सोमवार, 12 जनवरी 2015

नक्सल प्रभावित राज्यों में बिछेगा सड़कों का जाल!


लाल आतंक खौफ के बिना सडक परियोजना पूरी करने की कवायद
मंगलवार को रायपुर में गडकरी संग होगी आठ राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में विकास के एजेंडे पर मोदी की सरकार के सामने रेड कॉरिडोर यानि नक्सलवादी प्रभावित राज्यों में भी सड़कों की परियोजनाओं को पूरा करने का इरादा है, जिसके लिए सरकार सुरक्षित पहलुओं के साथ ऐसे उपाय तलाशने में जुटी है जिससे सड़क निर्माण पर हावी लाल आतंक का साया न रहे। इसी मकसद से केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने नक्सल प्रभावित आठ राज्यों के मुख्यमंत्रियों की 13 जनवरी मंगलवार को छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में बैठक बुलाई है।
केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की 13 जनवरी को रायपुर में वामपंथी उग्रवाद प्रभावित आठ राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में इन राज्य के लोक निर्माण विभाग के जरिए किये जाने वाले सड़क निर्माण के त्वरित कार्यान्वयन में आ रही समस्याओं पर विचार किया जाएगा, जिसमें प्रमुख रूप से नक्सलियों का खौफ सड़क परियोजनाओं के बीच सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है और कोई निर्माण एजेंसी व ठेकेदार नक्सलवादियों द्वारा घटनाओं को अंजाम देने के कारण सामने आने से कतराते हैं। हालांकि केंद्र सरकार के सामने लाल आतंकी खौफ को दूर करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। रायपुर में गडकरी के साथ होने वाली इस बैठक में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार, तेलंगाना, महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों के अलावा इन राज्यों के राज्यों के लोकनिर्माण मंत्री भी शामिल होंगे। यही नहीं नक्सल प्रभावित राज्यों में सड़क परियोजनाओं के निरंतर लंबित रहने के कारणों और समस्याओं से निपटने के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, गृह मंत्रालय, राज्य पीडब्ल्यूडी, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल और अन्य संगठनों के वरिष्ठ अधिकारियों से भी गहन विचार किये जाने की संभावना हैं।
छग को सुरक्षा मुहैया
केंद्र में मोदी की नई सरकार बनने के बाद छत्तीसगढ़ की नक्सल समस्या को लेकर बुलाई गई पहली उच्च स्तरीय बैठक में नक्सली समस्या के उन्मूलन को लेकर कई ठोस निर्णय लिए गए। खासकर बस्तर में अधर में लटके दो बड़े राष्ट्रीय राजमार्गों का निर्माण के अलावा छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में सड़क जैसे निर्माण कार्य कराने के लिए गृह मंत्रालय द्वारा दो तकनीकी बटालियन समेत अर्धसैनिक बलों की 12 बटालियन की तैनाती को मंजूरी दी गई है, यह सुरक्षा मिलने के बाद निर्माण कार्य शुरू करने की तैयारी कर दी गई है।
वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित कार्य
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार देश के इन राज्यों में वामपंथी उग्रवाद से बुरी तरह प्रभावित 34 जिलों में सड़क संपर्क सुधारने के लिए कुल 5,474 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण कर रहा है। इसकी सड़क आवश्यकता योजना (आरआरपी) आठ राज्यों को कवर करती है, ये राज्य तेलंगाना, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और उत्तर प्रदेश हैं। आवंटित 5,469 किलोमीटर लंबी सड़क निर्माण में से 4,908 किलोमीटर लंबी सड़क निर्माण का कार्य शुरू किया गया है, लेकिन उस पर नक्सली खौफ हावी है। हालांकि इस योजना के तहत अब तक 3,299 किलोमीटर यानि 67 प्रतिशत सड़क निर्माण कार्य पूरा हो चुका है।
नियमों में ढील के बावजूद अटकी परियोजनाएं
मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि इससे पहले केंद्र की यूपीए सरकार ने छत्तीसगढ़, ओडिशा व झारखंड जैसे नक्सल प्रभावित राज्यों में सुरक्षा संबंधी खतरों तथा परियोजनाओं के क्रियान्वयन बढ़ाने के मकसद से निर्माण कंपनियों को नियमों के तहत उपयोग में आने वाले उपकरण क्षमता, गैर-मशीनीकृत कार्यों का ठेका दूसरे को देने जैसे मामलों में कंपनियों के लिए छूट दी थी। नियमों में दी गई छूट के के अलावा उस समय बिल्डरों को आकर्षित करने के लिए पात्रता मानदंडों में ढील दी गई थी, लेकिन इसके बावजूद खासकर छत्तीसगढ, झारखंड, ओडिशा तथा महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में सुरक्षा संबंधी कारणों से कंपनियों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई और ये परियोजना नक्सलवादी खौफ के साय में अधर में लटका रहा। इसमें छत्तीसगढ के बस्तर क्षेत्र, महाराष्ट्र में गढचिरौली, ओडिशा में मलकानगिरी तथा झारखंड में पलामू, गढवा, दुमका तथा सिमडेगा ऐसे क्षेत्र रहे जहां कई निर्माण कंपनियां कुछ सड़क परियोजनाएं बीच में ही छोड भाग खड़ी हुई।
निर्माण पर हावी नक्सलवाद
दरअसल माओवादी अपने प्रभाव वाले इलाकों में पुल, पुलिया और सड़क निर्माण में बाधाएं खड़ी कर रहे हैं। इसी कारण कई सैकड़ा सड़क परियोजनाएं अधर में लटकी हुई है। नक्सलियों के हस्तक्षेप की सबसे बड़ी वजह सड़क निर्माण करने वाली कंपनी से मिलने वाली रंगदारी है, जिसे वे अपनी भाषा में 'लेवी' कहते हैं। जिस कंपनी ने इससे इन्कार किया या पुलिस को सूचना दी उसे खामियाजा भी भुगतना पड़ा। यह भी देखने मे आया है कि नक्सलियों के विभिन्न समूह वर्चस्व जमाने की होड़ में इन कंपनियों के शिविर पर हमला कर जानमाल की भारी क्षति पहुंचाते हैं। ऐसे दर्जनों वारदातों की लंबी फेहरिस्त है। वहीं नक्सली समूहों को इस बात का डर सताता है कि यदि आवागमन सुगम हो गया तो उनकी गतिविधियां प्रभावित हो जाएंगी और नक्सली समूह आस-पास के गांव के लोगों को भी अपने प्रभाव में रखते हैं।
12Jan-2015

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