रविवार, 11 जून 2017

गंगा के कायाकल्प में प्रदूषण बड़ी चुनौती


 उमा ने मांगा आध्यात्मिक संस्थानों से सहयोग
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘नमामि गंगे’ मिशन की चलाई जा रही परियोजनाओं में प्रदूषण को बड़ी चुनौती करार देते हुए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने गंगा के कायाकल्प के लिए आध्यात्मिक संस्थानोंऔर संगठनों का सहयोग मांगा है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार नमामि गंगे परियोजनाओं के लिए गंगा सागर से गंगोत्री तक चल रही परियोजनाओं की प्रगति का जायजा लेने के लिए गंगा निरीक्षण अभियान की यात्रा के तहत उमा भारती उत्तराखंड पहुंची हैं, जहां ने ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन में हितधारकों के साथ एक सम्मेलन में कहा कि गंगा की धारा को अविरल करनके कलए घाटों को साफ रखने के प्रति जागरूकता जरूरी है। चूंकि गंगा सागर से लेकर हरिद्वार तक गंगा नदी का जल जीवन रेखा से जुड़ा है। उन्होंने कहा कि लोगों की सहभागिता के बिना इस अभियान के लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि उन्होंने नमामि गंगे को जनांदोलन के रूप मे आगे बढ़ाते हुए गंगा किनारे गांवों और पंचायतों को भी हितधारकों में शामिल किया है। गंगा प्रदूषण पर चिंता जाहिर करते हुए सुश्री भारती ने आग्रह किया कि गंगा नदी के किनारे कपड़े धोने और ठोस या तरल कचरे को डंप करने जैसी प्रथाओं को समाप्त करने के लिए लोगों को अपनी सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए।
दस साल में आएगा नतीजा
केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने कहा कि नमामि गंगे के तहत गंगा स्वच्छता के लिए किए जा रहे कार्यों का असर वर्ष 2018 तक नजर आने लगेगा। उन्होंने कहा कि पहले नमामि गंगे का पंजीकरण एक सोसाइटी के रूप में किया गया था, जो अब अथॉरिटी बना दी गई है। इससे नमामि गंगे को निर्णय लेने के साथ पर्यावरण संरक्षण अधिनियम की शक्ति भी मिल गई है। निर्मल गंगा के लिए औद्योगिक इकाइयों के अवशिष्ट को रोकना सबसे बड़ी चुनौती है। इसके लिए चार हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाने हैं। उन्होंने कहा कि पहले पुराने ट्रीटमेंट प्लांटों को दुरुस्त कर उनकी क्षमता बढ़ाई जा रही है। इसके साथ ही नए ट्रीटमेंट प्लांट के निर्माण व गंगा में मिलने वाले दूषित नालों को टेप करने का रोडमैप भी तैयार किया जा चुका है।

जलीय जीवों पर संकट
गंगा प्रदूषण पर चिंता जाहिर करते हुए केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने कहा कि गंगा में प्रदूषण बढ़ने के कारण ही जलीय जीव भी संकट में हैं। गोल्ड फिश, महासीर, हिल्सा जैसी मछलियों के अलावा कछुओं की विभिन्न प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर पहुंच रही हैं। उमा ने कहा कि इन्हें बचाने के लिए नमामि गंगे परियोजना के तहत पायलेटप्रोजक्ट पर पर काम किया जा रहा है, जिसके लिए अभयारण्य विकसित किए जाएंगे। उन्होंने कहा कि गंगा की निर्मलता किसी प्रयोगशाला के प्रमाण पत्र से नहीं, बल्कि जैव विविधता की संपन्नता से आंकी जाएगी।
11JUne-2017

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