सियासी पर्यटन और इंटरटेनमेंट
बिहार
विधानसभा चुनाव विश्व राजनीतिक पर्यटन का फिलहाल एक महत्वपूर्ण डेस्टिनेशन
है। जिसे देखो उसका रुख पटना की ओर है। देशी चैनलों के पत्रकारों का बड़ा
दल इन दिनों पटना से पोलिटकल-शो ऐसे आॅन-एयर कर रहे हैं जैसे एयर में और
कुछ है ही नहीं। विदेशी पत्रकार जो भारत में पोस्टेड •ाी नहीं वे भी
अमेरिका, जापान और आॅस्ट्रेलिया जैसे देशों से आकर बिहार विधानसभा चुनाव
2015 की रिपोर्टिंग कर रहे हैं। मानो कोई बड़ा सियासी जलसा चल रहा हो। ऐसे
देश जिन्हें भारत में बड़ा निवेश करना है वे भी बिहार चुनाव और प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी के ताकतवर होने को अनोन्याश्रय संबंध मानकर डेरा डाले बैठे
हैें। वोटर कन्μयूज्ड है।
इतना हो-हल्ला पहले कभी किसी चुनाव में
नहीं हुआ। इतनी ताकत। इतना पैसा। इतने दल। और इतने चुनाव चिन्ह। सपा सहित
चार दलों के पास साइकिल चिन्ह है। तीर जदयू का चुनाव चिन्ह है तो तीर कमान
लेकर शिवसेना और झामुमो के प्रत्याशी तैनात हैं। मुख्य रूप से चुनाव भाजपा
के राजग गठबंधन और जदयू महागठबंधन के बीच है। मगर, वोटरों को वोटिंग मशीन
पर चुनाव चिन्ह के रूप में आइस्क्रीम, गुड्डा, गुड़िया, बैट, हॉकी, बॉल,
रेडियो समेत मनोरंजन के तमाम साधन मिलेंगे।
बीप के ब्रांड एम्बेसडर
देश
की सियासत ही अजीब है, वह जो कर दे वही थोड़ा सा ही लगता है। मसलन हर कोई
सियासी नुमाइंदा सांप्रदायिक सौहार्द्र की दुहाई देने में तो पीछे नहीं है,
लेकिन बिगड़ते सौहार्द्र को राजनीतिक मुद्दा बनाने में भी किसी को हिचक
नहीं। बीप को लेकर दादरी कांड में ऐसा ही देखा जा सकता है कि जहां कमंडल
वाले बाबाओं ने आजम खान जैसे मंडल के ध्वजवाहक को ही गौ मांस(बीप) का
ब्रांड एम्बेसडर ही बना दिया है, जिसने पाकिस्तान की तर्ज पर यूएन जाने की
रट लगा रखी है। मुद्दे का हाथ से निकलता देख ओवैसी साहब भी आजम को आड़े हाथ
लेकर राष्टÑवादी किरदार में नजर आने लगे। ओवैसी के इस किरदार में ऐसे
ख्यालात सामने आए कि आजम खान साहब को संयुक्त राष्ट्र संघ जरूर जाना चाहिए,
लेकिन उन्हें वीजा में नाम के साथ खान पढ़ते ही अमेरिकी एयरपोर्ट पर ही
सुरक्षा एजेंसियां उन्हें घेरकर घंटों पूछताछ के साथ जामा तलाशी लेकर ही
पिंड छुडाना पड़ेगा यह भी उन्हें ध्यान में रखना चाहिए। ऐसे में सवाल उठे कि
तुनकमिजाज रामपुरिया खान गुस्से में क्या तत्काल ही भारत नहीं लौट आएंगे?
ऐसा वह पहले भी भुगत चुके हैं। राजनीति गलियारे में इस मुद्दे पर यही चर्चा
है कि ऐसा करने के बाद आजम कहां अमेरिकी एयरपोर्ट से ही भारतीय मुसलमानों
के बेइज्जत करने पर बयान देने के अलावा कुछ भी नहीं कर पाएंगे और उन्हें यह
भी अहसास हो जाना चाहिए कि भारत में ही मुसलमान कितने सम्मान और सुरक्षा
के माहौल में जी सकता है।
ये किस जीत का जश्न है मेरे भाई......
किसी
भी कार्य के सफल होने के बाद उसकी खुशी में जश्न मनाना तो आम इंसानी फितरत
होती है। लेकिन बिना कार्य सिद्धी के नाचना-कूदना हास्यास्पद सा जान पड़ता
है। हो कुछ भी क्या फर्क पड़ता है जश्न तो मनाया ही जाएगा वो भी पूरे लाव
लश्कर और गाजे-बाजे के साथ। यहां बात 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की हो
रही है, जिसे भारत ने जीता या पाकिस्तान ने कोई स्पष्ट प्रमाण किसी के पास
नहीं है। लेकिन जैसे ही इस साल युद्ध के 50 साल पूरे हुए यानि स्वर्ण जयंती
आई तो दोनों देशों की मानो बल्ले-बल्ले हो गई। दोनों ओर युद्ध जीत लेने का
जश्न मनना शुरू हो गया। एक कहता कि हमने दूसरे को पटका तो दूसरा कहता
मैंने उसे नाको चने चबवा दिए। ऐसी निराधार जीत का क्या कीजे जनाब जिसका
दूर-दूर तक कोई अता पता नहीं। ऐसे जश्न पर तो लोग ये ही कहेंगे कि ये किस
जीत का जश्न है मेरे भाई।
--हरिभूमि ब्यूरो
11Oct-2015
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