सरकार खत्म
नहीं कर सकी छत्तीसगढ़ व ओड़िशा का तकरार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
छत्तीसगढ़
और ओड़िशा के बीच महानदी के बीच चल रहे जल विवाद का केंद्र सरकार के सभी प्रयास सिरे
नहीं चढ़ पाए हैं। मसलन इसके लिए गठित की गई विशेषज्ञ समितियां भी राज्यों की असहयोग
नीति के कारण किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकी हैं। अब ऐसी प्रबल संभावनाएं बढ़ गई हैं
कि महानदी का विवाद के लिए एक टि्ब्यूनल बनाया जाएगा, जिसके लिए ओड़िशा सरकार पहले
से ही सुप्रीम कोर्ट से भी मांग कर चुकी है।
केंद्र सरकार
ने महानदी के जल बंटवारे पर छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के बीच चल रहे तकरार को खत्म करने
के प्रयास किये, लेकिन ओड़िशा सरकार के आरंभ से ही रहे अड़ियल रवैये के कारण नदी विवादों
पर गठित की गई समितियों की जांच और हल निकालने के लिये की गई सभी कवायद सिरे नहीं चढ़
सकी। नतीजन अब महानदी विवाद के लिए ट्रिब्यूनल गठन के अलावा कोई
रास्ता नहीं
है, जिसके लिये सरकार और समितयों के विचार विमर्श जैसी औपचारिकताएं भी पूरी हो चुकी
है। दरअसल पिछले साल महानदी का मुद्दा संसद में उठने के बाद केंद्रीय जल संसाधन मंत्री
ने इस मामले को लेकर गंभीरता से लेकर छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के इस विवाद का समाधान निकालने
के लिए दोनो राज्यों के मुख्यमंत्रियों और प्रमुख सचिवों के अलावा संबन्धित अधिकारियों
की एक नहीं, बल्कि कई बैठके की, जिसमें खुद केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने भी दोनों
राज्यों के बीच विवाद के मुद्दों का हल निकालने के प्रयास में पहल की। सरकार के साथ
हुई बैठकों के दौरान ओड़ीशा सरकार लगातार महानदी विवाद पर ट्रिब्यूनल बनाने की मांग
पर अड़िग रहा, जिसने सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले पर ट्रिब्यूनल बनाने की मांग की
हुई है। शायद इसके रास्ते को साफ करने के लिए सरकार ने कई समितियां बनाकर नदियों के
विवादित मुद्दो पर विशेषज्ञों की जांच और विचार करने की औपचारिकताओं को आगे बढ़ाया।
अब एक समिति की रिपोर्ट मिलते ही सरकार ट्रिब्यूनल के रास्ते का इस्तेमाल करेगी?
समिति जल्द सौंपेगी रिपोर्ट
महानदी के
मुद्दे पर गठित इस समिति के अध्यक्ष एसएम मसूद ने हरिभूमि को बताया कि महानदी बेसिन
के जल के उपयोग के संबंध में आईएसआरडब्ल्यूडी अधिनियम-1956 की धारा 3 के तहत बनाई
गई इस समिति में ओडिशा राज्य की शिकायत के संदर्भ को भी शामिल किया गया। समिति की पहली
बैठक 28 फरवरी को हुई, जिसमें ओड़िशा सरकार के प्रतिनिधि नदारद रहे। जबकि 22 मई को
हुई दूसरी बैठक में छत्तीसगढ़ और ओड़िशा दोनों राज्यों की ही सरकार ने हिस्सा नहीं
लिया। मसूद के अनुसार हालांकि समिति को अपनी रिपोर्ट तीन माह के भीतर सौंपने को कहा
गया था, लेकिन खासकर ओड़ीशा सरकार की असहयोग नीति और बाद में छत्तीसगढ़ सरकार की भी
समिति में दिलचस्पी न होने के कारण इस विवाद में कोई खास नतीजा सामने नहीं है। ओड़िशा
सरकार का तर्क रहा कि वह इस विवाद के लिए पहले ही सरकार और सुप्रीम कोर्ट को ट्रिब्यूनल
बनाने की मांग कर चुका है। जबकि छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से महानदी पर शुरू की गई परियोजनाओं
से संबन्धित जानकारियां केंद्र और समिति को मुहैया कराई हैं, लेकिन ओड़शा सरकार का
कोई सहयोग नहीं मिल सका है। ऐसे में अब समिति की रिपोर्ट अंतिम चरण में है, जिसे संभवत:
अगले सप्ताह केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय को सौंपा दिया जाएगा।
पांच राज्यों के लिए बनी थी समिति
मंत्रालय के
अनुसार महानदी विवाद पर केंद्रीय मंत्री उमा भारती ने महानदी और इसकी सहायक नदियों
के जल की उपलब्धता एवं उपयोग का आकलन करने के लिए पांच राज्यों ओडिशा, छत्तीसगढ़,
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड के अधिकारियों को शामिल करते हुए केंद्रीय जल आयोग
के एसएम मसूद की अध्यक्षता में एक 12 सदस्यीय विचार-विमर्श समिति का गठन किया किया,
जिसमें मंत्रालय के अधिकारियों के अलावा केंद्रीय कृषि, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन
मंत्रालय, भारतीय मौसम विभाग भी शामिल रहे। समिति महानदी से संबंधित मौजूदा जल बंटवारा
समझौतों पर भी गौर करते हुए इन नदियों के जल की उपलब्धता एवं उपयोग के संबंध में इन
सभी पांचों राज्यों के दावों पर विचार किया।
संसद में लंबित विधेयक
देश में कई
राज्यों के बीच चल रहे ऐसे नदी जल विवादों का हल निकालने की दिशा में केंद्रीय जल संसाधन
मंत्री सुश्री उमा भारती ने संसद के बजट सत्र के दौरान 14 मार्च को अंतर्राज्यीय नदी
जल विवाद (संशोधन) विधेयक भी लोक सभा में पेश किया था, जो अभी संसद में लंबित है। इस
विधेयक में अंतर्राज्यीय जल विवाद निपटारों के लिए अलग अलग अधिकरणों की जगह एक स्थायी
अधिकरण (विभिन्न पीठों के साथ) की व्यवस्था करने का प्रस्ताव किया गया है। विधेयक के
प्रावधानों में जल विवादों के निर्णय समयवधि भी तय की गई है और ट्रिब्यूनल यानि अधिकरण
की पीठ का निर्णय अंतिम और संबंधित राज्यों पर बाध्यकारी करने का प्रावधान है।
19June-2017
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