मंगलवार, 27 जनवरी 2015

तीन स्मार्ट सिटी के विकास को समझौता

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली. भारत ने अजमेर, इलाहाबाद और विशाखापत्तनम में तीन स्मार्ट सिटी के विकास के लिए आज अमेरिका के साथ तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किए । सरकार का कहना है कि समझौतों से देश में इस तरह के शहरों के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा। अमेरिकी व्यापार एवं विकास एजेंसी (यूएसटीडीए) और उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं आंध्र प्रदेश की सरकारों ने केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू की मौजूदगी में इन समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इस मौके पर नायडू ने कहा कि सहमति ज्ञापनों पर हस्ताक्षर से भारत और अमेरिका के बीच सहयोग ने एक नया आयाम हासिल किया है और इससे स्मार्ट सिटी के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा। यूएसटीडीए से जरूरी व्यवहार्यता अध्ययन एवं प्रारंभिक चीजों, अध्ययन दौरे, कार्यशाला या प्रशिक्षण एवं परस्पर निर्धारित की जाने वाली परियोजनाओं के लिए धन संबंधी योगदान मिलेगा। इससे स्मार्ट सिटी के लिए स्मार्ट साधन मिलने में मदद मिलेगी और स्मार्ट सिटी के विकास में मदद के लिए सलाह सेवाओं के लिए धन मिलेगा।
नए आसमान पर होंगे भारत-अमेरिका संबंध!
भारत की यात्रा पर आए अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा महज गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि ही नहीं हैं, बल्कि मोदी सरकार की कूटनीतिक में सामरिक और आर्थिक मोर्चे पर भी भारत और अमेरिका के संबन्धों को नई ऊंचाई तक ले जाने की है, जिसमें छह साल से अटके परमाणु समझौते के दो बड़े मुद्दों को सुलझाना भारत सरकार की उपलब्धियों से कम नहीं है। ऐसी राय ओबामा की भारत यात्रा पर विशेषज्ञों द्वारा किये जा रहे मंथन से भी सामने आ रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के बीच रविवार को हुई द्विपक्षीय वार्ता के दौरान भले ही मेहमान को प्रधानमंत्री मोदी ने ओबामा को स्वयं चाय बनाकर पिलाई हो, लेकिन मोदी की इस सादगी भरी मेहमाननवाजी का भारत और अमेरिका के रिश्तों की जड़े कितनी मजबूत होंगी, यही भारत सरकार की विदेश व कूटनीति में समाहित है। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के ऐतिहासिक भारत दौरे पर ऑब्र्जवर रिसर्च फाउंडेशन और कुछ टीवे चैनलों पर दोनों देशों के बीच होने वाली संभावित बातचीत व समझौतों पर विशेषज्ञ भी मंथन करने में जुटे हैं, जिनकी राय से यही बाते निकलकर आ रही हैं कि ओबामा का यह दौरा दोनों देशों के संबन्धों को नएं आसमान को छू लेगा और शुरूआती बातचीत में खासकर परमाणु समझौते पर बढ़े कदम के अलावा ऊर्जा व रक्षा क्षेत्र के साथ समुद्री सुरक्षा तथा व्यापारिक से कहीं बढ़कर वैश्विक खतरा बने आतंकवाद पर साथ-साथ आने की सहमति इन संकेतों को मजबूती भी दे गये हैं। विशेषज्ञों के इस मंथन में भारत के रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ सी राजमोहन का स्पष्ट मानना है कि भारत और अमेरिका के संबंध पिछले 10 साल में काफी आगे बढ़ चुके हैं, लेकिन यूपीए सरकार में इन संबंधों को लेकर एक दुविधा भी थी, लेकिन मोदी सरकार में यह दुविधा खत्म होती दिखने लगी है।
अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के पूर्व अधिकारी रहे विक्रम सिंह ने तो यहां तक कहा कि भारत-अमेरिका व्यापार हाल के समय में बहुत तेजी से बढ़कर 10 बिलियन यूएस डॉलर तक पहुंच गया है और अमेरिका भारत को सुरक्षा उपकरण निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश बनना एक बड़ा सकारात्मक संकेत है। पूर्व भारतीय राजदूत राकेश सूद का कहना है कि भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने की बड़ी पहल अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगे बढ़ाकर भारत-अमेरिका संबंध को नई बुलंदी देने की पहल कर दी है तो स्वाभाविक सहयोगी में तब्दील कर दिया। उन्होंने कहा कि नागरिक परमाणु सहयोग के क्षेत्र में ये दोस्ती अहम साबित होगी। इनके अलावा भारत के रणनीतिक मामलों के विशेषज्ञ और बीसीआईयू के पीटर तिकांसु और रिक रोसो ने भविष्य की उम्मीदों, संदेह और भारत-अमेरिका के संबंधों पर अपनी राय में माना है कि रणनीतिक साझेदारी, पाकिस्तान, रक्षा और तकनीक, व्यापार, वाणिज्य और जलवायु परिवर्तन पर अमेरिका वा भारत प्रगाढ़ रणनीतियों और सहयोगी नीतियों पर एकजुट होकर दुनिया को चौंका सकते हैं। विशेषज्ञ तो यह भी मान रहे हैं कि चाय के बहाने नरेन्द्र मोदी कई निशाने साध गये और पूरे देश समेत दिल्ली की जनता के सामने अपनी अंतराष्ट्रीय नेता की छवि गढ़ना चाह रहे हैं। दरअसल नरेन्द्र मोदी दुनिया के सबसे मजबूत नेता के साथ अपनी अनौपचारिक रिश्ते को दशार्ने का कोई मौका नहीं छोड़ना नहीं चाहते और निश्चत रूप से इस सादगी व कूटनीति से मोदी अमेरिका से काफी कुछ हासिल कर सकते हैं।
चीन व पाक भी चौकन्ना
भारतीय विशेषज्ञों की माने तो अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत की ऐतिहासिक यात्रा से चीन भी चौंकता नजर आ रहा है, जो इस यात्रा के आने वाले निष्कर्ष पर गिद्ध सी नजर गड़ाए हुए है। जबकि पाकिस्तान ओबामा की भारत यात्रा को लेकर पहले से ही चिंतित है। दरअसल इन पडोसी देशों के मन में ऐसे सवाल कौंध रहे है कि ओबामा की इस यात्रा से चीन या पाकिस्तान पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। जाहिर सी बात है कि आतंकवाद पर अमेरिका व भारत के सख्त रूख में यदि बात आई तो दूर तक जाएगी। आतंकवाद को शह दे रहे पाकिस्तान की यही चिंता है। जबकि चीन के जहन में ऐसा सवाल भी कि क्या ओबामा का भारत दौरा चीन के बढ़ते प्रभाव पर नियंत्रण पाने की अमेरिकी रणनीति का हिस्सा तो नहीं है। वैसे भी अमेरिका की दृष्टि से भारत, चीन पर नियंत्रण पाने एवं हिंद महासागर में रेशम मार्ग(सिल्क रूट) पर जोर डालने के चीन के कदम को संतुलित करने की अमेरिका की तथाकथित हिंद-प्रशांत रणनीति के लिए अहम है।
26Jan-2015

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