सोमवार, 19 मई 2014

राग दरबार-काश! बहनजी का भी होता परिवार

बदले बदले नजर आते हैं सरकार
भौंहे चढ़ा व आंखे तरेर कर पत्रकारों को बाइट देने वाले भाजपा के एक वरिष्ठ नेता के बदले व्यवहार से सभी मीडिया कर्मी हैरत में हैं। 16 मई को जब भाजपा को बड़ी सफलता मिली उसके बावजूद बिहार से आने वाले ये नेताजी बड़ी ही विनम्रता के साथ पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे। सवाल चाहे चुभने वाला रहा हो या टेढ़ा पर नेताजी ने आपा खोए बिना ही सारे सवालों का मुस्कुरा के जवाब दिया। कहां कल तक किसी तीखे सवाल पर बिदक जाते थे और अब इतनी विनम्रता। इससे सभी अचंभे में थे। जहां दो चार पत्रकार खड़े हों वहीं इसकी चर्चा शुरू हो जाए। इतने में महाराष्ट्र से आने वाले एक नेताजी कुछ पत्रकारों से टकरा गए। पत्रकारों ने बातों बातों में उन नेताजी के बदले मिजाज की सराहना तो की ही, कौतूहल वश ये भी पूछ लिया कि आखिर इन नेताजी का मिजाज कैसे बदला? मराठी नेताजी ने जो जवाब दिया उससे माजरा समझ में आ गया। उन्होंने बताया कि जनाब, मोदी जी के मंत्रिमंडल में अपनी मनमाफिक जगह पर फिट होने की फिराक में हैं। सो, किसी से भी आजकल बड़े ही विनम्रता से रूबरू हो रहे हैं। सही बात है..अच्छे दिन ऐसे ही थोड़ा आ सकते हैं।
मैडम का एजेंडा
भाजपा की सुनामी में जीत हासिल करने वाले नेता आला नेताओं के घर पहुंचकर उनका धन्यवाद करने में जुटे हुए हैं। हर किसी की कोशिश है कि वह ज्यादा से ज्यादा बड़े नेताओं से मुलाकात कर उनका आशीष ले सके। इस क्रम में एक महत्वपूर्ण सीट से जीत हासिल करने वाली महिला नेत्री भी हैं। ये नेत्री अध्यक्ष राजनाथ सिंह, वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज समेत कई नेताओं से मिलकर अपनी सफलता के लिए उनका धन्यवाद देने में जुटी हुई हैं। चर्चा है कि मुलाकात के दौैरान वह आला नेताओं से इस बात की चर्चा करना नही भूलती कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए वह एक एजेंडें पर काम कर रही हैं। अपने इस एजेंडें के बारे में उपरी तौर पर चर्चा के बाद वह यह जोड़ना नही भूलती कि, संबंधित मामले का मंत्रालय जिस किसी को भी दिया जाए पर इस एजेंडे पर जरुर फोकस होना चाहिए।. . अब आला नेता तो ये बखूबी समझ रहे हैं कि..उनके सुरक्षा एजेंडें के पीछे का एजेंडा क्या है।
काश! बहनजी का भी होता परिवार
कहते हैं कि मुश्किल घड़ी में हर इंसान अच्छे-बुरे निर्णय को एक बारगी अपनी सोच की तराजू पर जरूर तौलता है। इस सियासत की जंग के नतीजों के बाद चर्चा है कि उत्तर प्रदेश में चली मोदी की सुनामी में बड़े-बड़े सूरमाओं को सियासत के मैदान में धूल चाटनी पड़ी है। यूपी में देश व प्रदेश की राजनीति करने वाले ऐसे दो सियासी घराने ही अपनी लाज बचा सके हैं। इनमें एक गांधी परिवार में कांग्रेस सुप्रीमो सोनिया गांधी अपनी और अपने शहजादे राहुल गांधी की सीट बचा सकी हैं, वहीं दूसरे समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने घराने को इस मोदी सुनामी से सुरक्षित बचाने में सफल रहे, जिसमें उन्होंने अपनी दो सीटों के अलावा पुत्रवधु और दो भतीजों की सीट बचाई है। बाकी सभी राजनीतिक घराने मोदी सुनामी में तबाह हो गये हैं। सबसे बुरा तो बसपा सुप्रीमों मायावती के साथ हुआ, जिनका यूपी से सूपड़ा ही साफ हो गया। अब.. बसपा में अंदरखाने दबी जुबां से ऐसी चर्चा हो रही है कि यदि बहनजी का भी परिवार होता तो शायद बसपा का हाथी जंगल का रूख न करके सूबे में कहीं तो बंधा ही रहता।
केजरी के तीर
आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल के बारे में यह सभी जानते हैं कि वे किसी पर भी आरोप मंढने में तनिक भी देर नहीं लगाते। दिल्ली विधानसभा चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक के राजनीतिक सफर में उनके आरोपों की गिनती करना, सिर के बालों को गिनने जैसा है। सियासत के मैदान में न जाने किस-किस नेता और किन-किन दलों पर उन्होंने अपनी पार्टी के खिलाफ मिलीभगत के आरोप लगाए हैं, इससे कोई अनभिज्ञ नहीं है। लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद मोदी की सुनामी न जाने कितनों की सियासत को तबाह कर गई और अब वे प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। राजनीति के गलियारों में इस बात का इंतजार हैं कि कब अरविंद केजरीवाल का नया आरोप आने वाला है कि पूरे देश की जनता मोदी के साथ मिली हुई है।
घर के रहे न घाट के...
हम तो डुबेंगे के सनम, तुम्हें भी ले डूबेंगे! यह कहावत कांग्रेस-रालोद गठबंधन के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी जंग में सटीक बैठती है। इन दोनों दलों ने एक-दूसरे दलों के सहारे इस इलाके में लोकसभा की सीटें जीतने की रणनीति बनाई। रालोद ने तो कभी सपा में मुलायम के खासमखास रहे अमर सिंह और उनकी सहयोगी जयाप्रदा को भी अपने टिकट पर लड़ाकर सहारा दिया, लेकिन न तो फिल्मी अभिनेत्री जयाप्रदा और न ही कांग्रेस के ग्लैमर में नगमा व राजबब्बर की सियासी जमीन बच पाई। जाट आरक्षण भी रालोद व कांग्रेस की नैया पार नहीं लगा सका, बल्कि मोदी की लहर में आए चुनावी नतीजों में रालोद प्रमुख अजित सिंह अपनी बागपत और अपने बेटे जयंत की मथुरा सीट तक बचाने में नाकाम रहे। 18May-2014
-नेशनल ब्यूरो

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