रविवार, 4 मई 2014

हॉट सीट: फूलपुर- सियासी मैदान में दांव पर कैफ की प्रतिष्ठा!

फूलपुर सीट ने ही दिया था देश को पहला प्रधानमंत्री
ओ.पी.पाल. इलाहाबाद।

इलाहाबाद की फूलपुर लोकसभा सीट पर क्रिकेट के मैदान पर सुर्खियां बटोरने के बाद क्रिकेटर मोहम्मद कैफ ने अपनी सियासी पारी शुरू की है। कैफ क्रिकेट को चुनावी प्रचार का जरिया बनाकर भाजपा, सपा व बसपा जैसे अनुभवी और धुरंधर राजनीतिक खिलाड़ियों को चुनौती देने की जुगत में हैं। क्रिकेट के मैदान पर चीते जैसी तेज तर्रार फिल्डिंग और बल्लेबाजी से विरोधी क्रिकेट टीमों को नाको चने चबाने के बाद सियासी मैदान पर उनकी प्रतिष्ठा दांव पर है। फूलपुर ल् उन वीआईपी लोकसभा सीटों में शुमार है जहां से देश को जवाहरलाल नेहरू और वीपी सिंह के रूप में दो-दो प्रधानमंत्री मिले।
इलाहाबाद जिले की फूलपुर लोकसभा सीट इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जा रही है कि यहीं की जनता ने जवाहरलाल नेहरू को पहले चुनाव में जिताकर प्रधानमंत्री की कुर्सी सौंपी थी। फूलपुर लोकसभा सीट पर भाजपा ने सोरांव के विधायक प्रसाद मौर्य को को चुनावी मैदान में उतारा है जो काशी प्रांत के क्षेत्रीय संयोजक, विहिप काशी प्रांत के संगठन मंत्री और किसान मोर्चा के प्रदेश महामंत्री भी रह चुके हैं। भाजपा के केशव प्रसाद के अलावा बसपा से कपिल मुनि करवरिया, सपा से धर्मराज पटेल अ‍ैर कांग्रेस के टिकट पर सियासी पारी खेलने आए क्रिकेटर मोहम्मद कैफ एक-दूसरे को चुनौती देने की जुगत में हैं। बसपा के सामने जहां मौजूदा सांसद के जरिए अपनी साख बचाने का दबाव है, तो वहीं सपा से धर्मराज पटेल एक फिर से खुद को साबित करने की कोशिश में मशक्कत कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस के मोहम्मद कैफ के लिए क्रिकेट के मैदान की तरह राजनैतिक कैरियर बनाने और सवारने का सवाल बना हुआ है। ऐसे में भाजपा प्रत्याशी केशव प्रसाद पर बदलाव की बयार में चल रहे मोदी मैजिक साबित करने की बड़ी जिम्मेदारी है। इसलिए इस सीट पर दिलचस्प सियासी जंग होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। फूलपुर लोकसभा सीट की सियासी पारी जीतने के लिए जिस तरह से मतदाताओं को रिझाने के लिए मो. कैफ अनूठे अंदाज में अपने चुनावी क्षेत्र इलाहाबाद और गांव-गलियों में क्रिकेट खेलकर अपनी पहचान बता रहे हैं, ऐसा अन्य किसी दल के प्रत्याशी के लिए तो संभव नहीं है। मसलन मो. कैफ अपनी क्रिकेट छवि को पूरी तरह से भुनाकर लोगों का समर्थन जुटाने में लगे हुए हैं। क्रिकेट खेलने के बाद अपने लिए वोट मांगते नजर आ रहे हैं।
इस सीट से जीती ये हस्तियां
अभी तक के सांसद इलाहाबाद जिले की इस लोकसभा सीट पर 1952 से 1962 तक पंडित जवाहरलाल नेहरू जीते, जो देश के पहले प्रधानंत्री भी बने। चौथी लोकसभा के लिए चुनाव में पंडित नेहरू की बहन विजया लक्ष्मी पंडित, तो 1971 में कांग्रेस के टिकट पर ही विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अपना कब्जा जमाया। आपातकाल में यहां जनता पार्टी की कमला बहुगुणा ने कांग्रेस का तिलिस्म तोड़ा, लेकिन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद लहर में फिर कांग्रेस के राम पूजन पटेल ने कब्जा जमाया। इसके बाद जनता दल के टिकट पर राम पूजन पटेल ने लगातार दो चुनाव जीतकर तिकड़ी बनाकर जवाहर लाल नेहरू की बराबरी की। 1996 व 1998 में सपा के जंग बहादुर पटेल, 1999 में धर्मराज पटेल व 2004 में अतीक अहमद ने इस सीट पर सपा के कब्जे को बरकरार रखा। पिछले चुनाव में कपिल मुनि करवारिया ने जीतकर बसपा को जीत का स्वाद चखाया, लेकिन इस सीट पर भाजपा को अपना खाता खोलने की दरकार है। सोलहवीं लोकसभा के लिए इलाहाबाद जिले की सोरांव, फाफामाऊ, फूलपुर, इलाहाबाद पश्चिम व इलाहाबाद उत्तर विधानसभाओं को मिलाकर सजाई गई इस लोकसभा सीट पर भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा, आप, राकांपा, लोकदल जैसे 11 राजनीतिक दलों समेत कुल 15 प्रत्याशियों ने अपनी सियासी प्रतिष्ठा दांव पर लगा रखी है। इन उम्मीदवारों के सामने यहां 7.71 लाख महिलाओं समेत 17 लाख 36 हजार 957 मतदाताओं का चक्रव्यूह भेदने के लिए बना हुआ है।
जातीय समीकरण पर नजरें
फूलपुर का राजनीतिक इतिहास रहा है कि यहां बड़े से बड़े सियासी धुरंधर धूल चाटते देखे गये हैं, जिनकी हार का एक ही कारण जनता से दूरी बनाना रहा है। यह भी नहीं कि इस सीट पर हर वर्ग जाति के लोगो को जनता ने सांसद का ताज पहनाया है। दूसरा पहलू यह भी है कि यहां जाति धर्म का खेल भी बढ़ चढ़ कर राजनीतिक रूप अख्तियार करता रहा है। यहीं कारण है कि फूलपुर लोकसभा सीट पर प्रमुख राजनीतिक दलों की नजरें जातिगत समीकरण साधने पर भी लगी हुई है। कांग्रेस के टिकट पर मोहम्मद कैफ के सियासत की जंग में आने से सबसे ज्यादा सपा परेशान है जो किसी भी कीमत पर अपने मुस्लिम वोट को बिखरने नहीं देना चाहती। वहीं बसपा मुस्लिमों को अपने खेमे में लाने की जुगत में लगी है। भाजपा मुस्लिम मतों की बंदरबांट में अपने फायदे की उम्मीद लगाए हुए है। जहां तक मुस्लिम वोट बैंक का सवाल है उसमें कांग्रेस के मोहम्मद कैफ ज्यादा फायदे में नजर आ रहे हैं। इस समय मुस्लिम वोट किसके खाते में जायेंगे यही महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बना हुआ है। इस सीट पर ब्राह्मण वोट भी निर्णायक हैं जिस प्रत्याशी पर यह वोट बैंक मेहरबान हुआ तो उसके भाग्य का ताला खुल सकता है। बसपा ने ब्राह्मण प्रत्याशी कपिल मुनि को फिर से मैदान में उतारकर सभी वर्गो का वोट बटोरने की नीति बनाई है। लेकिन भाजपा और संघ की ब्राम्हणों को लुभाने के लिए जो रणनीति बनाई है उससे इस वर्ग को एक सूत्र में बांध पाना किसी के लिए भी आसान नहीं है।
सबक बना है राजनीतिक इतिहास
राजनीतिक के जानकार बताते हैं कि फूलपुर से इतिहास बनाने वालो के लिए विजय लक्ष्मी पंडित से यहां के सांसदो को एक सीख जरुर लेनी चाहिए कि वह देश से समझौता नहीं करती थी। कारण फूलपुर से सांसद बनने वाली भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित केबिनेट मंत्री बनने वाली प्रथम भारतीय महिला थीं। 1937 में वो संयुक्त प्रांत की प्रांतीय विधानसभा के लिए निर्वाचित हुईं और स्थानीय स्वशासन और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री के पद पर नियुक्त की गईं। 1953 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली वह विश्व की पहली महिला थीं। वे राज्यपाल और राजदूत जैसे कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहीं। उन्होंने इन्दिरा गांधी द्वारा लागू आपतकाल का विरोध तक किया और जनता दल में शामिल हो गईं थी।
04May-2014

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