शनिवार, 17 मई 2014

उत्तर प्रदेश: जात-पंथ से ऊपर बस, नमो-नमो !


यादव व गांधी परिवार को मिली सात सीटें
बसपा व रालोद का सूपड़ा साफ
ओ.पी.पाल

केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है, इस तथ्य के आधार पर लोकसभा के चुनाव में सभी राजनीतिक दलों का ध्यान यूपी जैसे सूबे की रणनीति पर केंद्रित रहती हैं। सोलहवीं लोकसभा के चुनाव में इस बार भाजपा की रणनीति के सामने अन्य सभी दल गच्चा खाते नजर आए हैं। मसलन 80 सीटों में से 73 भाजपा-अपना दल के अलावा बाकी सात सीटें कांग्रेस व सपा के परिवार के कब्जे में गई है। जबकि बसपा और रालोद इस बार खाता तक नहीं खोल सकी।
देश में सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में सोलहवीं लोकसभा एक इतिहास के पन्नों में दर्ज हो रही है, जहां पहली बार जातीगत समीकरण की धारणा पूरी तरह से ध्वस्त होती नजर आई है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि इस बार यूपी में नमो-नमो की लहर में मतदाताओं ने जातिय समुदाय से ऊपर उठकर मतदान करके भाजपा के पक्ष में इतिहास रच दिया है। 80 सीटों में से भाजपा ने 71 व उसके सहयोगी दल अपना दल ने दो सीटों पर शानदार परचम लहराया है। बाकी सात सीटों में गांधी परिवार से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को राय बरेली और उनके शहजादे राहुल गांधी को अमेठी में जीत मिल सकी। जबकि पांच सीटों पर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के परिवार का कब्जा रहा है, जिसमें आजमगढ़ व मैनपुरी से स्वयं सपा
प्रमुख मुलायम सिंह यादव, कन्नौज से उनकी पुत्रवधु डिंपल यादव के अलावा फिरोजाबाद व बदांयू से उनके भतीजे अक्षय यादव व धर्मेन्द यादव ने जीत हासिल की है। पिछले चुनाव में यूपी में भाजपा को दस, कांग्रेस व बसपा को 21-21 व सपा को 23 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस बार के चुनाव नतीजों से साफ जाहिर है कि सूबे में न तो सपा का वाई-एम और न ही बसपा का डी-एम-बी जातीय समीकरण कोई असर नहीं दिखा सका। इसी का परिणाम है कि बसपा का पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया है। इसी तर्ज पर रालोद का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी गढ़ भी पूरी तरह से ध्वस्त हो गया है, जिसने कांग्रेस के तालमेल से आठ सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह न तो विरासत में मिली अपनी परंपरागत बागपत सीट ही बचा सके और न ही उनके शहजादे मथुरा सीट को बचा सके। इन सभी सीटों पर भाजपा ने अपना परचम लहराया है। पिछले चुनाव में रालोद ने भाजपा से तालमेल करके पांच सीटें कब्जाई थी, लेकिन इस बार उसे कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में आने का खामियाजा भुगतना पड़ा है। यूपी के चुनावी इतिहास में शायद यह भी पहला मौका है कि इस बार किसी निर्दलीय पर भी किसी ने भरोसा नहीं किया।
धुरंधरों ने मुहं की खाई
यूपीए सरकार में मंत्री पदों पर बैठे दिग्गज के लिए यहां इस बार जीत हासिल करना तो दूर की बात है, उप विजेता भी नहीं रह सके। ऐसे दिग्गजों में केंद्रीय मंत्री रहे बेनी प्रसाद वर्मा, सलमान खुर्शीद, आरपीएन सिंह, श्रीप्रकाश जायसवाल, जतिन प्रसाद, प्रदीप जैन आदित्य, चौधरी अजित सिंह के अलावा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष निर्मल खत्री, पूर्व अध्यक्ष श्रीमती रीता बहुगुणा, कांग्रेस के ही राज बब्बर, रवि किशन, नगमा, रालोद की जया प्रदा व अमर सिंह, सपा के रेवती रमन सिंह, नीरज शेखर, बसपा के दारा सिंह चौहान जैसे कई दर्जन धुरंधरों ने नमो-नमो के सामने मुहं की खाई है।

 लोस में बसपा, द्रमुक, एनसी व आरएलडी का वजूद खत्म
नई दिल्ली। जातिवाद और क्षेत्रवाद की राजनीति करने वाले बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, आरएलडी और द्रविड़ मुनेत्र कषगम का 16वीं लोकसभा में वजूद खत्म हो गया है। लोकसभा के आए नतीजों में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यूपीए सरकार के सुख-दुख की साथी रही नेशनल कांफ्रेंस भी अब लोकसभा में नजर नहीं आएगी। नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष और केन्द्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला र्शीनगर से चुनाव हार गए हैं। इसके अलावा पार्टी का कोई भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत पाया। 15वीं लोकसभा में पार्टी के तीन सांसद थे। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से जातिगत राजनीति के सहारे राष्ट्रीय पटल पर छाई बसपा का सूपड़ा साफ हो गया है। वर्तमान लोकसभा में 21 सांसदों वाली बसपा नई लोकसभा में एक सांसद के लिए तरस गई।
17May-2014

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