शनिवार, 3 अगस्त 2019

पुराने 58 कानूनों को खत्म करने का रास्ता हुआ साफ

लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी विधेयक पारित    
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
संसद से अप्रासांगिक हो चुके 58 पुराने कानूनों को खत्म करने के प्रावधान वाले निरसन और संशोधन विधेयक को मंजूरी मिल गई है। लोकसभा के बाद शुक्रवार को राज्यसभा में इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। इन कानूनों में कुछ कानून डेढ़ सौ साल से भी पुराने हैं, जिन्हें खत्म करने का रास्ता प्रशस्त हो गया है।
राज्यसभा में शुक्रवार को भोजनावकाश के बाद केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद द्वारा पेश किये गये निरसन और संशोधन विधेयक पर संक्षिप्त चर्चा कराई गई, जिसके जवाब के बाद इस विधेयक को सदन में ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। लोकसभा इसे पहले ही मंजूरी दे चुका है। चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कानून मंत्री ने कहा कि इस विधेयक के तहत ऐसे कुछ कानूनों को एक-दूसरे में समाहित भी किया जा रहा है जिनका काम एक जैसा है। उन्होंने कि इन 58 पुराने कानूनों में 1850 के कानून और जमींदारी से जुड़ी कानून भी शामिल हैं, वहीं कई संशोधित कानून को भी हटाना जरूरी है। उन्होंने कहा कि देश को कानून से कम से कम परेशान करने की सोच के साथ यह बिल लाया गया है, ताकि लोगों का जीवन आसान हो सके। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ऐसे कानूनों की समीक्षा के लिए दो लोगों की समिति बनाई गई थी और समिति ने ऐसे 1824 कानूनों की पहचान की थी, जो अप्रासांगिक हो चुके है। इसी आधार पर केंद्र सरकार ने अप्रासांगिक हो चुके 1428 पुराने कानूनों को हटाया है। उन्होंने कहा कि पुराने वित्त विधेयकों को भी समाप्त किया जाना है और इसके लिए वित्त मंत्रालय से चर्चा चल रही है। प्रसाद ने कहा कि सरकार दो प्रकार के कानूनों को समाप्त कर रही है। इनमें मूल कानून और संशोधित कानून शामिल हैं।
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मजदूरी संहिता विधेयक भी पास
राज्यसभा में शुक्रवार को देर शाम मजदूरी संहिता विधेयक को भी पारित कर दिया गया है। इस विधेयक पर हुई चर्चा के दौरान विपक्षी दलों ने विरोध करते हुए इसे प्रवर समिति में भेजने की मांग की। चर्चा के बाद इस विधेयक पर विपक्ष की ओर से लाए गये सभी संशोधन और प्रवर समिति को भेजने वाला प्रस्ताव खारिज हो गया। इस विधेयक में कुछ सदस्यों ने अपने संशोधन वापस भी लिये, बाकी खारिज हो गये। उच्च सदन में विधेयक को मत विभाजन के बाद आठ के मुकाबले 85 मतों से पारित कराया गया। इस विधेयक में न्यूनतम मजदूरी तय करने के प्रावधान किया गया है। लोकसभा इस विधेयक को पहले ही मंजूरी दे चुकी है।
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छाया वर्मा ने की प्रवर समिति को भेजने की मांग
राज्यसभा में मजदूरी संहिता विधेयक पर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सांसद छाया वर्मा ने चर्चा के दौरान कहा कि 10 ट्रेड यूनियन ने सरकार के विधेयक को नकार दिया है और इस वजह से विधेयक को प्रवर समिति भेजा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विधेयक में मजदूरों को कोर्ट में जाना का अधिकार नहीं दिया गया और ऐसे में उनके साथ अन्याय किया जा रहा है। वहीं मजदूरों को डिडिटल भुगतान की बात कही गई है तो क्या वह सभी जगह संभव हो पाएगा। वर्मा ने कहा कि आंगनवाड़ी, आशा वर्कर को काफी कम वेतन मिलता है, संसद में संविदा में काम करने वाली हमारी बहनों का वेतन भी काफी कम है।
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घरेलू कामगारों को भी न्यूनतम मजदूरी: श्रम मंत्री
राज्यसभा में मजदूरी संहिता विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने कहा कि मजदूरों के हितों के लिए सरकार कई ठोस कदम उठाते हुए न्यूनतम मजदूरी तय करने की पहल कर रही है। असंगठित क्षेत्र में सभी को रोजगार मिल सके इसके लिए उनके हित के बारे में सरकार कदम बढ़ा रही है। गंगवार ने कहा कि मजदूर की समस्या के समाधान समय के 2 साल से 3 साल किया गया है। भेदभाव दूर करते हुए वेतन में महिला, पुरुष और ट्रांसजेडर्स को बराबर हक दिया जाएगा। घरेलू कामगारों को 11 राज्यों में न्यूनतम मजदूरी पहले से मिल रही है लेकिन अब हम इसे देशभर में लागू करना चाहते हैं। मंत्री ने कहा कि पहले कानून में मजदूर संघों की सहमति थी लेकिन राजनीतिक कारणों से कुछ संघ पीछे हट गये। राज्यों के पास वेतन बढ़ाने का हक है लेकिन केंद्र की ओर से तय की गई न्यूनतम मजदूरी से कम किसी को नहीं दिया जा सकता। संतोष गंगवार ने कहा कि कमेटी बैठकर न्यूनतम मजदूरी तक करेगी लेकिन हम राज्यों के अधिकार नहीं ले रहे हैं, उन्हें पूरा हक है। इसलिए  इस विधेयक के जरिए मजदूरों के हित में सरकार का यह एक बड़ा फैसला साबित होगा।
03Aug-2019

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