सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

रार में फंसी है सैकड़ो जजों की नियुक्तियां!

सरकार और सुप्रीम कोर्ट की खींचतान
बहाल हुई कॉलेजियम प्रणाली से होंगी नियुक्तियां
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एनजेएसी को असंवैधानिक करार देने और पुरानी कॉलेजियम प्रणाली को बहाल करने के फैसले ने केंद्र सरकार के देश में की जा रही न्यायिक सुधार की कवायद को झटका दिया है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में जजो की नियुक्तियों को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच कथित रार के बीच चार सौ जजों की नियुक्तियां फंसी हुई है।
केंद्र सरकार द्वारा जजो की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन की प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट ने असंविधानिक करार देकर फिर से कॉलेजियम प्रणाली को बहाल कर दिया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार आमने सामने हैं। ऐसे में अभी यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि क्या देश में सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों में जजों की रिक्तियों को भरने के लिए केंद्र सरकार अगला कदम बढ़ाएगी या फिर पुराने कॉलेजियम प्रणाली के तहत ही जजों की नियुक्तियों की प्रक्रिया शुरू होगी। केंद्र सरकार को भी कोलेजियम द्वारा पेश की गई लगभग उन 120 सिफारिशों पर फैसला करने की चुनौती है, जो कोलेजियम व्यवस्था हटाए जाने से पहले की हैं। इस व्यवस्था को गत 13 अप्रैल को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून के जरिए हटाया गया था। देश के 24 न्यायालयों में 406 रिक्त जजों की नियुक्तियों को भरने की चुनौतियां बढ़ती नजर आ रही हैं। विधि और न्याय मंत्रालय के ताजा आंकड़ो पर नजर डाले तो देशभर में सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालतों तक मौजूदा स्थिति के मुताबिक करीब पांच हजार जजों व न्यायिक अधिकारियों के रिक्त पदों को भरने की भी चुनौती है। वहीं इसी साल सैकड़ो जज सेवानिवृत्ति के मोड़ पर हैं। मसलन सुप्रीम कोर्ट में प्रमुख न्यायाधीश एचएल दत्तू समेत फिलहाल 29 न्यायाधीश कार्यरत हैं, जिनमें दिसंबर महीने में जस्टिस दत्तू और विक्रमजीत सेन सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
उच्च न्यायालय में बढ़ी समस्या
देश के 24 राज्यों के उच्च न्यायालयों में एक अक्टूबर की ताजा स्थिति के अनुसार 1017 जजों में से 406 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं, जिनमें सर्वाधिक इलाहाबाद उच्च न्यायालय में 85 पदों को भरने की दरकार है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में आठ, मध्य प्रदेश और दिल्ली उच्च न्यायालय 19-19 तथा पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायाल में 31 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं। इनके अलावा तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 20, बंबई में 33, कोलकाता में 21, गुवाहाटी में सात, गुजरात में 12, हिमाचल प्रदेश में छह,जम्मू-कश्मीर में सात, झारखंड में 12, कर्नाटक में 26, करेल में सात पद खाली हैं। इसी प्रकार से मद्रास हाईकोर्ट में 23, मणिपुर में एक, ओडिसा में आठ, पटना में 11, राजस्थान में 21, सिक्किम में एक तथा उत्तराखंड में पांच जजों के पद खाली हैं। देश के सिक्किम, मेघालय और त्रिपुरा ही ऐसे राज्य हैं, जहां जजों के सभी पद भरे हुए हैं। हैरानी वाली बात तो यह है कि बॉम्बे, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, पटना, पंजाब व हरियाणा, राजस्थान और गुवाहाटी हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश ही नहीं है, जहां कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीशों के जरिए काम चलाया जा रहा है। यही नहीं देशभर में जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में अनुमोदित 20,214 जजों की अपेक्षा 15,634 जज ही कार्यरत हैं यानि 4580 न्यायाधीशों की नियुक्ति अभी तक लटकी हुई है।
19Oct-2015



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