इस बार इस सीट पर कमल खिलाने की जुगत में है। यहां भाजपा के उम्मीदवार पूर्व मंत्री रहे हरिनारायण राजभर का बसपा के सांसद दारा सिंह चौहान से सीधा मुकाबला माना जा रहा है, हालांकि इस सीट पर बाहुबली मुख्तार अंसारी भी कौमी एकता के नारे के साथ सियासी जंग के मुकाबले को दिलचस्प बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
कांग्रेस के दिग्गज के रूप में पहचाने जाते रहे कल्पनाथ राय की कर्मभूमि रही घोसी लोकसभा सीट पर सोलहवीं लोकसभा के लिए हो रही सियासी जंग बेहद दिलचस्प मोड पर नजर आ रही है। इस सीट के सियासी समीकरणों को आधार बनाकर भाजपा व बसपा के बीच मुकाबले में कांग्रेस ने राष्टÑकुंवर सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है तो सपा ने भूमिहारों के गढ़ में राजीव कुमार राय पर दांव खेला है। वामपंथी दल के अतुल कुमार अंजान भी फिर से यहां अपनी सियासी पारी खेल रहे हैं। इन सबके बीच बाहुबली मुख्तार अंसारी बनारस में नरेन्द्र मोदी को चुनौती देने के साथ इस सीट को अपनी राजनीतिक गढ़ बनाने के लिए चुनाव के मैदान में हैं। यही नहीं आम आदमी पार्टी ने भी भूमिहार वोट बैंक पर डांका डालने के इरादे से मनीष कुमार राय को अपना प्रत्याशी बनाया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अफजाल अंसारी और मुख्तार अंसारी की रणनीति जहां वाराणसी में अजय राय का समर्थन कर बलिया, घोसी व गाजीपुर में भूमिहार वोटों में सेंध लगाने की है। यदि जातीय कार्ड बंदरबांट हुआ तो घोसी सीट पर बसपा या फिर भाजपा प्रत्याशी को ज्यादा लाभ मिलने की संभावना रहेगी।
लोकसभा का इतिहास
मऊ जिले की घोसी लोकसभा सीट वैसे तो 1957 के चुनाव से अस्तित्व में आई है उससे पहले इस सीट को आजमगढ़ पूर्वी लोकसभा सीट से जाना गया, जहां पहला चुनाव कांग्रेस के अलगू राय शास्त्री ने जीता था। 1957 में कांग्रेस के उमरांव सिंह, 1662 में सीपीआई से जय बहादुर सिंह, 1967 व 71 में सीपीआई के झारखंडेय राय सांसद निर्वाचित हुए। आपातकाल के बाद जेपी जेपी आंदोलन की लहर में 1977 का चुनाव जनता पार्टी के टिकट पर शिवराम राय ने जीतकर लोकसभा में प्रवेश किया। 1980 के मध्यावधि चुनाव में झारखंडेय राय ने फिर सीपीआई का लाल झंडा लहराया, तो 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर में राजकुमार राय ने 22 साल बाद फिर से कांग्रेस की वापसी कराई, जो मंडल-कमंडल की लहर में वीपीसिंह के खेमे में चले गये, तो कांग्रेस ने कल्पनाथ राय पर दांव खेला और 1989 में कांग्रेस विरोधी माहौल के बावजूद कल्पनाथ राय ने संसद में दस्तक दी, जिन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और क्षेत्र में कराए गए विकास कार्यों के बल पर जाति बंधन को तोड़ते हुए जीवन के अंतिम समय तक घोसी संसदीय क्षेत्र के सांसद रहे। मसलन उन्होंने 1991 में कांग्रेस और 1996 में निर्दलीय प्रत्याशी तथा 1998 में समता पार्टी के टिकट पर लगातार चार बाद इस सीट पर अपना झंडा बुलंद किया। 1999 में बसपा के बालकृष्ण चौहान, 2004 में सपा से चंद्रदेव प्रसाद राजभर व 2009 में फिर बसपा के दारा सिंह चौहान ने जीत दर्ज की।
सियासी मिजाज
सोलहवीं लोकसभा के लिए हो रही सियासी जंग में कल्पनाथ राय के बाद शुरू हुई जातीय समीकरण की बयार की बदौलत भाजपा ने हरिनारायण राजभर पर दांव खेला है। जबकि सर्वाधिक दलित मतदाताओं और चौहान वोट बैंक के गठजोड़ के सहारे बसपा ने फिर से दारा सिंह चौहान को चुनाव मैदान में उतारा है, तो मुस्लिम और अन्य बिखरी भूमिहार बिरादियों को कौमी एकता का संदेश पढ़ाकर मऊ के विधायक बाहुबली मुख्तार अंसारी भी चुनावी मुकाबले में हैँ। राजनीतिक जानकारों के अनुसार इस सीट पर सर्वाधिक चार लाख दलित और दो लाख चौहान बिरादरी के वोट हैं। मुस्लिम मतदाताहों की संख्या करीब ढाई लाख है। मुख्तार अंसारी ने कौमी एकता मंच में भारतीय समाज पार्टी के राजभर नेता को अपने साथ मिलाकर राजभर वोट बैंक में सेंध लगाने का कार्ड खेला है। ऐसे में दारा सिंह चाौहान को फिर से अपनी जीत नजर आ रही है, लेकिन मोदी लहर में भूमिहारों खासकर ओबीसी और ब्राहमण व अन्य सवर्ण जातियों के साथ राजभर बिरादरी के बल पर इस बार भाजपा पहली बार कमल खिलाने के लिए पूरी जान फूंके हुए हैं।
मतदाताओं का चक्रव्यूह
मऊ जिले की मधुबन, घोसी, मऊ व मोहम्मदाबाद-गोहना के अलावा बलिया जिले की रसडा विधानसभाओं को मिलाकर बनाई गई घोसी लोकसभा सीट पर 17 लाख 97 हजार 518 मतदाताओं का जाल बना हुआ है, जिसे भेदने के लिए भाजपा, बसपा, कांग्रेस, सपा, कौमी एकता दल, आप, पीस पार्टी जैसे 15 दलों समेत कुल 18 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। घोसी लोकसभा सीट में शामिल पांच विधानसभाओं की सियासत देखें तो बसपा व कौमी एकता दल का दो-दो तथा सपा का एक ही सीट पर कब्जा है। इस सीट पर आजादी के बाद से आज तक भाजपा जीत का स्वाद नहीं चख सकी है,जबकि कांग्रेस व वामपंथी दलों ने पांच-पांच बार अपना कब्जा जमाया है, जबकि बसपा दो तथा सपा को एक ही बार जीत हासिल हुई है।
08May-2014

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें