महिला सम्मान व उत्थान पर नेताओं
की खूब चली जुबां, पर दागियों व कुबरों पर जताया भरोसा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में
महिलाओं के सम्मान, उत्थान और उनकी सुरक्षा से लेकर विभिन्न क्षेत्र में उनके साथ
कंधे से कंधा मिलाकर चलने तक की दुहाई देने वाले तमाम सियासी दलों ने सत्रहवीं
लोकसभा के चुनाव में एक बार फिर से महिलाओं को हाशिए पर रखा और उन्हें संसद में
प्रतिनिधित्व देने में परहेज रखा। जबकि सभी दलों ने दागियों और करोड़पतियों पर
ज्यादा भरोसा जताते हुए चुनावी जंग में उतारा है। मसलन सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव
में जहां 19 प्रतिशत दागियों और 29 प्रतिशत करोड़पतियों ने दांव आजमाया है, वहीं करीब
9 फीसदी महिला प्रत्याशियों ने ही सियासी जंग में हिस्सा लिया है।
दुनिया
के सबसे बड़े इस लोकतांत्रिक देश की सियासत लगतार अपने रंग बदलती देखी गई है, जहां
तक महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा का सवाल है उसके लिए पिछले कई दशकों से कोई भी
केंद्रीय सरकार संसद और विधानसभाओं में महिला आरक्षण बिल तक पारित नहीं कर सकी हैं,
लेकिन महिलाओं को सामाजिक और राजनितिक के अलावा अन्य क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा
भागीदारी देने के लिए तमाम बड़े-बड़े राजनीतिक दल भी महिलाओं के सशक्तिकरण और उनके
सम्मान की दुहाई देते आज भी नहीं थकते। मसलन हमेशा की तरह सत्रहवीं लोकसभा के
महासंग्राम में भी चुनाव प्रचार और रैलियों के दौरान कोई भी राजनीतिक दल पीछे नहीं
रहा है, लेकिन जब संसद में प्रतिनिधित्व की बारी का मुद्दा हो तो उसमें महिलाओं को
हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया जाता है? देश की इस सियासत इस बार भी इस रणनीति की गवाह
होगी, जहां सत्रहवीं लोकसभा के लिए सात चरणों में 542 सीटों के लिए पूरे हुए ईवीएम
में कैद करा चुके 8046 प्रत्याशियों में महिलाओं की संख्या 724 यानि 8.998 फीसदी
ही रही है। जबकि इसके विपरीत ज्यादातर सियासी दलों ने दागियों और करोड़पतियों पर
भरोसा जताते हुए उन्हें प्रत्याशी बनाने में किसी भी तरह का परहेज नहीं किया।
चुनाव सुधार की दिशा में धन-बल से राजनीति को दूर रखने की दुहाई देते आ रहे सियासी
दलों के आपराधिक और करोड़पतियों के मोह के कारण 1500 यानि 18.65 फीसदी दागियों और
2297 यानि 28.55 फिसदी धनकुबेरों ने इस चुनावी दंगल में अपनी किस्मत आजमाई है।
दलों ने ऐसे दिया महिलाओं को
सम्मान
सत्रहवीं
लोकसभा के चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रही 724 महिलाओं में भाजपा ने 437
प्रत्याशियों में 53 महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। जबकि कांग्रेस ने 421 में से 54
महिलाओं को टिकट देकर चुनावी जंग में उतारा है। इसके अलावा प्रमुख सियासी दलो में
तृणमूल कांग्रेस ने 23, बसपा ने 24, शिवसेना ने 12, प्रगतिशील समाजवादी
पार्टी(लोहिया) ने 11, सीपीआईएम ने 10, बीजद ने 7, सपा ने 6, आरपीआई ने पांच, सीपीआई
व वाईएसआर ने 4-4, तेदेपा व आप ने 3-3, शिअद, जदयू , राजद, टीआरएस, द्रमुक, व
जद-एस ने 2-2, अन्नाद्रमुक, लोजपा, झामुमो ने एक-एक महिला को अपने टिकट पर चुनाव
लड़ाया है। इसके अलावा चुनावी जंग में अपनी किस्मत ईवीएम में कैद करा चुके 3435 निर्दलीय प्रत्याशियों में 226 महिलाएं
शामिल हैं। इस चुनाव में गैर मान्यता प्राप्त दलों ने भी महिलाओं को प्रत्याशी
बनाने की औपचारिकताएं पूरी की हैं।
टॉप टेन राज्यों की महिला
प्रत्याशी
इस
बार लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 959 महिलाएं उत्तर प्रदेश में चुनावी जंग में
अपनी किस्मत ईवीएम में कैद करा चुकी हैं, जबकि 859 महिला प्रत्याशियों के साथ
महाराष्ट्र दूसरे पायदान पर है। इसके अलावा तमिलनाडु में 805, बिहार में 619,
कर्नाटक में 470, पश्चिम बंगाल में 466, तेलंगाना में 439, मध्य प्रदेश में 433,
गुजरात में 371 तथा आंध्र प्रदेश में 315 महिला प्रत्याशियों की किस्मत दांव पर
है।
इन पर भी खेला गया दांव
लोकसभा
के चुनाव में अपनी किस्मत आजमा चुके 8046 प्रत्याशियों में जहां भारतीय सेवा के
अधिकारियों, फिल्मी हस्तियों, क्रिकेटरों, ज्योतिषियों, गीतकारों, कहानीकारों, क्रांतिकारी
के अलावा भिखारियों व किन्नरों ने भी सियासी पारी खेली है, वहीं इस बार शिक्षा जगत,
इंजीनियरों, रियल एस्टेट, वकीलों, चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, सोशल वर्करों और मूल खेतीबाड़ी
से जुड़े प्रत्याशियों की कमी देखी गई है। जबकि सभी राजनीतिक दलों ने दागियों व करोड़पतियों
पर बेतहाशा भरोसा किया है। यही कारण है कि इस बार दागी उम्मीदवारों के सियासी जंग में
आने का पिछला सभी रिकार्ड ध्वस्त हो गया है। दागियों व करोड़पतियों को सियासी जंग में
लाने में भाजपा, कांग्रेस, बसपा, सपा, आप, तृणमूल, वामदल, जदयू जैसे प्रमुख दलों ने
ही ज्यादा दिलचस्पी दिखाई है।
2004 में संसद पहुंची 62
महिलाएं
लोकसभा
में महिलाओं का प्रतिनिधित्व में इजाफा करने के मकसद से शायद सत्रहवीं लोकसभा में
वर्ष 2014 में 668 के मुकाबले 724 महिलाओं ने अपनी किस्मत दांव पर लगाई है। 2014
में 668 में 62 यानि 8.09 फीसदी महिलाएं लोकसभा में दाखिल हुई थी। जबकि 2009 के
चुनाव में 556 में से 59 यानि 10.61 फीसदी महिलाएं जीत हासिल करके लोकसभा पहुंची
थी।
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