सोमवार, 19 मई 2014

मोदी की सुनामी में हिले कई सूबाई छत्रप !

बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, हिमाचल पर छाया संकट
ओ.पी.पाल

सोलहवीं लोकसभा चुनाव में तीन दशक बाद किसी एक दल के बहुमत के साथ बनने जा रही सरकार भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की सियासी सुनामी का परिणाम है। मोदी की इस सुनामी में कई राज्यों के क्षेत्रीय दल खासकर जिनका सूपड़ा साफ हो गया है पूरी तरह से हलकान होते दिखाई दे रहे हैं। असम व बिहार के मुख्यमंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया तो कुछ कुंडली जमाए बैठे हुए हैं तो कुछ इस्तीफे की नौटंकी करते नजर आ रहे हैं।
लोकसभा चुनाव के नतीजों ने इस बार केई सूबों में क्षेत्रीय दलों का सूपड़ा साफ करके उन्हें उनके वजूद का अहसास करा दिया है। इनमें बिहार सबसे ज्यादा सुर्खियों में आया, जहां सत्तारूढ़ दल मात्र दो सीटों पर आकर थमा तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पार्टी की नैतिक जिम्मेदारी मानते हुए असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगाई की तर्ज पर अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि राजनीतिक जानकार इसका कारण कुछ और ही बता रहे हैं, जिसमें एक कारण प्रधानमंत्री बनने जा रहे नरेन्द्र मोदी से प्रोटोकॉल के कद में नीचे आना भी माना जा रहा है। बहरहाल मोदी की सुनामी से बिहार की सियासत फिलहाल गरम है, जहां भाजपा के विधायक वरिष्ठ नेता सुशील मोदी पिछले सप्ताह ही जदयू के कई दर्जन विधायकों का भाजपा से संपर्क में होने का दावा कर रहे थे। हालांकि रविवार को बिहार मे नीतीश कुमार के इस्तीफे के बाद जदयू विधायक दल की बैठक में नए नेता का चुनाव कर लिया गया है और जदयू के समर्थन में लालू प्रसाद के नेतृत्व वाले राजद के तीन विधायक भी इस्तीफा देकर बिहार की सियासत में बखेड़ा खड़ा कर चुके हैं। राजनीतिक विशेषज्ञ तो यह भी कह रहे हैं कि नीतीश से सबक लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भी सपा, उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने पर इन राज्यों की कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री पद पर विराजमान हरीश रावत व वीरभद्र सिंह को भी नैतिक जिम्मेदारी लेकर इस्तीफा दे देना चाहिए। झारखंड की सियासत भी हिली हुई है, लेकिन झारखंड में भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुवर दास ने स्पष्ट किया है कि भाजपा का फिलहाल झारखंड की हेमंत सोरेन नीत सरकार गिराने का कोई इरादा नहीं है। दास का मानना है कि बेरोकटोक भ्रष्टाचार और खनिजों की लूट तथा सत्तारूढ़ पार्टी के अंदर पनपी गुटबाजी ही सूबे की सरकार गिरने का कारण बन जाएगी। उसके बाद झारखंड में होने वाले चुनावों में भाजपा को सरकार बनाने से कोई नहीं रोक पाएगा।
इस्तीफा देकर लिया वापस
तमिलनाडु में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक ने जिस प्रकार से लोकसभा में ऐतिहासिक जीत का परचम लहराया है उससे प्रतिद्वंद्वी द्रमुक का इस बार पूरी तरह से सफाया हो गया। यही कारण है कि द्रमुक प्रमुख करूणानिधि ने लोकसभा अभियान की बागडौर अपने बड़े बेटे अलगिरी को नजरअंदाज करके पार्टी में कोषाध्यक्ष पद पर दूसरे बेटे एमके स्टालिन को सौंपी थी, जिसने द्रमुक की हार की जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी में सभी पदों से इस्तीफा दिया, लेकिन जब पार्टी से निष्कासित उनके बड़े भाई एमके अलगिरी ने इसे नौटंकी करार दिया तो पार्टी के एक वरिष्ठ नेता दुरई मुरूगन के कहने पर करूणानिधि ने स्टालिन  से इस फैसले को वापस लेने का अनुरोध किया। इस अनुरोध पर स्टालिन ने कुछ घंटों बाद ही अपना फैसला वापस ले लिया।
इन्होंने नहीं मानी नैतिक जिम्मेदारी
उत्तराखंड में कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने पर सूबे के भाजपाईयों ने कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री हरीश रावत से इस्तीफा देने की मांग की थी, लेकिन वह लोकसभा चुनाव की घोषणा से कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री पद पर आए थे, तो उनके ऊपर सूबे में कांगे्रस की पराजय का कोई असर नहीं दिखाई दिया। यही हालत हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का है, जहां भाजपा ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ करके सभी चार सीटों पर कब्जा जमाया है। वैसे तो जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंसनीत सरकार भी इसी दायरे में हैं जहां अपनी सीटें हारकर नेशनल कांफ्रेंस लोकसभा में अपना वजूद खो चुकी है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुला ने यह कहकर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर दी कि उनकी पार्टी शीघ्र ही सूबे में ऐतिहासिक वापसी करेगी। द्रमुक व नेशनल कांफ्रेंस की तरह पहले ही इस बार बसपा व रालोद भी लोकसभा से पूरी तरह नदारद हो चुकी है।
19May-2014

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