शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

फ्लाई ओवर भी नहीं दे पाए जाम से राहत!

दिल्ली में हर साल स्वाह हो जाती है अरबो की रकम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने देश में सड़क परिवहन को आसान बनाने के लिए भले ही कई सड़क परियोजनाओं को पटरी पर उतारा हो, लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में समय-समय पर बनाए गये फ्लाई ओवर और मेट्रो का परिचालन भी दिल्ली की सड़कों पर जाम से राहत नहीं दे पा रहा है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि हर साल पांच सौ अरब से भी ज्यादा की रकम दिल्ली की सड़कों पर वाहनों के जाम के तामझाम में ही स्वाह हो जाती है।
सड़क परिवहन से जुडे विशेषज्ञों के आकलन पर गौर करें तो दिल्ली की सड़कों पर जगह-जगह लगने वाले जाम के कारण उसमें फंसे वाहनों के कारण समय की बर्बादी तो होती ही है, वहीं वाहन के र्इंधन का खर्च भी जाम लगने के दौरान जेब को खाली करता नजर आता है। धन की बर्बादी के कारण में यदि पैट्रोल चालित एक कार का रोज 20 किमी सफर हो और उसका माईलेज 15 किमी प्रति लीटर होने के बावजूद उसके र्इंधन की लागत का खर्च 25 से 30 फीसदी जाम के कारण स्वत: ही बढ़ जाता है। इसी प्रकार दुपहिया वाहन की बात की जाए तो औसतन 50 किमी प्रति लीटर माइलेज के बावजूद उसका सफर सिकुड जाता है। यही हाल अन्य वाहनों का है। एक सर्वे के आंकड़ों में इसी प्रकार जाम के कारण दिल्ली में हर साल पांच सौ अरब से ज्यादा रुपयों के नुकसान का आकलन सामने आया है। एक डीटीसी बस ब्रेक डाउन होती है तो चार घंटे बसों के हाइड्रोलिक होने के कारण यातायात प्रभावित होता है। देश की राजधानी में जाम का आलम तो यह है कि लुटियन जोन भी इससे अछूता नहीं है, जहां वाहन चालकों को घंटों तक जाम का शिकार होना पड़ता है। राजधनी के हर इलाके में लगने वाले जाम के पीछे वजहें भी अलग-अलग सामने हैं। धरना-प्रदर्शनों के कारण भी दिल्ली जाम होती देखी गई है। एक आकलन के मुताबिक वर्ष 2014 के दौरान दिल्ली में 2409 प्रदर्शन, 361 रैलियां, 4170 धरने व हड़ताल, 342 त्यौहार संबंधी कार्यक्रमों के कारण भी जाम की स्थिति बनी है। बारिश होने पर तो जाम की स्थिति और भी ज्यादा विकराल रूप लेती देखी गई है। एक आंकड़े के मुताबिक बारिश के मौसम में दिल्ली की ऐसी 152 जगह चिन्हित हैं जहां जलभराव होता है, जिसके लिए दिल्ली यातायात पुलिस भी सिविक एजेंसियों को चेता चुकी है, क्योंकि तेज बारिश के कारण ट्रैफिक सिग्नल काम नहीं करने से वाहनों की लंबी लाइन सड़कों पर लग जाती है।
कारण भी हैं बड़े 
एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में दिन पर दिन बढ़ते वाहनों के बोझ के बावजूद सड़कों के डिजाइन अरसो पुराने ही हैं और अपेक्षाकृत कम चौड़ी भी हैं। इसके बावजूद राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान दिल्ली में बनाए गये पुलों के बाद यहां फ्लाई ओवरों की संख्या 75 हो गई है। वर्ष 1982 में एशियाई खेलों के आयोजन के समय दिल्ली में दूसरे फ्लाई ओवर का निर्माण हुआ था, तो जाम को राहत देने के नाम पर इन फ्लाई ओवर बनाने का सिलसिला शुरू हो गया था और एक के बाद एक फ्लाई ओवर बनाए गए। इसके बाद वर्ष 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों के भी फ्लाई ओवरों की संख्या इस मकसद से बढ़ाई गई थी कि दिल्ली को जाम से मुक्ति मिल सके। यहीं नहीं ज्यादातर दिल्ली के सफर के बोझ को मेट्रो ने थाम रखा है। इसके बावजूद प्रतिदिन 90 से 95 लाख वाहनों का बोझ दिल्ली की सड़के रोज सहने को मजबूर है।
10Oct-2015
 

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