रविवार, 18 मई 2014

मोदी की सुनामी में बह गये तीसरे मोर्चे के अरमान!


लोकसभा में विपक्ष की भूमिका रहेगी कमजोर
ओ.पी.पाल

लोकसभा चुनावों से पहले ही भाजपा की ओर से पीएम के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को रोकने के इरादे से गैर भाजपा व गैर कांग्रेस दलों ने एक मंच पर आकर तीसरे मोर्चे की हांडी पकानी शुरू की थी। चुनावों के दौरान बहती मोदी सुनामी में यह ताकतें यहां तक पहुंची कि मोदी को रोकने के लिए भले ही कांग्रेस को समर्थन देने या लेने की जरूरत पडे तो उससे भी कोई परहेज नहीं होगा। चुनाव नतीजों ने ऐसी करवट ली की इन तीसरी तीसरी ताकतों के अरमान मोदी की सुनामी में बहते नजर आए।
संसद के अंतिम सत्र के दौरान ही ग्यारह गैर भाजपा व गैर कांग्रेसी दलों ने तीसरी ताकतों को जोड़ना शुरू किया था तो लग रहा था कि इनमें दम है और इस बार तीसरी ताकत लोकसभा चुनाव में सियासत का रूख बदल सकती हैं, लेकिन करीब 140 सीटों वाले गैर-राजग और गैर-संप्रग दल चुनावी संग्राम में ऐसे खेमें में बंटते दिखे कि उनके बदले कांग्रेस की ओर से तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की बात उठने लगी और तीसरी ताकतों में खासकर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यहां तक कहते नजर आए कि तीसरे मोर्च की सरकार के लिए कांग्रेस के समर्थन लेने या उसे समर्थन देने में भी कोई गुरेज नहीं होगा। जैसे ही चुनाव के नतीजे सामने आए तो वामदलों और तीसरे मोर्चे का सिरमौर बनने का प्रयास कर रहे जदयू व सपा महज दो व पांच सीटों पर सिमट गये और वामदल भी दस सीटों तक सीमित हुए। मोदी की सुनामी में भाजपा ही अकेले 282 सीट लेकर आई, जिसके मुकाबले अन्य सभी दल एकजुट होकर नया गठजोड़ भी तैयार कर लें, तो मोदी को रोकना कहीं तक भी संभव नहीं है। पिछली लोकसभा में तीसरे मोर्चा का मंच तैयार करने वाले इन 11 दलों पर नजर डालें तो समाजवादी पार्टी के सर्वाधिक 22, जद-यू के 19, माकपा के 16, बीजद के 14, एडीएमके के 9, भाकपा के 4, आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक के 2, असमगण परिषद,आरएसपी, जद-एस व झारखंड के विकास मोर्चा के एक-एक ही सदस्य थे। इस बार वामदलों के हिस्से में केवल दस सीट ही आई हैं, जबकि बीजद 20 और एडीएमके 37 सीटों पर जीते हैं लेकिन उनकी निगाहें राजग के पाले में आने पर हैं। ऐसे में तीसरे मोर्चे की हवा निकल गई और इन दलों के अरमान धरे के धरे रह गये। वामपंथी दलों की बात करें तो पिछले चुनाव में ये दल 24 के आंकड़े पर थे, लेकिन इस बार आधे से भी कम सीटों पर सिमट गए हैं।
न चुनौती और न दबाव
सोलहवीं लोकसभा में गैर-भाजपा और गैर-कांग्रेस दलों की सियासत उस मुकाम पर पहुंच गई है कि न तो लोकसभा में वामदलों का दबाव होगा और ना ही किसी मोर्चे की चर्चा का कोई नाम लेवा होगा। मसलन सदन में नरेंद्र मोदी सरकार के लिए विपक्ष की चुनौती ही दूर के ढोल सुहावने नजर आने लगे है। यहां तक कि कांग्रेस तो प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में भी कहीं तक नजर नहीं आ रहा है जिसकी दस प्रतिशत यानि 54 सीटें भी सदन में नहीं होगी। कांग्रेस को 44 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है और यदि यूपीए की बात करें तो कुल 58 सीटों पर सिमट गया है। जहां तक क्षेत्रीय दलों का सवाल है उसमें तमिलनाडु में जयललिता की अन्नाद्रमुक जरूर सीटों की संख्या के लिहाज से राष्ट्रीय स्तर पर तीसरे नंबर की पार्टी बनकर उभरी है, लेकिन वह भी मोदी सरकार से टकराव के बजाय उनके साथ मिलकर ही चलने का संकेत दे रही है। जबकि चौथे नंबर पर ममता बनर्जी सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी होगी,लेकिन कांग्रेस के साथ उसका पहले से ही छत्तीस का आंकड़ा होगा, तो ऐसे में लोकसभा के भीतर चुनौती की संभावना कम ही रहेगी। बिहार में लालू प्रसाद की राजद को छोड़कर कांग्रेस की ज्यादातर सभी सहयोगी पार्टियां राकांपा भी अब उस स्थिति में नहीं है, जबकि अजित सिंह की रालोद, माया की बसपा, फारूख अब्दुला नेशनल कांफ्रेंस का लोकसभा से वजूद ही खत्म हो गया। इन दलों को आप के चार सदस्यों का सहारा भी लेना पड़े तो सदन में  सरकार को चुनौती देना आसान नहीं होगा।
18May-2014

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