बुधवार, 5 मई 2021

साक्षात्कार: बच्चों के साहित्य को समर्पित घमंडीलाल अग्रवाल का जीवन

बाल साहित्य जगत में बनाई बड़ी पहचान 
व्यक्तिगत परिचय
नाम: घमंडीलाल अग्रवाल 
जन्म: 25 अक्टूबर 1954 
जन्म स्थान: पाड़ला, रेवाड़ी (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए हिंदी, बीएड, पत्रकारिता में डिप्लोमा 
संप्रत्ति: राजकीय वरिष्ठ कन्या माध्यमिक विद्यालय जैकबपुरा में विज्ञान के अध्यापक रह चुके हैं।
साक्षात्कार-ओ.पी. पाल
आज के इस आधुनिक और वैज्ञानिक युग में देश और समाज को दिशा देने में साहित्य जगत का योगदान प्रासांगिक और प्रेरणादायक है। खासकर आज के दौर में बच्चों को हिंदी ज्ञान देना और उनके लिए लिखना एक कठिन चुनौती से कम नहीं है। इसके बावजूद पिछले पांच दशक से गुरुग्राम निवासी बाल साहित्यकार के रूप में डा. घमंडीलाल अग्रवाल ने अपना जीवन बच्चों के साहित्य को समर्पित किया हुआ है। हरियाणा में शायद घमंडी लाल अग्रवाल अकेले ऐसे साहित्यकार हैं जिन्हें बच्चों के साहित्य में योगदान देने के लिए अब तक भारत सरकार ही नहीं, बल्कि देश के ज्यादातर हिंदीभाषी राज्यों की सरकार और विभिन्न संस्थाओं द्वारा 165 से भी ज्यादा विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा गत फरवरी में साहित्यकार सम्मान योजना के तहत साल 2019 के बाबू बालमुकुंद गुप्त सम्मान के लिए गुरुग्राम निवासी डॉ. घमण्डीलाल अग्रवाल का चयन किया है। आज के इस युग में साहित्य से दूर होती नई पीढ़ी को साहित्य के प्रति कैसे प्रेरित किया जाए जैसे पहलुओं पर सुपरिचित बाल साहित्यकार डा. घमंडीलाल अग्रवाल ने हरिभूमि संवाददाता के साथ हुई खास बातचीत में अपने विचारों को साझा किया है। 
प्रख्यात बाल साहित्यकार डा. घमंडीलाल अग्रवाल अब तक बाल साहित्य पर 94 पुस्तकें लिख चुके है, जबकि प्रौढ़ साहित्य पर भी उनकी खोई-खोई गंध,नेह की परछाइयां, कितना समय कठिन, आस्था का सूरज और चांदनी की व्यथा जैसी 14 पुस्तकें लिख चुके हैं। इनमें बच्चों के लिए बाल साहित्य में बाल कविता, बाल कहानी, बाल नाटक, बाल जीवनी, बाल पहेलियां, बाल ज्ञान-विज्ञान के अलावा प्रौढ़ साहित्य में गजल, दोहा, मुक्तक, हाइकु, लघु कथा और व्यंग्य आधारित पुस्तकें शामिल हैं। डा. अग्रवाल ने बाल पत्रिकाओं और बाल साहित्य जगत में जो पहचान बनाई है उसके लिए उनका कहना है कि बच्चों को हिंदी सिखाना और वह भी साहित्य के आधार पर किसी चुनौती से कम नहीं है। मसलन इस बदलते युग और सामाजिक परिवेश में खत्म होते जा रहे साहित्यक माहौल बच्चों को हिंदी जैसी भाषा जो उन्हें समझ में आए, उनकी जुबान पर चढ़ जाए और सबसे मुश्किल उनकी तरह सोच पाना है। लेकिन उनका प्रयास है कि इस युग में अपनी रचनाओं, नाटक व कहानियों के जरिए बच्चों को प्रेरित किया जाता रहे। उनका प्रयास है कि ऐसे माहौल में नई पीढ़ी की साहित्य के प्रति जागरूक करके उन्हें भारतीय संस्कृति और सभ्यता की राह बनी रहे। वर्ष अक्टूबर 2012 में विज्ञान शिक्षक के अध्यापक के रूप में 31 वर्ष की सेवा के बाद सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंनें स्वतंत्ररूप से लेखन कार्य को तेजी से आगे बढ़ाने का काम किया है बाल साहित्य में योगदान के लिए डा. अग्रवाल को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा भारतेन्दु हरिशचन्द्र पुरस्कार और हिंदी अकादमी दिल्ली से बाल साहित्य से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा अग्रवाल को सात बार हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला कृति पुरस्कार से सम्मानित कर चुकी है। हरियाणा साहित्य अकादमी पुरस्कार, पं. सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्यकार पुरस्कार, डा. राम कुमार वर्मा बाल नाटक पुरस्कार, शकुन्तला सिरोठिया बाल साहित्य पुरस्कार, इंडो-रसियान बाल साहित्य सम्मान, बाल नाटिका सृजन पुरस्कार, मायाश्री राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान,हरप्रसार पाठक स्मृति बाल साहित्य सम्मान, चिल्ड्रेन बुक ट्रस्ट पुरस्कार समेत विभिन्न प्रदेशों में 165 से ज्यादा सम्मान और पुरस्कार हासिल कर डा. घमंडीलाल अग्रवाल ने जो उपलब्धियां हासिल की है, उनके लिए वह मानते हैं कि इससे उन्हें बच्चों व किशोरों को नई दिशा देने के लिए प्रोत्साहन मिल रहा है, जिसके लिए लगातार उनका प्रयास है कि उनके नए साहित्य में समस्याओं पर आधारित, जीव जंतुओं, उपयोगी वस्तुओं, शिक्षा प्रद, मनोरंजन प्रधान और जागरण गीत को और ज्यादा प्ररेणादायक रूप से शामिल किया जाए। हालांकि शिक्षाप्रद तो सभी कविताएं हैं। मगर हर विषय को अलग समूह में रखा है। कोशिश है कि बच्चे इसे हिंदी सीखे, अच्छी बातें सीखें और उन्हें कविताएं अच्छी भी लगे। 
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प्रमुख पुस्तकें
बाल साहित्य पर घंमडीलाल अग्रवाल की बाल कविताओं पर एक डाल के पंछी, जंगल की रेल, मन में गुलमोहर, सुन री सोनचिरैया, फूल गुलाब के, गीत विज्ञान, राही हैं हम, बगिया के फुल, शैतानी वाला बचपन, अम्मां देखो जरा चांद को, आओ पापा बात करें, बाल कवितांजलि, बाल गीतांजलि, मेरे प्रिय बाल गीत, गीतों के गुब्बारे, शिशु गीतांजलि, हैलो पापा, ऐसा देश हमारा, गीत ज्ञान-विज्ञान, खेल गीत, बालमन के रोचक गीत शामिल हैँ। जबकि बाल कहानी में अक्ल ठिकाने आई, वैज्ञानिक सोच, 51 नन्हीं कहानियां और नयी-निराली बाल कहानियां लिखी हैं तो वहीं बाल नाटक पापा-मम्मी पर मुकदमा, दादाजी ने पेड़ लगाया और सीख सिखाते बाल एकांकी। बच्चों को ज्ञान संबन्धी बाल विज्ञान पुस्तकों में विज्ञान को जानों, प्रश्नों में भौतिक विज्ञान, प्रश्नों में रसायन विज्ञान, प्रश्नों में जीव विज्ञान प्रश्नोत्तरी जैसी पुस्तकें शामिल हैं। राष्ट्रीय व राज्यों के पुस्तकालयों में ड. अग्रवाल लिखित रखी गई पुस्तकें-देशप्रेम की 15 श्रेष्ठ कहानियां, चरित्र निर्माण की 15 श्रेष्ठ कहानियां, राह दिखाती 15 श्रेष्ठ कहानियां, आज्ञापालन की 15 श्रेष्ठ कहानियां, नैतिक मूल्यों की 15 श्रेष्ठ कहानियां, मुहावरों की 15 श्रेष्ठ कहानियां, आविष्कारों की 15 श्रेष्ठ कहानियां, ज्ञान–विज्ञान की 15 श्रेष्ठ कहानियां, स्वच्छता की 15 श्रेष्ठ कहानियां, नैतिक मूल्यों की 15 श्रेष्ठ कहानियां भी बड़ी उपलब्धियों में शामिल हैं।
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ये भी बड़ी उपलब्धियां
बाल साहित्यकार डा. अग्रवाल आकाशवाणी रोहतक के अनुबंधित गीतकारों में शामिल हैं। इसके अलावा विद्या वाचस्पति एवं विद्यासागर मानद उपाधियों से नवाजे गये अग्रवाल विक्रमशीला हिंदी विद्यापीठ भागलपुर के विद्वत परिषद के सदस्य हैं, तो हिरयाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के शिक्षा पाठ्यक्रम में उनकी रचनाएं शामिल है। 19Apr-2021

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