सोमवार, 5 जनवरी 2015

बीमारियों के बावजूद बढ़ी लोगों की उम्र!


ढाई दशक में औसतन 7.6 साल बढ़ी जीवन प्रत्याशा
रिपोर्ट: आत्महत्या के मामलों में भारत पूरी दुनिया के बराबर
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
इस आधुनिकता के युग में बढ़ती जरूरतों के साथ लोगों के गले लगती नई-नई बीमारियों के बावजूद पिछले करीब ढ़ाई दशक में
दुनियाभर में लोगों के जीने की औसतन आयु में करीब साढ़े सात साल का इजाफा सामने आया है। खासकर भारत में अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा जीवन प्रत्याशा वृद्धि देखने को मिली है।
अमेरिका की मनुष्यों पर शोध करने वाली एजेंसी की हाल ही में जारी एक रिपोर्ट ने भारत के लोगों को जीवन जीने की शैली का यह संदेश देकर सबक दिया है कि इस शोध में सबसे ज्यादा जीवन प्रत्याशा में वृद्धि करने वाला भारत सबसे आगे हैं, जहां वर्ष 1990 के मुकाबले 2014 तक पुरुषों की औसत आयु में 7.6 साल और महिलाओं की औसत आयु में 10.6 साल की जीवन प्रत्याशा बढ़ी है। हालांकि वर्ष 2013 तक यह क्रमश: सात व 10 साल थी। रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने एक दुखद पहलू यह भी पाया है कि भारत में आत्महत्या के मामलों में बेहताशा बढ़ोत्तरी हुई है। मसलन दुनिया भर में आत्महत्या के कुल मामलों में से 50 प्रतिशत भारत और फिर चीन में सामने आ रहे हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में जहां 1990 में लोगों की औसत आयु 65.3 साल थी, वहीं 2014 में यह बढ़कर करीब औसतन 73 से भी अधिक हो गई है, जो वर्ष 2013 में 72.5 साल थी। अमेरिकी शोधकर्ताओं के मुताबिक लीवर कैंसर और गुर्दे की भयानक बीमारियों के बढ़ने के बावजूद दुनिया भर में लोगों की इस औसत आयु में बढ़ोतरी होती जा रही है। इन करीब ढाई दशक के बीच दुनिया भर में लोगों की आयु में करीब 7.5 साल की औसत उम्र बढ़ी हैं, जिसमें पुरुषों की जीवन प्रत्याशा औसतन 6.8 साल जबकि महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 7.6 साल बढ़ गई है। वर्ष 2013 के मुकाबले यह एक साल और बढ़ी है। शोधकर्ताओं ने इस औसत आयु के बढ़ने के पीछे तर्क दिया है कि बीमारियों के प्रति जागरूता के कारण कैंसर और एड्स जैसी लाइलाज बीमारियों से मरने वालों की संख्या तेजी से कम हुई है।
प्रयासों से कम हुई मौतें
शोध रिपोर्ट में स्वास्थ्य पत्रिका लैंसेंट में छपी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि दुनिया के अमीर इलाकों में कैंसर से होने वाली मौतों में 15 फीसदी और हृदय संबंधी रोगों से होने वाली मौतों में 22 फीसदी कमी हुई है। इस स्वास्थ्य रिपोर्ट के मुताबिक आर्थिक रूप से कमजोर इलाकों में इसका श्रेय डायरिया, श्वास रोग और नवजातों की बीमारियों में आई कमी को भी दिया जाता है। हालांकि अफ्रीका में लोगों की जीवन प्रत्याशा में ऐसा नहीं हुआ है। इसका कारण वहां एचआईवी और एड्स के लगातार बढ़ रहे मामलों के कारण जीवन प्रत्याशा में गिरावट दर्ज की गई है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में वैश्विक स्वास्थ्य के प्रोफेसर डॉक्टर क्रिस्टोफर मरे के तर्क का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि  सभी देशों की सरकारों द्वारा डायरिया, चेचक, टीबी, मलेरिया और एचआईवी/एड्स जैसी बीमारियों से लड़ने के लिए दी जा रही आर्थिक मदद ने भी लोगों के जीवन को लंबा बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
इन देशों में बढ़ा बीमारियों का जंजाल
इस शोध रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि कई जानलेवा बीमारियों से मौत के मामलों में बढ़ोतरी भी हुई है, जैसे हिपेटाइटिस सी के कारण होने वाला लीवर कैंसर 1990 के मुकाबले अब तक 125 फीसदी बढ़ चुका है। इसके अलावा किडनी की समस्याओं में 37 फीसदी वृद्दि हुई है, डायबिटीज 9 फीसदी और आंतों के कैंसर के मामले 7 फीसदी बढ़े हैं। बीमारियों के वैश्विक बोझ के बारे में शोध रिपोर्ट में पाया गया कि कम आमदनी वाले देशों जैसे नेपाल, रवांडा, इथियोपिया, नाइजीरिया, मालदीव और ईरान में पिछले 24 सालों में इन भयानक बीमारियों ने खूब पैर पसारे हैं।

 05Jan-2015

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