मंगलवार, 6 जनवरी 2015

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर बिफरी भाकियू !

सात जनवरी से देश व्यापी आंदोलन का किया ऐलान
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
अरसे से किसानों के हितों के लिए संघर्ष करती आ रही भारतीय किसान यूनियन को भी मोदी सरकार द्वारा संशोधनों के बाद लाये गये भूमि अधिग्रहण अध्यादेश रास नहीं आया है। भाकियू ने इस अध्यादेश को कार्पोरेट को किसानों की लूट को छूट देने वाला करार देते हुए सात जनवरी को देश व्यापी आंदोलन करने का ऐलान किया है।
भारतीय किसान यूनियन ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को रद्द कराने हेतु सात जनवरी से देशव्यापी आन्दोलन की शुरूआत उत्तर प्रदेश के जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन से करने का ऐलान किया है। भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने हरिभूमि से बातचीत करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में उचित मुआवजे का अधिकार एवं पुनर्स्थापना अधिनियम-2013 में किसानों के पक्ष के सभी प्रावधानों को संशोधित कर अध्यादेश जारी करके मौजूदा कानूनों को 1894 के अंगे्रजी कानून से भी बदत्तर बना दिया है, इसलिए भाकियू की किसानों के हित में मांग है कि सरकार इस अध्यादेश को वापस ले, जिसमें स्पष्ट है कि कार्पोरेट को किसानों की लूट को करने की छूट दी गई है। उन्होंने कहा कि देश के विभिन्न राज्यों में भूमि अधिग्रहण के विरोध में हिंसक आन्दोलन और
सैकड़ों किसानों की कुबार्नी के दबाव में दो साल तक व्यापक बहस के बाद पिछली सरकार ने भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव किया था। यही नहीं कई राज्यों में तो भूमि अधिग्रहण के आन्दोलन से सरकार भी बदल गई थी। राकेश टिकैत का कहना है कि यह अध्यादेश ठीक वैसा है जैसा कि अंग्रेजी हकूमत वाला भूमि अधिग्रहण कानून-1894 में कानूनों के बल पर किसानों की जमीनें सस्ते में खरीद कर उद्योगपतियों को देने की मान्यता देता था। उन्होंने कहा कि 16 से 18 जनवरी 2015 तक इलाहाबाद में भाकियू के वार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन में भारतीय किसान यूनियन भूमि अधिग्रहण बिल, फसलों का लाभकारी मूल्य, देश में रॉ शुगर के आयात पर प्रतिबंध व विश्व व्यापार संगठन के विरोध में आन्दोलन की बडी रणनीति की घोषणा करेगी।
इन प्रावधानों पर है ऐतराज
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के जरिए लागू किये गये संशोधनों से सामने आए कई प्रावधानों पर भाकियू ने सख्त ऐतराज जताया है। अध्यादेश में पीपीपी प्रोजेक्ट के लिए 70 प्रतिशत तथा निजी कम्पनियों के लिए 80 प्रतिशत प्रभावित किसानों की सहमति की अनिवार्यता के प्रावधान को समाप्त किसानों के नुकसान का सौदा है। वहीं सामाजिक प्रभाव अध्ययन की अनिवार्यता न्यूनतम बहुफसली खेती की जमीन के अधिग्रहण करने के प्रावधान को समाप्त करने तथा धारा 24(2) में पांच वर्ष की समय सीमा समाप्त करने से विकास के नाम पर जमीन की लूट को कानूनन मान्यता देने पर भी आपत्ति जताई जा रही है। पांच वर्ष के अंदर यदि अधिग्रहित भूमि का उपयोग नहीं होता है, तो उसे मूल मालिक को लौटाने का प्रावधान भी समाप्त करना भी उचित नहीं है। टिकैत का कहना है कि इसी प्रकार सेक्शन 10ए में संशोधन कर सरकार ने खुद को नये कानून को लागू करने में पैदा होने वाली किसी भी कठिनाई को हटाने के लिए नोटीफिकेशन जारी करने की समय सीमा को दो से बढ़ाकर 5 साल कर लिया गया है ताकि किसानों की जमीन की लूट आसान बनी रहे।
06Jan-2015

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