सोमवार, 26 जून 2017

कानूनी दायरे में होगी बाधों की सुरक्षा!

संसद में जल्द पेश किया जाएगा ‘बांध सुरक्षा विधेयक ’                                            
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने बांधों की सुरक्षा और खस्ता हाल बांधों के कारण आपदाओं को रोकने की दिशा में इसे कानूनी दायरे में लाने की कवायद तेज कर दी है, जिसके लिए एक मजबूत कानूनी ढांचे के लिए बांध सुरक्षा विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है और जल्द ही केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी लेकर संसद में पेश किया जाएगा।
केंद्र सरकार नदियों से जुड़े मुद्दों में देशभर में खस्ता हाल बांधों के खतरों की आशंकाओं से निपटने की भी योजना बना रही है, जिसमें बांधों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने कानूनी प्रावधान के लिए एक बांध सुरक्षा विधेयक का मसौदा तैयार किया है। मसौदे पर राज्यों के सुझाव और विशेषज्ञों की राय भी ले ली गई है, जिसे जल्द ही केंद्रीय कैबिनेट के समक्ष लाया जाएगा और मंजूरी लेकर इसे संसद में पेश किया जाएगा। मंत्रालय के अनुसार मोदी सरकार ने देशभर के बांधों की सुरक्षा को प्राथमिकता पर लेते हुए उन्हें कानूनी दायरे में लाने के साथ ही एक ‘बांध पुनर्वास एवं सुधार परियोजना’ यानि डीआरआईपी की शुरूआत की है, ताकि बांधों की सुरक्षा और प्रचालन संबंधी दक्षता सुनिश्चित की जा सके। मंत्रालय की यह परियोजना विश्व बैंक से प्राप्त ऋण सहायता से सात राज्यों में लगभग 250 बांधों की स्थिति में सुधार लाने के लिए शुरू की गई है। वहीं केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने ‘बांध पुनर्वास एवं सुधार परियोजना’ के तहत बदहाल बांधों को पुनर्वास के लिए तकनीकी सहायता हेतु केंद्रीय जल आयोग ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास एवं भारतीय विज्ञान संस्थान बंगलूरू के साथ करार किया है, ताकि वे बांध सुरक्षा से संबंधित प्रशिक्षण एवं सलाहकार सेवाएं उपलबध करा सकें।
बदहाल हैं 80 फीसदी बांध
केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती का बांध सुरक्षा विधेयक के जरिए कानूनी ढांचा मजबूत करने के बारे में तर्क है कि देश में 5200 से भी ज्यादा बांध हैं और उनमें से 80 फीसदी बांध 25 से 50 साल से भी ज्यादा पुराने हैं, जिनकी खस्ता हालत के कारण बाढ़ और भूकंप जैसी आपदा के खतरे की आशंकाएं बनी रहती है। इनके पुराने प्रचलित डिजाइन की कार्यप्रणालियां और सुरक्षा की स्थितियां भी डिजाइन के वर्तमान मानकों और सुरक्षा मानदंडों से मेल नहीं खा रही हैं। बांधों के आकलन और सर्वे के तहत नींव की अभियांत्रिकी संबंधी सामग्री अथवा बांधों का निर्माण में उपयोग की गयी सामग्री भी समय के साथ नष्ट होने के कगार पर है। ऐसी स्थिति में बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा उनकी प्रचालन संबंधी विश्वसनीयता बहाल करने के लिए विधेयक के जरिए कानूनी प्रावधानों को मजबूत करना आवश्यक है।
जयललिता ने किया था विरोध
सूत्रों की माने तो केंद्र के प्रस्तावित बांध सुरक्षा विधेयक के मसौदे पर राज्यों की राय और सुझाव के लिए राज्यों को भेजा गया था, तो उस समय तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. जयललिता ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर बांध सुरक्षा विधेयक के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया था। उनका तर्क था कि राज्य सरकारों के पास बांधों की सुरक्षा से संबन्धित पर्याप्त दक्षता और अनुभव है और दूसरी और केंद्रीय जल आयोग भी बांधों से जुड़े पहलुओं की निगरानी करता है। ऐसे में बांधों के लिए इस मुद्दे पर केंद्र के किसी खास कानून की जरूरत नहीं है। 
27June-2017

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