रविवार, 2 अगस्त 2020

राग दरबार: दिल्ली से परहेज!/गफलत में बसपा


राग दरबार

दिल्ली से परहेज!
देश में मोदी सरकार का जिस प्रकार नौकरशाहों पर काम करने का दबाव बढ़ रहा है और कामजोर नौकरशाहों पर शिकंजा कसा हुआ है, शायद उसकी की वजह से अब राज्यों के अधिकारियों का प्रतिनियुक्ति पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के केंद्रीय मंत्रालयों या विभागों में आने की इच्छाशक्ति में बेहद कमी आई है। मसलन अब राज्यों से कोई अधिकारी डेपुटेशन पर दिल्ली नहीं आने को तैयार नहीं है? हालांकि मोदी सरकार राज्यों में काबिल अधिकारियों को केंद्रीय कार्यालयों में तैनात करने पर जोर रही है। दरअसल दिल्ली में केंद्र सरकार के अधिकारियों के कामकाज और मौजूदा सरकार के साथ उनके तालमेल को लेकर कुछ जैसी खबरें राज्यों के अधिकारियों तक पहुंच रही हैं, उसी की वजह से राज्यों के अधिकारी दिल्ली से परहेज करते हुए आने से कतरा रहे हैं। ऐसी भी खबरे हैं कि राज्य सरकारें अधिकारियों की कमी का बहाना बना कर प्रतिनियुक्ति के लिए केंद्र को कम से कम नाम भेज रही हैं। यही कारण माना जा रहा है कि केंद्रीय कार्मिक व प्रशिक्षण मंत्रालय ने राज्यों को और अधिकारियों को इस बारे में चेतावनी तक जारी की है। केंद्रीय विभागों में ऐसी चर्चा चल रही है कि सरकार ने नवंबर में राज्यों से दिल्ली आने की इच्छा रखने वाले अधिकारियों के नाम भेजने को कहा था, लेकिन राज्यों से बहुत कम नाम आए। खासतौर से निदेशक स्तर के अधिकारियों के नाम बहुत कम आए हैं। तभी तो चर्चा है कि डीओपीटी ने चिंता जाहिर की है कि कम नाम की वजह से काडर मैनेजमेंट मुश्किल हो रहा है। लेकिन यह सच है कि पहले राज्यों से ज्यादा से ज्यादा अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली आने के लिए सिफारिशें करते थे, लेकिन मोदी सरकार में यह कमाल पहली बार देखने को मिल रहा है कि राज्यों के अधिकारियों का अब दिल्ली से मोह भंग हो रहा है।
गफलत में बसपा
देश की सियासत में कब क्या हो जाए इसके कोई मायने नहीं, लेकिन राजस्थान सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस ने जिस प्रकार से बसपा के छह विधायकों को लेकर बसपा का विलय कांग्रेस में कराया है, उससे बसपा प्रमुख के सामने राजनीतिक संकट खड़ा हो रहा है। हालांकि बहुजन समाज पार्टी ने इस विलय को चुनौती देते हुए दावा किया है कि वह एक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय पार्टी है, इसलिए उसकी प्रदेश ईकाई का किसी दूसरी पार्टी में विलय तब तक नहीं हो सकता है, जब तक राष्ट्रीय ईकाई में विधिवत विभाजन नहीं हो जाएइसी मामले में बसपा ने इस मुद्दे को लेकर राजस्थान हाई कोर्ट में याचिका दायर कर जो दावा किया है, वह देश की सियासत में पहली बार सुनने को मिल रहा है। राजनीतिकारों की माने तो कांग्रेस की प्रदेश ईकाई में कई जगह इस तरह का विभाजन या विलय हुआ है, लेकिन कांग्रेस ने अपने पास कानूनविदों की फौज होते हुए आजतक इस तरह की कभी कोई चुनौती नहीं दी। राजनीतिक हलकों में चर्चा यही है कि बसपा के इस प्रकार के दावे से विवाद ज्यादा गहराया जा सकता है और शायद बसपा इस मुद्दे को लेकर गफलत का शिकार है। शायद इसीलिए कोर्ट ने बसपा की याचिका खारिज की है। कानून के जानकारों की माने तो यदि बसपा की इस याचिका पर कोर्ट सुनवाई भी करती तो क्या दलबदल कानून की व्याख्या वैसी ही होती, जैसी बसपा ने की है। यदि किसी कारण सुनवाई होती तो कई राज्यों में राजनीतिक संकट खड़ा हो सकता था।
02Aug-2020

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