आईआईएस बंगलौर
देगा तकनीकी मदद
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश में
गिरते भूजल की समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने तकनीकी प्रणाली को बढ़ावा
देने का निर्णय लिया है। इसके लिए केंद्रीय भूजल परिषद अलग-अलग क्षेत्रों में
तकनीकी मदद के लिए वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थानों के साथ समझौता कर रही है।
केंद्रीय
जल संसाधान मंत्रालय के अनुसार देश में तेजी से गिरते भूजल स्तर को सुधारने के लिए
बनाई गई एक मेगा योजना में जहां भूजल तथा वर्षा जल संचय को कृत्रिम रूप से रि-चार्ज
कराने जैसे कार्यो को बढ़ावा दिया जा रहा है, वहीं इस योजना के तहत तैयार किये मास्टर
प्लान का अध्ययन करने के लिए सचिव स्तर के विशेषज्ञ अधिकारियों की समिति गठित की
जा चुकी है। केंद्रीय जल आयोग ने भू-जल विज्ञानिकों और विशेषज्ञों के साथ मिलकर भारत
में भू-जल स्तर को सुधारने के लिए वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थानों के साथ मिलकर
काम करने पर जो दिया है। इसी दिशा में शुक्रवार को कर्नाटक के कुछ हिस्सों में भू-जल
प्रवाह के विकास तथा भू-जल प्रवाह प्रबन्धन को लेकर जल संसाधन मंत्रालय के अधीन केन्द्रीय
भूजल परिषद ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलौर के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर
किये हैं। सहमति पत्र पर सीजीडब्ल्यूबी के सदस्य डा. दीपांकर साहा तथा इंडियन इंस्टीट्यूट
ऑफ साइंस के रजिस्ट्रार प्रो. वी. राजराजन ने हस्ताक्षर किए।
दो माह में आएगी प्रारंभिक रिपोर्ट
मंत्रालय
ने इस करार के बारे में कहा कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस भू-जल प्रवाह प्रबन्धन
के सबंध में अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट और अंतिम विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। वहीं
सहमति पत्र के हस्ताक्षर होने के दो महीने के भीतर प्रारंभिक रिपोर्ट जमा करनी है।
अध्ययन के दौरान कार्यक्षेत्र, कार्य प्रारूप, समयावधि आदि का स्पष्ट उल्लेख करते
हुए संस्थान प्रारंभिक रिपोर्ट में कार्य योजना की विस्तृत रिपोर्ट होगी। जबकि अंतिम
रिपोर्ट में सारांश, परिचय, आंकड़ों की समीक्षात्मक रिपोर्ट, हाइड्रो ज्योलोजिकल जानकारी,
भू-जल प्रणाली का विभिन्न स्थितियों में प्रतिक्रिया, प्रखंड आधारित प्रबंधन योजना,
प्रखंड आधारित प्रबंधन योजना का प्रभाव आदि पर विस्तृत जानकारी प्रदान की जाएगी।
विस्तृत क्षेत्र का होगा अध्ययन
मंत्रालय
ऐसे गणितीय प्रारूप को जल प्रवाह स्तर मापने तथा प्रबन्ध कार्यक्रम के मकसद से विकसित
कर रहा है, ताकि भू-जल की वर्तमान स्थिति को बेहतर ढंग से सामने आ सके। इस
वैज्ञानिक व तकनीक प्रणाली से भविष्य में किन क्षेत्रों में भू-जल का स्तर अत्यधिक
कम हो सकता है की जानकारी भी मिलेगी। इस करार के तहत होने वाले अध्ययन में 48 हजार
वर्ग किमी के क्षेत्र को शामिल होगा, जिसमें कर्नाटक के चिकबल्लापुर और कोलार जिले
आते हैं तथा बगलकोट, बंगलौर ग्रामीण, बेलगाम, बेल्लारी, चित्रदुर्ग, देवनगिरी, गदग,
गुलबर्गा और यदगिर जिलों के कुछ हिस्से शामिल हैं।
09Sep-2017
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें