सोमवार, 11 सितंबर 2017

राग दरबार:डोकलाम पर सकारात्मक चीन



मोदी कूटनीति का असर
भारतीय सियासत में भले ही विपक्ष मोदी सरकार पर निशाने साधता आ रहा हो, लेकिन विपक्ष यह भी महसूस कर रहा है कि भारत-चीन सीमा पर डोकलाम विवाद फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया। मसलन चीन में ब्रिक्स सम्मेलन में शामिल होने से पहले पीएम मोदी ने जिस कूटनीति का इस्तेमाल किया उसकी भविष्यवाणी पहले ही गृहमंत्री राजनाथ सिंह यह कहकर कर चुके थे कि डोकलाम विवाद पर चीन सकारात्मक रूख अपनाएगा और हुआ भी ऐसा ही कि ब्रिक्स सम्मेलन यानि पीएम मोदी की यात्रा से पहले डोकलाम से अडियल रवैया अपनाते आ रहे चीन ने भी अपनी सेनाएं वापस कर ली ,जिसे पीएम मोदी की विदेशी कूटनीतिक असर माना जा रहा है। विशेषज्ञों की माने तो इस मामले पर चुप्पी साधे विपक्ष भी मोदी सरकार की कूटनीति को समझ रहा है, क्योंकि भारत की इस कूटनीति का असर ब्रिक्स सम्मेलन में भी नजर आया जहां भारत ने पाकिस्तान के प्रायोजित आतंकवाद के मुद्दे को ठीक उसी तरह विश्व के सामने रखा जिस प्रकार भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के खिलाफ अपना पक्ष पेश करके आतंकवाद को प्रोत्साहन देने वाले देशों को झटका दिया है।
उमा की अपनी महिमा
एक फिल्मी गीत kमेरा तो हर कदम है तेरी राह में, तू कहीं भी रहे तू है मेरी निगाह मेंl को गुनगुनाते हुए पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्टों में से एक नमामि गंगे मिशन से सुश्री उमा भारती अलग होने को तैयार नहीं है।  तीन साल तक नमामि गंगे कार्यक्रम में जुटी रही सुश्री उमा भारती को मंत्रिमंडल के फेरबदल के तहत जल संसाधन व गंगा संरक्षण मंत्रालय से हटाकर भले ही पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री बना दिया गया हो, लेकिन वह अगले माह से गंगा सागर से हरिद्वार तक की गंगा पदयात्रा करने का ऐलान कर नमामि गंगे की विफलता स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, बल्कि कहती हैं कि यदि वह काम न करती तो उन्हें पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय क्यों मिलता? जिसमें वे लोगों को गंगा की स्वच्छता एवं निर्मलता को लेकर जागरूक करेंगी। इस योजना में दो बार पीएम की डांट को स्वीकार कर उमा पीएम से नाराजगी होने से इंकार कर रही हैं, बल्कि उनका आभार जताते हुए उन्हें गुरू मानकर कहती हैं कि वह गंगा से अलग नहीं हुई हैं और कोई अलग कर भी नहीं सकता। कुछ राजनीतिक जानकार यह भी मानते हैं कि फायर ब्रांड रही उमा भारती को चाहते हुए भी मंत्रिमंडल से दूर नहीं किया गया, वरना वह सरकार और पार्टी के लिए मुश्किल बन जाती।
नौकरशाहों की काबलियत
मोदी मंत्रिमंडल में विस्तार में नौकरशाहों को सौंपी गई कुर्सी को लेकर सवाल खड़ा करने का कोई मायने नहीं है, वह भी खासकर वह दल जो दस साल केंद्र की सत्ता में राजनेताओं को दरकिनार करके प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर एक नौकरशाह को आसीन रखा। अब वही दल मोदी मंत्रिमंडल में चार नौकरशाहों को शामिल किए जाने का स्यापा कर रहे हैं। सियासी गलियारों में कांग्रेस के मोदी पर निशाना साधने को लेकर चर्चा है कि कांग्रेस के इसी रवैये से जनता के बीच उसकी विश्वसनीयता गर्त की ओर रूख कर चुकी है और यदि मोदी का विरोध करना है तो पहले नेता, नीति और कार्यक्रम के साथ विपक्षी दलों को सामने आना चाहिए, वरना काबलियत रखने वाले नौकरशाहों को सरकार का हिस्सा बनने के मायने समझने चाहिए। सही मायनों में आम जनता से सरकार से अधिक ऐसे नौकरशाह ही नौकरी के दौरान स्पर्श में रहते हैं। इसमे भी कोई दो राय नहीं कि नौकरशाहों का बुद्धिस्तर कम कर आंका जाए।
सक्रिय होती मोदी टीम
पीएम मोदी ने तीन साल के कार्यकाल पूरा करने के बाद अपने मंत्रिमंडल में जिस तरह से व्यापक फेरबदल किया है, उसके पीछे पीएम नरेन्द्र मोदी के दिए गये मंत्र के तहत ही शायद मंत्रिमंडल के सदस्य भी सक्रिय नजर आ रहे हैं और अपने-अपने मंत्रालयों में तेजी के साथ कार्यवाही करने को मजबूर हैं। मोदी टीम में जिस प्रकार से संतुलन बनाने का प्रयास नजर आ रहा है उसमें केंद्र सरकार की देश के विकास और न्यू इंडिया के मिशन के मद्देनजर तमाम मंत्रालय का काम काज तेजी पकड़ता दिखने लगा है। जानकारों की माने तो काम के विभागों में हुए फेरबदल से मंत्री और नौकरशाह भी महसूस कर रहे हैं कि कामचोरी का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है इसलिए सरकार की रणनीति के तहत कार्यशैली के प्रवाह को आगे बढ़ाया जाए।
10Sep-2017


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