सुप्रीम
कोर्ट की टिप्पणी पर विशेषज्ञों की राय
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सुप्रीम
कोर्ट द्वारा कुछ सांसदों और विधायकों की संपत्तियों में लगातार बढ़ोतरी को लेकर
की गई टिप्पणी पर विशेषज्ञों का कहना है कि देश व समाज की सेवा को मजबूत बनाने के
लिए व्यापार को राजनीति से अलग करना बेहद जरूरी है। हालांकि विशेषज्ञों की राय यह
भी है कि जनप्रतिनिधियों की बढ़ती संपत्ति की स्थिति में इसकी जांच की जानी चाहिए
कि उसने अपनी आय राजनीतिक पद का दुरूपयोग करके बढ़ाई है या अपने कारोबार से।
दरअसल
सांसदों व विधायकों की संपत्ति में बढोतरी के बारे में एक याचिका पर सुनवाई करते
हुए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने 500 गुना तक संपत्ति में बढ़ोतरी को लेकर टिप्पणी
की है कि यदि जनप्रतिनिधि इतनी तेजी से संपत्ति में बढ़ोतरी के लिए अपने कारोबार
का तर्क देता है तो सवाल उठता है कि जब जनप्रतिनिधि देश व समाज के लिए राजनीति में
आया है तो वह बिजनेस कैसे कर सकता है। इसी टिप्पणी को लेकर हरिभूमि ने आर्थिक,
उद्यमी और राजनीतिक विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया जानने का प्रयास किया, जिसमें
ज्यादातर ने व्यापार को राजनीति से अलग करने की बात कहते हुए सुप्रीम कोर्ट की
टिप्पणी का समर्थन किया,जबकि एक विशेषज्ञ ने इस टिप्पणी को तर्कहीन करा दिया।
राजनीतिक
विशेषज्ञ अभय कुमार दूबे का कहना है कि जब राजनीति का व्यापारी करण हो जाए तो एक
जनप्रतिनिधि देश व समाज की सेवा कैसे कर सकता है, इसलिए जरूरी है कि जिस प्रकार से
राजनीति के अपराधीकरण को खत्म करने की वकालत की जाती है उसी प्रकार से राजनीति को
व्यापारीकरण या निजी कारोबार से अलग होना जरूरी है। इसी प्रकार आर्थिक विशेषज्ञ
देवेन्द्र शर्मा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सही सवाल उठाया है और जब जनता का
निर्वाचित जनप्रतिधि पूरी तरह से कामर्शियल हो जाएगा तो वह जनता की सेवा के बजाए
अपने व्यापार पर ज्यादा ध्यान देगा और अपनी आय बढ़ाने की मुहिम में लगा रहेगा।
शर्मा का कहना है कि ऐसे कई मामले सामने भी आ चुके हैं, जिसके कारण जनता के पैसे
का दुरुपयोग हुआ है। देश की प्रमुख औद्योगिक संस्था फिक्की से जुड़े उद्यमी
विशेषज्ञ अंजन राय ने सुप्रीम कोर्ट की जनप्रतिनिधियों की संपत्ति में इजाफे को
लेकर की गई टिप्पणी का समर्थन किया है और कहा कि राजनीति के बदलते जा रहे मायनों
के हिसाब से किसी सांसद या विधायक को निजी कारोबार नहीं करना चाहिए।
सभी को मिले राजनीति में प्रतिनिधित्व
सुप्रीम
कोर्ट की टिप्पणी पर असहमति जताते हुए राजनीति से जुडे रहे सोमपाल शास्त्री का
कहना है कि राजनीति में हिस्सेदारी के लिए व्यापार को संवैधानिक दायरे में लाना
उचित नहीं है। उनका कहना है कि जहां तक जनप्रतिनिधियों की संपत्ति में इजाफे का
सवाल है उसकी उचित प्रावधान के साथ इस बात की जांच कराना जरूरी है कि उसने अपनी आय
या संपत्ति में इजाफा अपने कारोबार से किया है या फिर राजनीतिक पद का दुरुपयोग
करके किया। लेकिन यह जरूरी नहीं होना चाहिए कि राजनीति करने वाला कोई कारोबार नहीं
कर सकता, बल्कि राजनीति में व्यापारी, उद्यमी, किसान और अन्य सभी वर्ग का
प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
क्या है सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट
ने मंगलवार को कुछ सांसदों और विधायकों की संपत्ति में 500 गुना तक की बढ़ोतरी पर सवाल
उठाया कि अगर सांसद और विधायक ये बता भी दें कि उनकी आय में इतनी तेजी से बढ़ोतरी बिज़नेस
से हुई है, तो सवाल उठता है कि सांसद और विधायक होते हुए कोई बिज़नेस कैसे कर सकते
हैं? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अब वक्त आ गया है ये सोचने का कि भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ
कैसे जांच हो और तेजी से फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने
केंद्र सरकार से पूछा कि आज से सालों पहले एनएन वोरा की रिपोर्ट आई थी, आपने उस पर
क्या काम किया? समस्या आज जस की तस है. आपने रिपार्ट को लेकर कुछ नहीं किया। सुप्रीम
कोर्ट ने यह भी कहा कि जनता को पता होना चाहिए कि नेताओं की आय क्या है, इसे क्यों
छिपाकर रखा जाए। अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा कि नामांकन के वक्त प्रत्याशी अपनी और अपने
परिवार की आय के स्रोत का खुलासा करे या नहीं। वहीं एक एनजीओ की याचिका पर सुप्रीम
कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
13Sep-2017
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