बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

सेहत को लेकर गंभीर नहीं है भारत!

खर्च में कंजूसी बरतने में 164वें पायदान पर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में स्वास्थ्य के क्षेत्र में भले केंद्र की सरकारे बड़ी-बड़ी परियोजनाएं बनाकर स्वास्थ्य के ढांचे को मजबूत बनाने का दावा करती रही हो, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट में दुनियाभर में स्वास्थ्य पर खर्च करने के मामले में भारत 164वें पायदान पर है। मसलन सेहत को लेकर भारत गंभीर नहीं है।
देश में स्वास्थ्य को लेकर केंद्र प्रायोजित योजनाओं के बजट में सरकार हर साल बढ़ोतरी करती देखी गई है और विभिन्न स्वास्थ्य परियोजनाओं को भी कार्यान्वित करने का दावा किया जाता रहा है। इसके विपरीत विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में किये गये खुलासे के अनुसार देश में बिगड़ती सेहत का प्रमुख कारण केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा खर्च में कंजूसी बरतना है। डब्लयूएचओ की इस रिपोर्ट में भारत दुनिया के ऐसे देशों में शामिल दिखाया गया है, जहां बहुत सारी स्वास्थ्य योजनाएं अपने लक्ष्य को पूरी तरह से अंजाम नहीं दे रही है, यही कारण है स्वास्थ्य पर खर्च करने के मामले में दुनिया के 191 देशों में भारत 164वें पायदान पर रखा गया है। यूपीए के शासनकाल में योजना आयोग द्वारा बनाए गये यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज के उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समूह ने नवंबर 2011 में  2022 के लिए रिपोर्ट दी थी। इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य फाइनेंस, स्वास्थ्य ढांचे, स्वास्थ्य सेवा शर्तें, कुशल कामगारों, दवाओं और वैक्सीन तक पहुंच, प्रबंधकीय और संस्थागत सुधार और सामुदायिक भागेदारी जैसे क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने की बात कही गई थी। आयोग के अनुमान के मुताबिक 12वीं योजना के तहत 2012 से 2017 के दौरान 3.30 करोड़ खर्च किए जाने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन आयोग के सूत्रों के अनुसार देश 12वीं पंचवर्षीय योजना के तीसरे साल में प्रवेश कर चुके हैं और ऐसी रिपोर्ट के मद्देनजर स्वास्थ्य क्षेत्र में और भी बजट की दरकार है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन(आईएमए) महासचिव डा. केके अग्रवाल का कहना है कि सरकार को मौजूदा जीडीपी 1.1 प्रतिशत बजट खर्च को बढ़ा कर 12वीं योजना के तहत कम से कम 2.5 प्रतिशत तक करना चाहिए और 2022 तक जीडीपी का 3 प्रतिशत होना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह प्राथमिक स्वास्थ्य पर 55 प्रतिशत, द्वितीयक पर 35 प्रतिशत और तीसरे देखभाल सेवाओं पर 10 प्रतिशत तक बजट खर्च करने का प्रावधान करे। उनका यह भी कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा दी जानी वाली अतिरिक्त राशि सीधे प्राइमरी हेल्थ केयर और सेकंडरी हेल्थ केयर के पहले स्तर पर स्वास्थ्य ढांचे और पेशेवरों की कमी को पूरा करने पर खर्च होना चाहिए। इसके अलावा सरकारी स्तर पर दवाइयों की खरीद के लिए 0.1 प्रतिशत से बढ़ाकर जीडीपी का 0.5 प्रतिशत खर्च होना चाहिए। अग्रवाल कहते हैं कि सरकार को न सिर्फ इस क्षेत्र का बजट बढ़ाना चाहिए, बल्कि वह पैसा सही तरीके और सही समयसीमा में खर्च हो जैसी व्यवस्था को दुरस्त करना भी जरूरी है।
20Oct-2015

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