रविवार, 25 जनवरी 2015

राग दरबार

 --ओ.पी. पाल
टूटन के मोड़ पर एकता
आम तौर पर कहावत है कि चतुर लोग दुनिया को अपनी इच्छानुसार चलाने की कोशिश करते हैं और बुद्धिमान लोग स्वयं को दुनिया के अनुकूल बना लेते हैं। ऐसी ही कहावत समाजवादियों के बारे में चरितार्थ होती नजर आ रही है। मसलन मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की हुंकार भरने वाले गैर भाजपाई और गैर कांग्रेसी दलों की एकता बनने से पहले टूटने के कगार पर नजर आ रही है। मसलन समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम की अगुवाई में जनता परिवार के बिछड़े परिवार को एकजुट करने की कवायद संसद के शीतकालीन सत्र से पहले इस मकसद से शुरू हुई थी कि संसद और संसद के बाहर मोदी सरकार के खिलाफ एक सशक्त विपक्ष की भूमिका में एक संयुक्त दल गठित करके दोनों सदनों में संयुक्त नेता का चयन होगा, लेकिन अब शीतकालीन सत्र तो दूर रहा उसके बाद संसद के बजट सत्र भी तय हो चुका है, लेकिन जनता परिवार के एका का दावा खोखले बस्ते में ही पड़ा हुआ है। इस कदम के लिए जो दल एक सम्मेलन करके एका होने का प्रदर्शन कर रहे थे उसमें से भी दो दल इस एकजुटता की चाल को देखकर खिसक गये और दलों को साथ लाने की बात तो दूर की कोड़ी रही। राजनीतिक के गलियारों में अब यही चर्चा आम है कि एक सम्मेलन एका के लिए तो दूसरा झटपट समागम टूटने का होता है। यानि यूं कहा जा सकता है कि सोपा, प्रसोपा से लेकर संसोपा तक बनने की पूरी गाथा समाजवादियों के एका और टूटन को जानने के लिए ही काफी है। दूसरी चर्चा ऐसी भी सार्वजनिक होती नजर आ रही है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले को इस बार भी यूपी और बिहार के समाजवादियों ने एकता की राह पकड़ी, लेकिन सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ने की कहावत दरपेश होती दिखाई दे रही है। यानि मकर संक्रांति पर लालू यादव के दही-चूड़ा भोज की चर्चा एकता को लेकर कम, बिखराव की शुरूआत के तौर पर ज्यादा हुई।
कांग्रेस का सरवाइल दर्द
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के नेताओं का भाजपा की तरफ रूख से ज्यादा कांग्रेस का सरवाइल दर्द ज्यादा बढ़ता नजर आ रहा है। कांग्रेसी ही भाजपा के उस सुर में सुर मिलाते नजर आ रहे हैं जिसके अभियान पर भाजपा का रथ हांका जा रहा है यानि देश को कांग्रेसमुक्त करने के लिए अब भाजपा के साथ कांग्रेस के दिग्गज नेता भी भाजपा व प्रधानमंत्री मोदी की तारीफों के पुल बांधने में पीछे नहीं हैं। दिल्ली के चुनावी ऊंट की बदलती करवट के साथ कांग्रेस की कट्टर नेता श्रीमती कृष्णातीर्थ का समर्थकों के साथ भाजपा का दामन थामना और फिर कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी जैसे हाईकमान के विश्वासपात्र नेताओं में शुमार होने के बावजूद प्रधानमंत्री की तारीफ करना कांग्रेस की मुश्किलों का ही तो सबब कहा जा सकता है। यही नहीं द्विवेदी पर लटकी पार्टी अनुशासन की तलवार के बीच ही कांग्रेस की महिला नेता बरखा सिंह ने तो भाजपा की सीएम उम्मीद्वार किरन बेदी की तारीफ करके कांग्रेस के जख्मोें पर नमक छिडकने जैसा काम कर दिया। ऐसे में चर्चा है कि कहीं ये कांग्रेसी दिग्गज भाजपा का तो रूख नहीं कर रहे हैं?
25Jan-2015

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