सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

अयोग्‍य सांसद-विधायक नपेंगे !

चुनाव आयोग ने तत्काल अधिसूचना जारी करने के दिये निर्देश
ओ.पी. पाल .
नई दिल्ली।
अदालत से दोषसिद्ध होते ही अयोग्य ठहराये जाने वाले सांसदों और विधायकों पर तत्काल कार्रवाही सुनिश्चित करने की दिशा में चुनाव आयोग सख्त होता नजर आ रहा है। संसद और राज्य की विधानसभाओं को जारी निर्देश में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अनुपालन में ऐसे जनप्रतिनिधियों की अयोग्यता की तत्काल अधिसूचना जारी करने को कहा गया है।
केंद्रीय चुनाव आयोग के प्रवक्ता के अनुसार उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए लोकसभा,राज्यसभा और सभी राज्यों की विधानसभा सचिवालयों को दिशानिर्देश जारी किये हैं। चुनाव आयोग के इन निर्देशों के मुताबिक संसद और विधानसभाओं में ऐसे व्यवस्था बनाने को कहा गया है कि जैसे ही अदालत से किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को दोषी करार दिया जाता है तो वैसे ही उनके अयोग्य ठहराए जाने की बिना किसी भेदभाव के तत्काल अधिसूचना जारी की जाए। चुनाव आयोग ने यह दिशानिर्देश उच्चतम न्यायालय के गत 10 जुलाई 2013 को दिये गये उस फैसले के आधार पर जारी किये हैं, जिसमें शीर्ष अदालत ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 की उपधारा 4 को रद्द कर दिया था। इसके बाद अदालत से दोषी करार सांसद या विधायक अपने बचाव में अपील भी नहीं कर सकता, जो इस अधिनियम के तहत प्रावधान का लाभ उठाकर जनप्रतिधि सुरक्षित हो जाता था।

इसलिए जारी हुए निर्देश
देश के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद से भ्रष्टाचार तथा कुछ और मामलों में दोषी करार दिए जाते उसके अयोग्य घोषित होने पर किसी भी सदन के सदस्य की सदस्यता चली जाती है। इसके बावजूद लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय तथा विधानसभा के सचिवालयों द्वारा कुछ मामलों में अधिसूचना जारी होने में विलंब देखा गया है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार दोषसिद्ध होने पर सदन के सचिवालय की आयोग्य ठहराए जाने वाली अधिसूचना में देरी करना संविधान के अनुच्छेद 103 तथा उच्चतम न्यायालय की ओर से तय कानून का उल्लंघन है। इसी स्थिति को देखते हुए चुनाव आयोग ने संसद और राज्य विधानसभाओं से कहा है कि दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य ठहराने से जुड़े कानून को तत्काल क्रियान्वित किया जाना सुनिश्चित किया जाए। आयोग ने कहा है कि दोषसिद्धि के बारे में सूचना तथा फिर इसके बाद अयोग्य ठहराए जाने की अधिसूचना में हर एक मामले में ज्यादा समय नहीं लगना
चाहिए।
मसूद व लालू पर गिरी थी पहली गाज
उच्चतम न्यायालय के इस फैसले की गाज सबसे पहले 21 अक्तूबर 2013 को कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य रशीद मसूद पर गिरी थी,जो मेडिकल मामले में दोषी करार देने पर अयोग्य ठहराए गये थे। इसके बाद बाद बहुचर्चित चारा घोटाले में दोषी करार दिए जाने के कारण 22 अक्तूबर 2013 को राजद प्रमुख लालू प्रसाद और जदयू नेता जगदीश शर्मा को लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराया गया।
अध्यादेश भी नहीं आया काम
उच्चतम न्यायालय के इस आदेश को बेअसर करने की दिशा में तत्कालीन यूपीए सरकार जनप्रतिधियों के बचाव में संसद में एक विधेयक भी लेकर आई, लेकिन विपक्ष के साथ जारी मतभेद के के चलते इसे पारित नहीं किया जा सका था। ऐसी स्थिति में सरकार ने सांसदों व विधायकों के बचाव में 24 सितंबर 2013 को एक अध्यादेश को कैबिनेट में मंजूरी दी, लेकिन आलोचनाओं के बीच कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रेस क्लब में आकर अचानक यह कहकर सरकार के मंसूबों पर पानी फेर दिया था कि ऐसे अध्यादेश को फाड़कर फेंक देना चाहिए। राहुल के इस बयान के बाद सरकार को इस अध्यादेश को दो अक्टूबर को हुई कैबिनेट में वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
19Oct-2015

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